कपकोट उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मंडल में जिला बागेश्वर की सबसे बड़ी तहसील है. कपकोट दियोली पर्वत की तलहटी में सरयू और खीरगंगा नदी के संगम पर बसा है. जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 24 किमी है.
आजादी से पहले कपकोट अल्मोड़ा जिले के दानपुर परगने का एक छोटा सा गाँव हुआ करता था. सितम्बर 1997 को तहसील के रूप में कपकोट का गठन किया गया, इस समय बागेश्वर के 200 से ज्यादा गांवों को इस तहसील में शामिल किया गया.
2011 की जनगणना के अनुसार कपकोट की आबादी 5000 से कुछ ही ज्यादा है. जिसमें 2565 पुरुष और 2495 महिलाएं शामिल हैं. कपकोट उत्तराखण्ड की उन पहाड़ी तहसीलों में से एक है जहाँ अनुसूचित जाति-जनजाति आबादी औसत से कहीं ज्यादा है, यहाँ कुल आबादी का 30 फीसदी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति हैं.
कपकोट उत्तराखण्ड के 70 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. इस अनारक्षित विधानसभा सीट में 80 हजार से ज्यादा मतदाता हैं.
कपकोट को देश-दुनिया में पहचाने जाने की वजह इसका पिंडारी, कफनी और सुन्दरढुंगा ग्लेशियर के यात्रा मार्ग में होना है.
जब पिंडारी ग्लेशियर के लिए सड़क खड़किया तक नहीं पहुंची थी उन दिनों यात्रा का प्रमुख पड़ाव सौंग हुआ करता था. अब खड़किया तक सड़क पहुँच जाने के बाद कपकोट मुख्य पड़ाव बन चुका है. कपकोट के बाद से ही इन ग्लेशियरों का बीहड़ रास्ता शुरू हो जाता है.
पिंडर घाटी के दुर्गम गांवों के लिए कपकोट एक बाजार होने के साथ ही शिक्षा व स्वास्थ्य का केंद्र भी है. यहाँ कॉलेज, आईटीआई और पोलिटेक्निक संस्थान भी हैं.
सरयू तट पर बसे होने की वजह से कपकोट एक उपजाऊ क़स्बा भी है. यहाँ के लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. कपकोट उत्तराखण्ड में भूकंप के लिए संवेदनशील चिन्हित किये गए क्षेत्रों में से एक है. साल 2012 में आयी प्राकृतिक आपदा ने कपकोट में भारी तबाही मचाई थी.
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