उत्तराखंड में पर्यावरण से लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने वाले एक आंदोलन का नाम है मैती आंदोलन. मैती आंदोलन Maiti Movement नाम से बने अपने फेसबुक पेज पर आन्दोलन के संबंध में लिखा गया है कि
साथियो,
आप लोग मैती आन्दोलन से परिचित होंगे ही, उत्तराखण्ड में मैत का अर्थ होता है मायका, और मैती का अर्थ होता है, मायके वाले. इस आन्दोलन में पहाड़ की नारी का उसके जल, जंगल और जमीन से जुड़ाव को दर्शाया गया। क्योंकि एक अविवाहित लड़की के लिये उसके गांव के पेड़ भी मैती ही होते हैं, इसलिये जिस भी लड़की की शादी हो रही हो, वह फेरे लेने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच एक पेड़ लगाकर उसे भी अपना मैती बनाती है.इस भावनात्मक पर्यावरणीय आन्दोलन की शुरुआत 1995 में राजकीय इण्टर कालेज, ग्वालदम, जिला-चमोली के जीव विज्ञान के प्रवक्ता श्री कल्याण सिंह रावत जी द्वारा की गई. जो अभी भी निरन्तर चल रहा है, आज इस कार्यक्रम ने अपना फैलाव पूरे उत्तराखण्ड सहित देश के कई अन्य राज्यों तक कर लिया है.
1995 में कल्याण सिंह रावत द्वारा उत्तराखंड के छोटे से गांव से शुरू हुआ यह आंदोलन आज विश्व के पांच देशों और भारत के 18 राज्यों में चल रहा है. उत्तराखंड में मैती की परम्परा अब विवाह का एक अभिन्न अंग बन गयी है. उत्तराखंड में शादियों के कार्ड में बाकायदा मैती कार्यक्रम का समय दिखना एक सामान्य सी बात है.
कल्याण सिंह के पिता फारेस्ट विभाग में नौकरी करते थे अतः उनका जीवन बचपन से ही वनों के करीब बीता उन्होंने चिपको आंदोलन में भी चंडीप्रसाद भट्ट के साथ काम किया. मैती की प्रेरणा उन्हें चिपको आंदोलन से ही मिली.
कल्याण सिंह रावत ने इसी तरह उचाण गुल्लक का अभियान भी शुरू किया है. इस पर वह कहते हैं कि आप अपने घर के पूजा स्थल पर एक ‘उचाण गुल्लक’ रखिये और उसमें रोज 1 रुपया डालिये. फिर साल में एक बार 5 जून तक उस पैसे को अपने गांव में पेड़ लगाने के लिए भेज दीजिए.
फेसबुक पर आपको ऐसी हजारों तस्वीरें मिल जायेंगी जिसमें नव-दम्पत्ति पारम्परिक वेशभूषा में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पौधे रोपते नज़र आते हैं विश्व पर्यावरण दिवस पर देखिये ऐसी ही कुछ तस्वीरें.
-काफल ट्री डेस्क
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