नंदा देवी मेले, बाल मिठाई और कटारमल के सूर्य मंदिर के अलावा बहुत सारी चीजे़ हैं जो कुमाऊं में बसी सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को विश्व भर में पहचान दिलाती हैं. अल्मोड़ा शहर से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित कसार देवी एक ऐसा ही स्थान है जो अल्मोड़ा शहर को विश्व पटल पर अंकित करता है. (Kasar Devi Almora)
पुरातत्व महत्व के मंदिरों के संरक्षण के लिए उत्तराखंड सरकार के मानस खंड मंदिर माला मिशन के पहले चरण में चिन्हित कुल 16 मंदिरों को भव्य रूप प्रदान किये जाने का प्रस्ताव है. इन मंदिरों में जागेश्वर, चितई गोलू देवता मंदिर, सूर्य मंदिर कटारमल, पाताल भुवनेश्वर, हाट कालिका, नंदा देवी मंदिर, बैजनाथ, पातालेश्वर मंदिर, नैना देवी मंदिर और पूर्णागिरी मंदिर के अतिरिक्त कसार देवी मंदिर भी शामिल है. यह स्थान वाॅन एलेन बेल्ट के क्षेत्र में आता है. मतलब कसार देवी को लेकर विशेष बात यह है कि मंदिर के आसपास की धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड हैं अर्थात यह पूरा क्षेत्र ही चुंबकीय शक्ति का विशेष पुंज है. अंतरिक्ष वैज्ञानिक जेम्स वाॅन एलन इस बेल्ट की खोज करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनके नाम पर इसे द वाॅन एलन बेल्ट भी कहा जाता है. बताते हैं कि ऐसे स्थान दुनिया में केवल दो ही और हैं. जिसमें एक दक्षिण अमेरिका के पेरू में स्थित माचू पीचू और दूसरा इंग्लैंड का स्टोन हेंज. नासा के वैज्ञानिक भी शोध करने के उद्देश्य से कसार देवी आए थे. हालांकि रहस्य अभी भी बरकरार है.
1890 में यह स्वामी विवेकानंद की तपस्थली बना. उन्होंने अपने लेखों में भी कसार देवी का ज़िक्र किया है. अमेरिकी लोक संगीत और पॉप म्यूजिक में दुनिया भर में नाम कमा चुके ‘डॉन्ट थिंक ट्वाइस, इट्स अलराइट’ से मशहूर हुए नोबेल पुरस्कार विजेता बॉब डायलन भी यहां आ चुके हैं. इसके अलावा अंग्रेज़ी गीतकार और संगीतकार युसूफ इस्लाम जो कैट स्टीवंस के नाम से बेहतर जाने जाते हैं, बीटल ग्रुप के जॉर्ज हैरिसन, अमेरिकी बीटनिक आंदोलन के कवि और नई पीढ़ी की आवाज़ कहे जाने वाले एलन गिंसबर्ग और साथ ही, ट्यून इन, टर्न ऑन, ड्रॉप आउट का नारा देने वाले हिप्पी संस्कृति के समर्थक अमेरिकी लेखक और मनोवैज्ञानिक टिमोथी लेरी जैसे विख्यात लोग भी यहां पर आ चुके हैं. 70 के दशक में जब गोब्लिन मोड में जीने वाले वाले एक विशेष समूह हिप्पी संस्कृति की लहर आई थी तो यह जगह उनकी पसंदीदा जगह बन गई थी. आज भी यहां पर कई होमस्टे हैं जहां पर लम्बे बालों, अस्त-व्यस्त जीवन शैली वाले, हाथों में गिटार की स्ट्रिंग थामे आज़ाद ज़िन्दगी के गीत गाते हिप्पी टाइप विदेशी लोग छः-छः महीने तक लगातार प्रकृति के संरक्षण में तनाव रहित जीवन जीते हुए प्रवास में रहते है और नये गीतों की रचना भी करते हैं.
हमारे पहाड़ वास्तव में इतनी खूबसूरत हैं कि हर कोई इनका दीवाना हो जाता है. जब भी अपने पहाड़ की ओर जाओ तो लगता है कि सुंदर वादियां अपनी और बुला रही हो, ठंडी हवा के शीतल झोंके मानो गालों को थपथपा रहे हो, समूची सृष्टि प्यार से अपने समीप बुलाने,अपने सीने से लगा लेने के लिए बाहें फैलाए स्वागत करती प्रतीत होती है, ऐसे में चंद पलों का जो सुकून मन जुटा लेता है, वह लंबे समय तक तनाव से मुक्ति दिलाता है. रेडिएशन कम होना, गुरुत्वाकर्षण बल अधिक महसूस होना यह सारी बातें तो वैज्ञानिक और विशेषज्ञ जानें. मैंने तो यहां पर हमेशा से एक परम अनुभूति महसूस की है जिसे अभिव्यक्त कर पाना भी शायद मुश्किल है.
