अशोक पाण्डे

लैला उर्फ़ लिसा के जीवन की कहानी किसी परीकथा सरीखी है

पुणे के श्रीवत्स अनाथालय के रेकॉर्ड्स में उसके माता-पिता के बारे में ठोस जानकारी नहीं है. उनका वास्तविक नाम किसी को नहीं मालूम. पता नहीं कि वे उस नवजात को लेकर आए थे या ऐसे ही बाहर छोड़ गए थे. उसका शुरुआती नाम लैला माता-पिता का दिया हुआ था या अनाथालय प्रबंधन का – यह भी पक्का नहीं पता.
(Lisa Sthalekar Hindi)

यह जरूर पक्का है कि जब वह तीन हफ्ते की हुई, अमेरिका में रहने वाले एक दंपत्ति ने उसे गोद ले लिया. भारतीय मूल के डॉ. हरेन और उनकी अंग्रेज पत्नी सू ने कुछ साल पहले बंगलौर से एक लड़की को गोद लिया हुआ था. 1979 में वे भारत आये हुए थे और किसी अनाथ लड़के को गोद लेना चाहते थे. बंगलौर-बंबई उनकी खोज पूरी न हो सकी और जब उनके अमेरिका जाने में तीन दिन का समय रह गया था, किसी ने उन्हें पुणे जाने की सलाह दी. श्रीवत्स अनाथालय के नवजात वार्ड में रखी गयी उस बच्ची को देखते ही उनके भीतर कुछ हुआ और उन्होंने उसे अपने परिवार का हिस्सा बनाने का फैसला किया.

तीन दिन में उन्हें अमेरिका लौटना था. तमाम संयोगों के चलते बच्ची का पासपोर्ट और वीजा किसी चमत्कार के चलते इतने संक्षिप्त अंतराल में तैयार हो गए और अपने जन्मदाताओं द्वारा त्याग दिए जाने के चौबीसवें दिन लैला अपने नए माता-पिता के साथ अमेरिका जाने वाले हवाई जहाज में सवार थी.

उसका नाम बदल कर लिसा रख दिया गया. और दो बाद डॉ. हरेन अपने परिवार को अमेरिका से केन्या ले आये. दो साल केन्या रहने के बाद वे बेहतर जीवन की तलाश में अंततः ऑस्ट्रेलिया पहुंचे जहाँ वे अब भी रहते हैं.

लैला उर्फ़ लिसा के जीवन की कहानी किसी परीकथा सरीखी है.

क्रिकेट के उसके शौक को देखते हुए पिता ने उसे शुरू में लड़कों के एक क्लब में दाखिला दिलाया. उसकी बल्लेबाजी प्रतिभा देखकर किसी  कोच ने उसके लिए आगे के रास्ते खोले और धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ती हुई इस लड़की ने जितना नाम कमाया उसकी कल्पना नहीं हो सकती. पहले अपने राज्य और फिर ऑस्ट्रेलिया के लिए हर तरह की क्रिकेट खेल चुकी लिसा ने अपने देश की कप्तानी भी की. 2013 में जब ऑस्ट्रेलिया की महिला टीम से विश्वकप जीता तो उसने खेल से संन्यास की घोषणा की. उस समय तक वह संसार की सबसे सम्मानित महिला खिलाड़ियों में गिनी जाने लगी थी. खेल के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडरों में से एक गिनी जाने वाली लिसा इंटरनेश्नल वन डे में हजार रन बनाने और सौ विकेट लेने वाली पहली महिला बनी.
(Lisa Sthalekar Hindi)

खेल के मैदान से संन्यास लेने के बाद लिसा ने माइक्रोफोन सम्हाला और एक कमेंटेटर के रूप में अपने लिए नयी जमीन तैयार की. पिछले साल जब ज्योफ बॉयकाट ने महिला कमेंटेटरों के काम को लेकर एक खराब टिप्पणी की तो उनसे सीधे दो-दो हाथ करने वाली इकलौती महिला भी लिसा ही थी.

