1964 में चीन ने पहला परमाणु परीक्षण किया इसके बाद अमेरिका ने चीन पर निगरानी के लिए भारत से सहयोग माँगा. 1965 में भारतीय ऐजेंसी आई. बी. और अमेरिकी ऐजेंसी सी.आई.ए. के मध्य एक सिक्रेट समझौता हुआ. इस समझौते के तहत अमेरिका ने भारत से नंदा देवी पर्वत की चोटी पर कुछ सेंसर लगाने की बात कही जो चीन में हुए न्यूक्लियर टेस्ट की क्षमता को बताने में सहायक साबित हो सकते थे.
इन सेंसर को लगाने का इससे पहले एक ट्रायल अमेरिका में अलास्का के माउन्ट किनले में किया गया. 1965 में खुफिया मिशन आरंभ हुआ. मिशन पर एक दस्ता अक्टूबर 1966 को 56 किलोग्राम डिवाइस के वजन के साथ नंदा देवी की चोटी को रवाना हुआ. इस वजन में प्लूटोनियम कैप्सूल, दो ट्रांसमीटर सेट और रेडियो वेब्स को पकड़ने वाले एंटिना आदि शामिल थे.
इस टॉप सीक्रेट मिशन का नेतृत्व कैप्टन मोहन सिंह कोहली कर रहे थे. अचानक तेज बर्फीली हवाओं के चलते यह दस्ता खराब मौसम को नहीं झेल पाया और डिवाइस को चोटी पर बिना जोड़े और एक्टिव किये वापस लौट आया. इसके बाद वर्ष 1966 जब दुबारा नंदा देवी की चढ़ाई की गयी तो डिवाइस अपनी जगह से गायब थी. इसके बाद 1967 तक इसका खोज अभियान चला जिसे 1968 में भारत सरकार ने रोक दिया.
अत्यंत गर्म नाभिकीय डिवाइस के पिघलने से ऋषि गंगा समेत गंगा के प्रदूषित होने की संभावना है. नंदा देवी के गर्भ में छुपा यह पुराना नाभकीय जिन हाल ही में पुनः खबरों में आया है जिसका कारण हालीवुड के एक प्रोड्यूसर स्काट राजनाफेल्ट हैं. स्काट इस सत्य घटना पर आधारित एक फिल्म बना रहे हैं.
चर्चा में आने के बाद उत्तराखंड सरकार ने भी पुनः डिवाइस खोजे जाने के लिये अभियान चलाने के बारे में केंद्र सरकार से बातचीत की है जिस पर केंद्र सरकार ने भी हामी भरी है. डिवाइस द्वारा गंगा के जल के प्रदुषण पर अधिकांश विद्वानों का मानना है कि इसके प्रभाव अधिक नहीं होंगे लेकिन किसी ने भी इसके प्रभाव के शून्य होने पर सहमति नहीं जताई है.
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