कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार, संगीतकार, गायक हीरा सिंह राणा की मृत्यु की दुखद खबर आ रही है. हृदयाघात से आज सुबह ढाई बजे दिल्ली में उनका निधन हो गया. वर्तमान में वे दिल्ली में गठित कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष भी थे. वे 77 साल के थे. (Kumaoni Folk Singer Heera Singh Rana Passes Away)
हिरदा कुमाऊनी के नाम से भी पुकारे जाने वाले हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ. उनकी माता स्व: नारंगी देवी, पिता स्व: मोहन सिंह थे.
प्राथमिक शिक्षा मानिला से ही हासिल करने के बाद वे दिल्ली मैं नौकरी करने लगे. नौकरी में मन नहीं रमा तो संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंचे और आजन्म कुमाऊनी संगीत की सेवा करते रहे. वे 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाने लगे थे.
कैसेट संगीत के युग में हीरा सिंह राणा के कुमाउनी लोक गीतों के अल्बम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे ज़माना जबर्दस्त हिट रहे.
उनके लोकगीत ‘रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी,’ कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में शुमार हैं.
हीरा सिंह राणा को उनके ठेठ पहाड़ी विम्बों-प्रतीकों वाले गीतों के लिए जाना जाता है. वे लम्बे समय से अस्वस्थ होने के बावजूद कुमाऊनी लोकसंगीत की बेहतरी के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे.
हीरा सिंह राणा के निधन से उत्तराखण्ड के संगीत जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…