महेन्द्रचंद (1788-91) चंद राजवंश का अंतिम शासक था. सन् 1791 में गोरखों के साथ हुए हवालबाग युद्ध पराजित होकर कुमाऊँ में गोरखों का शासन प्रारम्भ हुआ. अब यहां सवाल है कि गोरखे कुमाऊँ में 1790 में आये अथवा 1791 में तो इसका जवाब हम बद्रीदत्त पाण्डे की पुस्तक कुमाऊँ का इतिहास से ही तलाशते हैं. चूंकि हिन्दू नव वर्ष की विभिन्न क्षेत्रों में विविध सिद्धान्तों से गणना की जाती है. कुमाऊँ, गढ़वाल, हिमाचल तथा डोटी में नव वर्ष सौर सिद्धान्त पर आधारित होता थी, जो कि नव बैषाख से शुरू होता था. इसे जानने के लिए बद्रीदत्त पाण्डेय द्वारा रचित कुमाऊँ का इतिहास पृष्ठ संख्या-317 एवं 318 पर प्रकाश डालना आवश्यक हैं.
(Last Chand Ruler Mahendra Chand & Gorkha invasion)
पृष्ठ संख्या-317 में उन्होंने लिखा है कि राजा अजीतचन्द की हत्या संवत 1785 तद्नुसार शाके 1650 माघ वदी 7 मंगल की रात को हुई थी. अब पृष्ठ संख्या-318 देखते हैं तो अजीतचन्द का उत्तराधिकारी शासक कल्याण चन्द संवत 1785 तद्नुसार 1728 ई0 चैत्र सुदी 1 शनिश्चर के दिन गद्दी में बैठना बताया है. अब सवाल ये है कि हमारी गणना किस प्रकार से होगी कि वर्ष 1785 संवत में पहले माघ में अजीत चन्द की हत्या हुई तत्पश्चात उसी वर्ष 1785 में चैत्र में कल्याण चन्द गद्दी में बैठता है. जैसा कि वर्तमान में माना जाता है चन्द्र सिद्धान्त के आधार पर चैत्र माह से महीना प्रारम्भ होता है, क्या तत्समय भी वर्तमान सिद्धान्त चलता था अथवा बैसाख मास से नव वर्ष शुरू होता था, इसे निम्न तालिका से समझा जा सकता है:
उक्त तालिका से स्पष्ट है कि बैशाख माह से नव वर्ष प्रारम्भ होता था अतः अजीत चन्द का निधन माघ सम्वत् 1785 को हुआ था तब चैत्र सम्वत् 1785 को कल्याण चन्द गद्दी में बैठा था.
(Last Chand Ruler Mahendra Chand & Gorkha invasion)
यही तालिका हम गोरखों के आक्रमण के समय बनाकर देखते हैं गोरखों ने कुमाऊँ पर सम्वत् 1847 चैत्र कृष्णापक्ष प्रतिपदा के दिन आधिपत्य शुरू किया था, तब वर्ष क्या होना चाहिए 1790 अथवा 1791 इसे उक्तानुसार तालिका से देखते हैं:
उक्तानुसार गणना के आधार पर आप देख सकते हैं कि चैत्र कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन अल्मोड़ा में गोरखों ने आधिपत्य किया था. इस तिथि का उल्लेख तत्कालीन गोरखों के लामोपाट गुरु (लाम का अर्थ युद्ध होता है और अतः गोरखा सेना के युद्ध पुरोहित को लामोपाट गुरू कहा गया है) रहे पं. लक्ष्मीधर पाण्डे (ये कुलेठा पाण्डेय थे जो मूलतः चम्पावत के कुलेठा गांव के थे जो बाद में नेपाल बस गये थे.) ने इस प्रकार किया है, चैत्रमास दिनगता 11 चैत्र वदि 1 रोज 2 अल्मोड़ा मन्यको दिन (अल्मोड़ा जीतने का दिन) उल्लिखित है. नेपाल में सप्ताह रविवार से होता है इसलिये यह दिन सोमवार का था, यह तिथि 18 अप्रैल, 1791 की गणित होती है. चूंकि श्री बद्रीदत्त पाण्डेय ने यह गणना चैत्र नव वर्ष के आधार पर की है अतः यह असत्य प्रतीत होती है.
यह एकमात्र प्रमाण नहीं है बल्कि एम.सी. रेग्मी की पुस्तक द गोरखाली एम्पायर पृष्ठ संख्या-4 में भी गोरखों के अल्मोड़ा जीतने की तिथि 1791 उल्लिखित है. इसके अतिरिक्त जदुनाथ सरकार व अन्य द्वारा सम्पादित पुस्तक पुना रेजीडेन्सी कोरोस्पोंडेंस, वाल्यूम-1 के पृष्ठ संख्या-378-379 (लेटर न0-272) में इसका स्पष्ट प्रमाण मौजूद है.
(Last Chand Ruler Mahendra Chand & Gorkha invasion)
प्रमाण संकलन में सहयोग आदरणीय गुरूजी संदीप बडोनी का रहा है.
– भगवान सिंह धामी
मूल रूप से धारचूला तहसील के सीमान्त गांव स्यांकुरी के भगवान सिंह धामी की 12वीं से लेकर स्नातक, मास्टरी बीएड सब पिथौरागढ़ में रहकर सम्पन्न हुई. वर्तमान में सचिवालय में कार्यरत भगवान सिंह इससे पहले पिथौरागढ में सामान्य अध्ययन की कोचिंग कराते थे. भगवान सिंह उत्तराखण्ड ज्ञानकोष नाम से ब्लाग लिखते हैं.
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वैसे बद्रीदत्त पांडे जी के तथ्य कितने प्रामाणिक है इस पर डॉ यशवंत सिंह कठौच जी ने काफी विस्तार में लिखा है। हो सके तो आप उसका भी अध्ययन कर लें।
आपके तथ्यों को भी मान लेंगे अगर कोई पीएचडी धारक इतिहासकार अपनी पुस्तक में लिख दे जिसे उत्तराखंड के सभी आयोग प्रामाणिक मान लें।
पर जब तक प्रामाणिक पुस्तक में नहीं आता तब तक यशवन्त सिंह कठौच और अजय सिंह रावत जी के तथ्य मां सकते हैं। अगर ऐसा कुछ होता तो ये दोनों इतिहासकार इस पर जरूर बात करते।
लेकिन इन्होंने ऐसा कोई वर्णन नहीं किया है।
धन्यवाद।