बचपन का वह समय जब अल्मोड़ा से पैदल कसार देवी मंदिर जाते थे और कुछ देर रुक कर, खेलकूद करने के बाद पैदल ही वापस लौटते थे, थक गए तो मां की गोद और पिता का कंधा था. इतने लंबे रास्ते में इक्का दुक्का वाहन खासकर के एम ओ यू की बसें ही दिखती थी. कार तब नहीं के बराबर थी. हाॅं कभी कभार एकाध हरी जीप ज़रूर दिख जाती थी. आज हर किसी के पास अपना वाहन है. चार पहिया न सही पर दो पहिया तो सभी के पास है. वक्त की भी कमी है. चलने की आदत भी कम हो गई है. पैदल कोई चलना नहीं चाहता. धार्मिक स्थल आस्था के वाहक होने के साथ-साथ पर्यटन गतिविधियों के लिए ज़्यादा मुफ़ीद हो गए हैं. प्लास्टिक के रैपर्स और बोतलें आपको रास्ते भर पड़े हुए मिल जाएंगे. आज वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि रास्ते भर ट्रैफिक मिलता है. रोड बहुत अधिक व्यस्त हो गई है. बिननसर और बागेश्वर की तरफ जाने वाले सभी वाहन यहीं से होकर गुजरते हैं. शहर की भीड़भाड़ से बचने के लिए कई लोगों ने अपने आशियाने भी कसार देवी के आसपास बना लिए हैं. अब यह पहले की तरह सुनसान स्थान नहीं रहा.
ऐतिहासिक महत्व के इस मंदिर की प्रसिद्धि देश में ही नहीं विदेशों में भी है. जैसे योग नगरी के रूप में ऋषिकेश बीटल्स आश्रम पर्यटकों के बीच में प्रसिद्ध है, वैसे ही कसार देवी भी. बीते साल गर्मी के मौसम में एक साहित्यिक मित्र हरियाणा से उत्तराखंड पर्यटन पर आए थे और हल्द्वानी में कुछ देर मुलाकात के लिए रुके थे. इसी दौरान उन्होंने भी इस मंदिर के बारे में जानकारी ली. उनके साथ आए सभी लोगों को कसार देवी जाने की उत्सुकता थी. यह देखकर मन में खुशी की तरंगे हिलोरें लेने लगीं. आस्था और विज्ञान का अदभुत मिलन केंद्र है कसार देवी. यहां गुफा रूपी ध्यान केंद्र भी है. यूं तो किसी भी चट्टान पर बैठ जाओ या पेड़ के नीचे बैठ जाओ, इतनी शांति है कि मन खुद ही ध्यानमग्न होकर कहीं शून्य में पहुंच जाता है और इस शून्यता से उबर कर जब बाहर आओ तो रचना का विस्तृत संसार प्रतीक्षा करता नज़र आता है.
बिनसर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी भी यहाँ से काफी नज़दीक है जहां पर पर्यावरण प्रेमी और फोटोग्राफी के शौकीन लोग, खास तौर पर विदेशी पर्यटक अकसर जाया करते हैं. यहाँ पशु पक्षी और वनस्पति जगत की विविधता विशेष है. हिमालय अपने सम्पूर्ण गौरव के साथ सामने खड़ा दिखाई देता है.
इसे भी पढ़ें : कटारमल का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर
अल्मोड़ा से कसार देवी की तरफ जाते समय रास्ते में सिमतोला जगह पड़ती है जहाँ पर इको पार्क बनाकर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है. दशकों पहले इसी जगह पर नृत्य सम्राट उदय शंकर ने अपनी नाट्य अकादमी को मूर्त रूप देने का मन बनाया था. कुछ वर्षों पर तक यह जगह उनके कर्म स्थली रही और देश के बड़े-बड़े नर्तक, गीतकार, संगीतकार यहाँ पर आए लेकिन कारणवश उन्हें अल्मोड़ा शहर छोड़ना पड़ा था. हालांकि बाद में उनके नाम पर नाट्य संगीत अकादमी चितई के पास फलसीमा नामक स्थान में स्थापित की गई.