जब 2013 में वह भारत दौरे पर थी और अपनी आत्मकथा लिखने की तैयारी कर रही थी, उसने पुणे के श्रीवत्स अनाथालय जाने का फैसला किया. उस अनुभव को उसने यूं बयान किया है – “उस समय तक मुझे गोद लिए जाने के विषय से कोई परेशानी नहीं थी. मेरे भीतर खुद को जन्म देने वाले माता-पिता को खोज लेने की ऐसी कोई ज्वलंत इच्छा भी नहीं थी. मुझे अपनी कहानी सुनाना अच्छा लगता था और दरअसल इस लिहाज से मैं अपने दोस्तों के बीच अपने को अद्वितीय समझती थी. पुणे की यात्रा के बाद सब बदल गया.”

“मैं टुकटुक में बैठकर अनाथालय के रास्ते पर थी जब मेरे साथ चल रहे मेरे मैनेजर ने मुझे देखकर पूछा – सब ठीक है न? मैंने कहा – हाँ इसमें ऐसी कौन सी बड़ी बात है. फिर हम वहां पहुँच गए. श्रीवत्स अनाथालय स्थानीय अस्पताल की बगल में है जो कि तार्किक बात भी है क्योंकि मुझे पक्का यकीन है वहां छोड़े जाने वाले ज्यादातर बच्चे उसी अस्पताल में पैदा होते होंगे. वहां एक बड़ा मेहराबदार रास्ता था जिसे देखकर मुझे अपनी दादी का घर याद आया – वही ऊंची छतें, खुली-खुली जगहें. पांच साल के कम आयु के बहुत सारे बच्चे दौड़भाग कर रहे थे.”

मैं वहां की निदेशिका के साथ बैठी और उन्हें अपने बारे में बताया. वे बोलीं, “क्या तुम अपने असल माता-पिता को खोजना चाहती हो?” मैंने इस बारे में एक पल को सोचा और फैसला किया कि नहीं. वैसे भी मुझे नहीं पता उन्हें खोजा जा सकता था या नहीं. एक अरब की आबादी वाले भारत में उन्हें खोज सकने की क्या संभावना हो सकती थी?”     
()Lisa Sthalekar Hindi

“फिर उन्होंने हमें अनाथालय दिखाया. ऊपर उस वार्ड में भी ले कर गईं जहाँ नवजात रखे रहते हैं. उन बच्चों को देखना और यह अहसास करना कि क्यों उनका अभी कोई घर नहीं है? यह भीतर तक हिला देने वाला अनुभव था. मैंने अपनी कहानी के बारे में सोचा कि कैसे मैं कुल इक्कीस दिन की बच्ची वहां लेटी रही होऊंगी. मैंने जो जीवन जिया है उसकी उस जगह से कल्पना नहीं हो सकती थी. मैं भाग्यशाली थी. बहुत बहुत भाग्यशाली थी.”

पिछले साल क्रिकेट के शीर्ष संस्था आईसीसी अपने हॉल ऑफ़ फेम में तीन महान खिलाड़ियों को जगह दी. जहीर अब्बास और जाक कालिस के साथ इस सूची में लिसा को भी जगह मिली.

एक सहृदय, सक्षम दम्पत्ति द्वारा गोद ले लिया जाना लिसा का सौभाग्य हो सकता है लेकिन सिर्फ भाग्यशाली होकर हर कोई उस जैसा नहीं बन सकता. विनम्रता और अथक परिश्रम ने लिसा स्थालेकर को एक समूची पीढ़ी का रोल मॉडल बनाया है. उसे खेलता-बोलता हुआ देखिये. उसके तमाम वीडियो इंटरनेट पर मौजूद हैं. आपको भी उससे मोहब्बत हो जाएगी.
(Lisa Sthalekar Hindi)

अशोक पाण्डे

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago