(कारगिल विजय दिवस पर बीते बरस लिखा यह लेख, अफसोस जिन पंकज महर की ली गयी तस्वीर इस लेख में इस्तेमाल की गई, वे कोरोना का शिकार हो कर दुनिया से रुखसत हो गए. इन्द्रेश मैखुरी) -Kargil Vijay Diwas-
आज कारगिल विजय दिवस है. उस युद्ध में जान कुर्बान करने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि.
सोशल मीडिया में सक्रीय पंकज महर ने एक तस्वीर पोस्ट की है. एक बूढ़ी महिला, एक सैनिक की मूर्ति से लिपट रही है.
पंकज भाई द्वारा लिखे गए विवरण के अनुसार तस्वीर में कारगिल में शहीद हुए जवान कुंदन सिंह खड़ायत की मूर्ति से लिपटी हुई शहीद सैनिक की माता है.
ऐसी कितनी माताएँ, बहनें, पत्नियाँ, बेटियाँ, पिता, भाई, बेटे होंगे जो युद्ध की भेंट चढ़े अपने स्वजनों की पीड़ा में ऐसे ही कलपते होंगे! वर्ष-दर-वर्ष जब एक तरफ जीत का घोष गूँजता है,तब अपनों को गंवाने वालों की टीस और गहरी होती जाती होगी. झंडे में लिपटे हुए बेटे के बजाय झंडे को सलामी देता बेटा होता तो कैसा होता,इनका मन तड़पता होगा. वो तड़पन ही तस्वीर में देखी और महसूस की जा सकती है.यह कलेजे को काटने वाली तस्वीर है. युद्ध की असल कीमत जो चुकाते हैं,आजीवन भुगतते हैं,उनकी व्यथा है. उनके दर्द के समंदर का कतरा भर है.
इस मर्मस्पर्शी तस्वीर पर नजर ठहरी रही. और नजर गयी एक खबर पर. जिस दिन कारगिल विजय के जयकारे लगाए जा रहे हों,उस दिन पर यह खबर बेहद महत्वपूर्ण है. खबर से समझ आता है कि एक तरफ युद्ध की कीमत चुकाने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ युद्ध की कीमत वसूलने वाले लोग भी हैं.
खबर यह है कि रक्षा सौदे में दलाली करने के लिए तीन लोगों को दोषी पाया गया है. ये तीन लोग है- भूतपूर्व हो चुके दल-समता पार्टी की अध्यक्ष रही जया जेटली,पूर्व मेजर जनरल एस.पी.मुरगई और समता पार्टी के ही गोपाल पचेरवाल.
जया जेटली और उक्त दो लोगों पर रक्षा सौदों को प्रभावित करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप, सी.बी.आई कोर्ट में सिद्ध हो चुके हैं. जया जेटली ने 02 लाख रुपया रिश्वत लिया और मेजर जनरल एस.पी. मुरगई ने बीस हजार रुपया.
रक्षा सौदे के लिए रिश्वत लेने का समय और जगह भी देखिये. तहलका द्वारा स्टिंग करने के लिए बनाई गयी एक फर्जी कंपनी से ये रिश्वत ली गयी. ये रिश्वत कारगिल युद्ध के एक साल बाद यानि सन 2000 में ली गयी. और कहाँ? जया जेटली ने रिश्वत का पैसा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडिस के सरकारी आवास पर लिया. यह वही स्टिंग ऑपरेशन है,जिसमें भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण भी रक्षा सौदा करवाने के लिए रिश्वत लेते कैमरे में कैद हुए थे. केंद्र में वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा और एन.डी.ए की ही सरकार थी और यह भी आरोप लगा था कि कारगिल में शहीद हुए सैनिकों को लाने के लिए उपयोग किए गए ताबूतों में कमीशनखोरी की गयी.
जया जेटली और अन्य दो को आपराधिक षड्यंत्र रचने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 9 के तहत दोषी पाया गया है और सी.बी.आई की अदालत 29 जुलाई को इनको दी जाने वाली सजाओं पर बहस सुनेगी.
ज़ोरशोर से सेना और सैनिकों की बात करने वाले,युद्धोन्माद के पैरोकार उसकी आड़ में राजनीति तो चमकाते ही हैं,तिजोरियाँ भी भरते हैं. यह प्रकरण इसकी बानगी है.
मौज रामपुरी का शेर है :
जंग में कत्ल सिपाही होंगे,
सुर्खरू जिल्ले इलाही होंगे !
पर बात तो इससे आगे की है. जिल्ले इलाही सुर्खरू होंगे और जिल्ले इलाही के नीचे वाले चांदी काटेंगे!
जब भी युद्धोन्माद की चीख-ओ-पुकार हो तो 22 साल पहले शहीद हुए युवा बेटे की बुत से लिपट कर रोती माँ को जेहन में रखिए और युद्ध की आड़ में चांदी काटने वालों पर भी नजर बनाए रखिए. युद्ध की कीमत चुकाने वालों के मातम पर सवार हो कर युद्ध की कीमत वसूलने वालों का जश्न हरगिज मत होने दीजिये.
इन्द्रेश मैखुरी के ब्लॉग नुक्ता-ए-नज़र से साभार
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