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बाणासुर के खून के कारण ही लोहाघाट की मिट्टी लाल है

ऋग्वेद के शम्बर प्रसंग के अनुसार बाणासुर हिमालय में रहने वाले एक असुर थे. वायुपुराण में शतश्रृंग पर्व पर असुरों के 100 पुरों (किलों) का उल्लेख मिलता है. रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों के कई अन्य प्रसंगों से भी इस बात की पुष्टि होती है. पुराणों के अनुसार हजारों वर्षों पूर्व बाणासुर नाम का एक असुर जन्मा जिसकी भारत में अनेक राजधानियाँ थी. पूर्व में शोणितपुर (वर्तमान तेजपुर, आसाम) में, उत्तर में बामसू (वर्तमान लमगौन्दी, उत्तराखंड,) मध्यभारत के बाणपुर, मध्यप्रदेश में भी बाणासुर का राज था. बाणासुर को आज भी उत्तराखंड व हिमाचल के कई गावों में देवता के रूप में पूजा जाता है.

दानवीर बलि के सौ प्रतापी पुत्र थे, बाणासुर उनमें सबसे बड़ा था. बाणासुर ने भगवान शंकर की बड़ी कठिन तपस्या की. शंकर जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे सहस्त्र बाहु तथा अपार बल दे दिया.

बाणासुर का सम्बन्ध उत्तराखण्ड एवं हिमाचल के कई स्थानों से है. इन प्रदेशों में कई जगहों पर अनेकों जगहें तथा किले व मंदिर इनके नाम से जाने जाते हैं.

कुमाऊँ मंडल में बाणासुर से संबंधित कई स्मारक देखे जाते हैं. चम्पावत जिले में लोहाघाट के निकट सुई गाँव के पुरातन खंडहरों को बाणासुर के किलों का अवशेष माना जाता है. सुई को बाणासुर की राजधानी शोणितपुर माना जाता है. यहाँ बहने वाली लोहावती नदी को कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध तथा बाणासुर की बेटी ऊषा के प्रेम प्रसंग के सिलसिले में भी जाना जाता है. कहा जाता है कि यह इस युद्ध के रक्त से प्रवाहित होने वाली शोणितपुरी नदी है. मान्यता है कि इसी स्थल पर शिवभक्त असुर बाणासुर और श्री कृष्ण का भयंकर संग्राम हुआ. बाणासुर ने श्री कृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध को बन्दी बना लिया था जो बाणासुर की बेटी ऊषा के मोह में बाणासुर के किले तक आ पंहुचा था.

गढ़वाल के गुप्तकाशी के करीब बाणागाँव को उसकी राजधानी तथा ऊखीमठ को उसकी बेटी ऊषा के नाम से ऊषामठ का विकसित रूप तथा इस जगह को ऊषा और श्रीकृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध का विवाहस्थल भी माना जाता है.

उत्तरकाशी जिले के रवाईं बड़कोट परगना को भी बाणकोट का ही विकसित रूप माना जाता है. यहाँ पर बाणासुर का एक मंदिर भी है, जो कि अब काफी जीर्ण-शीर्ण हो चुका है.

हिमाचल प्रदेश में भी बाणासुर का सम्बन्ध अनेक स्थानों से जोड़ा जाता है. बुशहर राज्य के अंतर्गत सराण (सराहन) को बाणासुर की राजधानी शोणितपुर का ही विकसित रूप माना जाता है. इसके अतिरिक्त हिमाचल के कुल्लू व किन्नौर जिलों में बाणासुर व हिडिम्बा तथा इनकी अन्य संततियों को समर्पित कई मंदिर भी हैं.

किन्नर लोक साहित्य में बाणासुर का विवाह हिडिम्बा से हुआ बताया गया है. हिमाचल के किन्नौर जिले में सर्वाधिक पूजे जाने वाले 18 देवी-देवताओं को इन्हीं की संतान माना जाता है. किन्नौर जिले के सुंगरा महेसुर (महासुर) के मंदिर के ऊपरी कमरे में बाणासुर की आत्मा का निवास माना जाता है. यहीं पर कोठीगांव में बाणासुर की बड़ी बेटी चंडिका, निचार में मझोली बेटी ऊषा, तरंगागांव में छोटी बेटी चित्रलेखा के देवी रूपों की पूजा की जाती है.

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Sudhir Kumar

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  • एक लोहघाटवासी होने की वजह से लेख पूरा पढ़ा, लेकिन बहुत ही निराशा हाथ लगी। कफल्ट्री से ऐसी उम्मीद नहीं थी।

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