चित्रकार, इतिहासकार, कूटनीतिज्ञ, कवि मौलाराम उत्तराखंड के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में गिने जाते हैं. गढ़वाल वंश के शासकों के दरबार में रहने वाले मौलाराम के पास एक समय चौदह गावों की रियासतें थी. लेकिन समय की मार थी कि उन्हीं मौलाराम के जीवन के अंतिम दिनों में आय का कोई निश्चित साधन तक न था. Mola ram Painter and Poet
मौलाराम के जीवन का अंतिम पड़ाव बड़े अभावों में गुजरा था. राजा पराक्रमशाह ने उनके चौदह गावों की जागीर छीन ली थी. गढ़राज वंश काव्य में मिलता है कि प्रद्युम्नशाह के राज में मौलाराम को जान बचाने हेतु पश्चिम की ओर भागना पड़ा.
कहते हैं कि प्रद्युम्नशाह के भाई प्रीतमशाह के कारण मौलाराम को राज्य छोड़कर भागना पड़ा. जब गढ़वाल में गोरखा शासन रहा तो मौलाराम की जागीर तीन बार निरस्त की गयी थी. बाद में उन्हें पांच रुपया रोजाना पगार मिलता था. Mola ram Painter and Poet
गोरखाओं के बाद अंग्रेजों का शासनकाल आया और मौलाराम की हालत और भी खराब हुई. अंग्रेजों ने उनकी जागीर पर उनके सारे अधिकार छीन लिये उनको मिलने वाली पगार को भी अंग्रेजों ने बंद कर दिया. इस बात की पुष्टि मौलाराम की इस कविता से होती है :
भोजन पहिलो चाहिये, पीछे बिस्तर पांच.
इहै समस्या कविन की, अरजी लीजे बांच.
अरजी लीजे बांच, कही हमने नहीं झूठी.
बरखा करैं खराब हेवली, सब ही टूटी.
बोलत मौलाराम, हमारो यही परिजन.
सुख सौं घर महि रहै, मिले वस्तर शुभ भोजन.
एक अन्य जगह उनकी कविता से उनके जीवन के अंतिम दिनों के हाल का पता खूब मिलता है
जवां थे जब जहाने में, सभी के काम के थे हम.
कहैं थे सब ही मर्दाने, बड़े काम के थे हम.
रहैं थे सब हुकुम अंदर, सुबह और साम सब हाजिर.
हुए सब सौ ? जईफी, पैर से नहिं काम के हम.
मौलाराम के विषय में यह भी पढ़े : मौलाराम : विश्वविख्यात गढ़वाली चित्रशैली के प्रमुख आचार्य
पुरवासी 2003 में डॉ. द्वारिका प्रसाद तोमर के लेख अनोखा चितेरा व कवि मौलाराम तोमर के आधार पर.
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