कहा जाता है कि कसार देवी मंदिर की स्थापना दूसरी शताब्दी में राजा रुद्रक के द्वारा की गई थी. देवदार के घने जंगलों के साए में स्थित इस परिसर में परमानंद की अनुभूति होती है. यहाँ से हिमालय का सुंदर दृश्य दिखाई देता है. जानकार बताते हैं कि चौखंबा समेत कई चोटियां यहाँ से दिखाई देती हैं. समूचे क्षेत्र में एक विशेष प्राकृतिक और आध्यात्मिक आकर्षण है. कश्यप पहाड़ी की चोटी पर बना यह मंदिर नवदुर्गा के छठे रूप कात्यायनी को समर्पित है. यह 108 शक्तिपीठों में से एक है. देवी काली के साथ-साथ यहां पर लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा भी की जाती है. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां पर वार्षिक मेले का आयोजन भी होता है जिसमें भारी संख्या में गाँव, नगर के और बाहरी लोग भी प्रतिभाग करते हैं. इस क्षेत्र के आसपास पाषाण युग के अवशेष भी मिले हैं. चट्टानों में प्राचीन लिपि भी उकेरी गई है जो शायद अभी तक अपठनीय ही रही है. मंदिर का समय-समय पर जीणोद्धार किया जाता रहा है. इस मंदिर में एक बुजुर्ग बाबा से अक्सर मुलाकात होती थी, मगर पिछले कुछ सालों से उनके स्थान पर एक दूसरे विदेशी बाबा दिखाई देते हैं.
इसे भी पढ़ें : संग्रहालय की सैर
एक डेनमार्क नागरिक अल्फ्रेड सोरेनसन जिन्हें शून्य नाम से भी जाना जाता था, अपने भारत आगमन पर वह रविंद्र नाथ टैगोर और नेहरू जी के साथ रहे. हरिद्वार में भी उन्होंने कुछ महीने बिताए. लेकिन आख़िर में उन्हें कसार देवी भाया. जब वे यहाँ पर आए तो उन्होंने यहां बसने का मन बना लिया. लगभग 40 साल तक वह भारत में रहे. धीरे-धीरे इस क्षेत्र के बारे में जानकारी मिलने पर विदेशी पर्यटक भी यहाँ पर आने लगे. इतिहास, विज्ञान, धर्म, दर्शन, संगीत, साहित्य, शोध और फोटोग्राफी के लिए एक खास जगह है यह. प्राकृतिक वातावरण स्वच्छ और धुला धुला है. क्षेत्र के आसपास के गाँव में घूम कर भी लोगों की जीवन शैली, उनकी संस्कृति को पहचानने की जिज्ञासा बाहर से आए लोगों की रहती है. रास्ते में डोलमा सहित कई रेस्टोरेंट हैं. यहां पर खाली स्टेट, इंपिरियल हाइट्स और थोड़ी ऊंचाई में कसार जंगल रिजॉर्ट जैसे सुविधाजनक होटल हैं. कसार जंगल रिजॉर्ट थोड़ी ऊंचाई में स्थित है, यहाँ से सिर्फ जंगल ही जंगल के दर्शन होते हैं और एकांतवास के लिए बिल्कुल सही है लेकिन इंपिरियल हाइट्स सड़क में स्थित है और यहां से दूर-दूर का नज़ारा और खासकर रात के समय अल्मोड़ा शहर बहुत सुंदर दिखाई देता है. रिसोर्ट की टेरेस में दूब उगा कर शानदार लाॅन बनाया गया है. साथ ही विविध प्रकार के फूल भी उगाए गए हैं. जाड़े के रातों में बोनफायर का अपना मज़ा है. कसार देवी क्षेत्र में उजास भरी सुबह है तो शाम रंगीन है. (Kasar Devi Almora)
मूलरूप से अल्मोड़ा की रहने वाली अमृता पांडे वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं. 20 वर्षों तक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक और आर्मी पब्लिक स्कूल अल्मोड़ा में अध्यापन कर चुकी अमृता पांडे को 2022 में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
View Comments
दसों बार कसार देवी क्षेत्र से गुजरते हुए वहां थोड़ी देर रुकने भर का बेहतरीन अनुभव है। वाकई ये जगह कुछ अजब, कुछ खास है। मन को खींचती है।