महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया.यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है. लेकिन इस योजना के बारे में कई चौकानें वाले तथ्य कैग की रिपोर्ट में सामनें आये है.
हाल में ही जारी कैग रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा योजना के तहत 100 दिनों की गारंटी रोजगार उपलब्ध कराने का प्रतिशत मात्र 51 प्रतिशत ही रहा. चयनित जिलों में 2012-13 से वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान योजना के तहत किए गए गतिविधियों की ऑडिट के बाद यह भी खुलासा किया कि वार्षिक विकास योजना और श्रमिकों की मजदूरी के लिए बजट में भी देरी हुई.
नए वित्तीय वर्ष में डोर टू डोर सर्वेक्षण नहीं किया गया था,जॉब कार्ड नवीनीकृत नहीं किए गए, श्रमिकों को उनकी कार्य मांग के लिए रसीद नहीं दी गई. और विकलांग व्यक्तियों को केवल 29 से 36 दिनों का काम दिया जा सका हैं. इसके अलावा कुल मिलाकर योजना के अंतर्गत संचालित कार्यो में से 37.05 प्रतिशत काम अपूर्ण थे.
वहीं उत्तराखंड के नजरिये से मनरेगा योजना बेहतर कार्य कर रही है. योजना के अंतर्गत कार्यों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में पिथौरागढ़ प्रदेश का अव्वल जिला बना है. इसका खुलासा पहली बार जारी मनरेगा प्रगति रिपोर्ट कार्ड में हुआ है. इसमें टिहरी को दूसरा व ऊधमसिंह नगर को तीसरा स्थान मिला. वित्तीय वर्ष 2017-18 में राज्य में केंद्र व राज्य सरकार की ओर से स्वीकृत 786 करोड़ से अधिक बजट खर्च किया गया.
प्रदेश में मनरेगा योजना के तहत प्रदेश में 10.66 लाख जॉब कार्ड बने हैं। जिसमें 7.28 लाख जॉब कार्ड की सक्रिय हैं. केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार पहली बार राज्य में मनरेगा योजना की प्रगति रिपोर्ट कार्ड तैयार किया है. सरकार का दावा है कि कई जिलों की बहुत ही अच्छी प्रगति है. जिन जिलों की प्रगति खराब है, उनमें सुधार लाने के लिए निर्देश दिए गए. हर तीन महीने के बाद जिलों की प्रगति की समीक्षा की जाएगी.
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