उत्तराखंड में जब भी लोकगीतों की बात होती है तो न्यौली अपना एक विशेष महत्व रखती है. न्यौली को न्योली भी लिखा जाता है. न्यौली कुमाऊं की एक प्रमुख गायन पद्धति है. कुमाऊंनी में न्यौली एक चिड़िया का नाम है. लोकमान्यताओं के अनुसार यह चिड़िया विरह में जंगल-जंगल भटकती है. इसी के नाम पर कुमाऊं में एक गायन पद्धति न्यौली का नामकरण हुआ माना जाता.
सामान्य रूप से न्यौली श्रृंगार मूलक होती है. जिसमें संयोग और वियोग दोनों देखने को मिलता है. संयोग में अपने प्रेमी से मिलने की बैचेनी, छेड़छाड़ हास-परिहास तो वियोग में दिल को गहराई तक छूने वाली पीड़ा न्यौली में रहती है. सामान्यतः न्यौली में वियोग श्रृंगार अधिक देखने को मिलता है इसका कारण परिवार के पुरुषों का रोजगार के लिये सालों घर से दूर परदेस रहना हो सकता है.
लांबा गाड़ा तीरा न्यौत्या तिमुली को पात.
त्यारा बिना आबा नी काटियों मेरी रात.
उस लम्बे से खेत के किनारे पर तिमिली का पत्ता है. ओ प्रिय, तुम्हारे बिना अब मुझसे यह रात काटे नहीं कटती.
न्यौली का गायन आलाप शैली में किया जाता है. न्यौली सोरयाली और रीठागाड़ी दो तर्जों (स्केल) पर गायी जाती है. इसमें दो या चार पंक्तियां होती है. जरूरी नहीं कि पहली पंक्ति और दूसरी में कोई साम्य हो.
न्यौली के गायन में आरोह-अवरोह की अद्भुत विशिष्टता पाई जाती है. यति के स्थान पर ‘ला’, ‘ए’, ‘हाइला’, न्यौली आदि आलापमय शब्दों का प्रयोग होता है. शेरसिंह महर की एक न्यौली में इसे सुनिये :
न्यौली पहाड़ की लोक संस्कृति जानने का एक अच्छा माध्यम है. इनमें केवल प्रेम से जुड़े विषय ही नहीं है कहीं न्यौली में दर्शन देखने को मिलता है तो कहीं सामाजिक उत्पीड़न भी न्यौली में देखने को मिलता है. पहाड़ का जीवन, पहाड़ के जीवन की कठिनाई, नववधू का दुःख, सास का बुरा व्यवहार, पारिवारिक समस्या आदि सब कुछ समेटे हुये है न्यौली.
सरगा में बादल फाटो, ओ, धरती पड़ी हवा
काली में सफेदी ऐगी, फूलि गयी बावा
सैन-मैदान काटि गो छा, आब लागो उकावा
दिन धो काटण है गई, यो बूढ़ी अकावा
इसका अर्थ है आसमान में बादल लगे और धरती में हवा बहने लगी. मेरे काले बालों में सफ़ेदी छाने लगी और शरीर में बुढापा आने लगा. जिंदगी का आरामदायक/समतल हिस्सा तो जवानी में काट दिए,बुढापे में अब जिंदगी के कठिन/उकाल भरे दिन काटने मुश्किल हो गए हैं.
प्रकृति को समेटे एक न्यौली पढ़िये
ऊंचा धूरा, सूखा डाना.
अगास बादल रिया, रुवएं उन्छि धुडधुड़.
नायिका के सौन्दर्य से जुड़ी एक न्यौली कुछ यूं है :
चम-चम चमकछि, तेर नाककि फुल्ली.
धार में देखि भैन्छी, जनि दिसा खुली.
चमचम चमकती है तुम्हारी नाक की लौंगफूल.
तुम शिखर पर प्रकट हुई, लगा मानो भोर हो गई.
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