सरुलि चाहा केतलि बै निकलनैर वाल भाप कि एकटक देखण लागि रे छी. पटालनाक उच निच आंगन, एक कोण में माट लै लिपि चुल भै. जा में लाकड़ जल बेर धुं बण गयिं. बस लाकड़नक राख निशाणि तौर पर बच गयि. चाहा उबल बेर काढ़ा बण गै पर सरुलि पत्त नै कां विचारमग्न छि. बरसों पुराणि यात्रा पुरि करि दी वील आदुक घण्ट में.
(Kumaoni Story by Amrita Pandey)
नानतछिन पना स्कूल नि जै सकि. खेत में काम करि. नान भै बैंणिनक फौज संभालि. पन्दर सालकि उमर में ब्या लै है गयो. सरुलिक बचपन वैवाहिक जिम्मेदारिनक भेंट चढ़ ग्यो. काचि उमर में पांच नानतिना है गयिं. जामै तीन ज्यूण रयिं. पति फौज में भयिं. सालभरि में एक बार घर उनैर भै. सरुलिक पुर दिन खेत में घास काटण में और घरपना काम में बित जैंछि. माहवारि दिणन में कुकुरगत्त भयि. गोरु गोठ में पराल बिछै बैर सितण भै और रुखि सूखि द्वि र्वाट मिल गयिं तो अहोभाग भयौ. यो बीच फौजी पति लै देश सेवा में शहीद है गयो. सरुलिक जीवन में दुखनक पहाड़ टुटि गई. जसि कसि नानतिनन कैं पढाइ लिखाई. ब्याह करायि.
आजि सरुलि आपु लै सास बणि गै. ब्वारि च्याल दगड़ि शहर पन भयि. नौकरी और नानतिना पढा़ई वील उनर गौं ऊण भौत कम है गयो. द्वीयै चैलि लै ब्या है बेर आपुण सोरास न्है गयिं. यो बीच घुण पीड़ लै सरुलि जब भौत परेशान है गयि तो च्याल ऐ बेर आपुण दगड़ दिल्ली ल्हेगो. सरुलि मन न जरा लै नि लागो वां. तीन कमरनक फ्लैट में ब्वारि कि ढूढण परेशान है गयि उ. नानतिन बता कि मम्मा जिम जै रै. सरुलि कै जाण छि यो जिम- विम के हुं छै. वीकै जिम तै खेत खलिहान भयिं. नानतिनाक अंग्रेजी में गिटर पिटर ले वी कै समझ में निं उण भै. च्याल नौकरी में व्यस्त, ब्वारि क रुख व्यवहार, हफ्त भर में मन उचैण है गयो सरुलि क.
“विक्की, अब भौत दिन है गैछ. घर जानु मैं.”
“यार इजा! समझि कर. इतु आसान नि भै, आयि इलाज लै आदु हेरो. इतु बार आण जाण टाइम नि भै मेर पास. डबल लै मस्त लगनि.”
(Kumaoni Story by Amrita Pandey)
“मैं आफि पडनु बीमार चैला, तू चिंता झन करिया. तुकैं नि बुलूल मैं यो बार. निश्चित रैया. बस, यो बार मकैं जाणि दे.”
और जिद्द करि बैर सरुलि पड़ोसी गौंक् रमुवा दगड़ वापस गौं ए गयि. आजाद पंछी जै महसूस करण लागरेछि उ आपुण घर में. आखिर आत्मसम्मान लै कै चीज हुन्येर वाल भै.
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कुछ समय पैलि तक गौं पना नानतिन दुख परेशानी में मदद लिजि ऐ जैछिं. हाथ खुट में पीड़ भयि त मोहनदा चेली पिसु ओल दिछी पर अब पलायनक यसि लहर चली कि सिर्फ बुढ़ बाड़ि गौं में रै गयिं. नानतिना और ज्वांण सब्ब शहरन में जै बेर बैठ गयिं.
अचानक वीक नीन टुटि. उसकी के कमजोरी जै चिताइण लागरैछि. मन करणो छि कोई एक घुटुक चाहा बणै बेर दि जानो. पर वां पना कोयि नि भै. सरुलि चाहा बणून हुं लाकड़ बीनण लिजी गाड़न उझाण जाण लागि.
(Kumaoni Story by Amrita Pandey)
मूलरूप से अल्मोड़ा की रहने वाली अमृता पांडे वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं. 20 वर्षों तक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक और आर्मी पब्लिक स्कूल अल्मोड़ा में अध्यापन कर चुकी अमृता पांडे को 2022 में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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