Featured

करम सिंह भण्डारी 1973 में पिथौरागढ़ से विधायकी का चुनाव लड़े

यह विडम्बना ही है कि जब तक करम सिंह जीवित रहे, वे अन्जान बने रहे. अब जब वह नहीं हैं, हम उनकी खोज कर रहे हैं. अब उनके बारे में यथेष्ठ और प्रमाणिक जानकारी नहीं है.

1966 में जब मैंने अपने अध्ययन अभियान में चम्पावत क्षेत्र का दौरा किया तो तत्कालीन बीडीओ राम सिंह कार्की ने मेरे को सहयोग दे सकने वाले व्यक्ति के रूप में सूखी ढांग (निङाली) के करम सिंह भंडारी का नाम लिया था. तब उनसे मुलाकात नहीं हो सकी.

एक दिन पिथौरागढ़ में हमारी बैठक में एक सजीला और सुगठित शरीर का व्यक्ति बैठा था. मैं कुछ पूछता इससे पहले ही वह बोल पड़ा, ‘मैं कौन हूं, आप बताएं?’ अटपटा तो लगा पर मुझे कार्की जी के पत्र की याद आ गई. मैंने भी फट से उत्तर दिया कि आप कर्मसिंह भंडारी हैं. जोशीले अट्टहास के साथ उन्होंने कहा, ‘यू आर राइट’. वे कुमाऊं की संस्कृति, कला और इतिहास के मर्मज्ञ प्रतीत हुये. तब से ऐतिहासिक सामग्री की खोज में वे बराबर मेरे साथ रहे. ‘रागभाग’ का संकलन करने का प्रयास उन्हें ज्यादा उपयोगी लगा.

करम सिंह भण्डारी

करम सिंह भण्डारी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1968 में चम्पावत जिले के निर्माण के लिए जन सम्पर्क किया था. उन्होंने अकेले ही बिना पार्टी और झंडे के यह अलख जगाई थी. अब जिला बन गया है और जनता लाभ ले रही है पर तब उनकी हंसी उड़ाते थे.

करम सिंह का मूल गांव जिला पिथौरागढ़ का पतलदे था. वे अपनी सुविधा के लिए सूखीढांक से 6 किमी दूर (पूर्णागिरी की दिशा में) काफी पहले बस चुके थे. इस क्षेत्र में पहले से ही जुमली (नेपाल के जुमला अंचल के) भैंस पालक बसे थे. एक जुमली महिला से उनका विवाह हुआ और उन्हीं के पड़ोस में वे बस गये. दरअसल जब वे भारतीय सेना में एजुकेशन हवलदार थे तो उन्हें सूचना मिली कि मां मरणासन्न हैं. उन्हें छुट्टी नहीं मिली और उन्होंने नौकरी छोड़ दी. मां उनके घर पहुंचने से पहले दिवंगत हो चुकी थी.

इस तरह करम सिंह पर एकाएक मानसिक और आर्थिक दबाव पड़ा. निङाली के घनघोर जंगल क्षेत्र में कोई रोजगार भी न था. पर आत्मसम्मान और अकड़ कर भाव भी उनमें बहुत था. तराई क्षेत्र में फसल की कटाई का काम वे एक मजदूर की हैसियत से कर आते थे और कमाई का बड़ा हिस्सा किताबों में खर्च देते थे. इस तरह घर-परिवार का पोषण व करते रहे. इस फाकामस्ती में भी वे पढ़ने लिखने का क्रम बनाये रहे. मेरे लेखों तथा अप्रकाशित शोध ग्रन्थ को उन्होंने न सिर्फ देखा बल्कि उन पर लम्बी टिप्पणी भी लिखी, जो किसी शोधकर्ता ने खो दी.

करम सिंह भण्डारी की हस्तलिखित रचना

1973 के आम चुनावों में वे दो पत्ती वाले चिन्ह पर पिथौरागढ़ क्षेत्र से विधायकी का चुनाव लड़े थे. बिना साधनों के उनका चुनाव अभियान चल पड़ा. बड़े क्षेत्र में वे पैदल चले. अपने उद्देश्यों के साथ वे मतदान की विधि भी जनता को बतलाते थे. मिट्टी या जमीन में अपना चुनाव चिन्ह बनाते थे. उनके क्षेत्र के 10-12 गांवों के अधिकांश मत करम सिंह को मिले. अनपढ़ क्षेत्र की जनता उन्हें जिताने निकली थी. एक भी मत अवैध नहीं था. यह खबर रेडियो से भी प्रसारित हुई थी. तब कभी-कभी वे जंगल में रात गुजार देते थे.

बिना आजीविका के भोजन मिलने को वे ‘सिंह वृत्ति’ कहते थे. शेर को शिकार मिला तो ठीक, नहीं तो वह भूखा भी रह सकता है, मिलने पर दो-तीन दिन का आहार जमा कर लेता है. मेरे कहने पर उन्होंने उत्तरायणी कार्यक्रम में सम्पर्क किया और इस तरह वे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ की पारखी नजरों में आये. तब से उनको आकाशवाणी के लखनऊ तथा नजीबाबाद केन्द्रों से कुछ न कुछ कार्यक्रम मिल जाया करते थे.

वे बहुत प्रयोगशील थे. अपने घर में उन्होंने मिट्टी का लिन्टर डाला था. वे अंग्रेजी भाषा और साहित्य के भी मर्मज्ञ थे. वे समय से कुछ आगे थे. लोग उन्हें समय पर नहीं समझ सके.

1966 में 40-45 साल के रहे होंगे. मुझसे 10-12 साल बड़े रहे होंगे. उनके एक बेटा और एक बेटी थी. 1975 के बाद उनसे सम्पर्क टूट सा गया. फिर वे अनेक दलों के नेताओं के जाल में भी फंसे पर वे अपने मिशन से नहीं डिगे. 1974 में उन्होंने एक पत्र में लिखा कि मैं घर बनवा रहा हूं. 1982 में वे अपेन्डिक्स में गड़बड़ी के शिकार हुये. लोग उन्हें पीलीभीत ले गये, पर रास्ते में ही उनका देहांत हो गया. यह दुखद समाचार मुझे और अन्य मित्रों को बहुत बाद में मिला.

(‘पहाड़’ के पिथौरागढ़-चम्पावत अंक में रामसिंह का यह लेख छपा है जिसे वहां से साभार प्रकाशित किया जा रहा है.)

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

3 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

5 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago