समाज

उत्तरकाशी के जन संघर्षो का महानायक: कमला राम नौटियाल

बाईस बरस की आयु में एक नौजवान अपने आस पास की दुनिया में बदलाव के लिए “उत्तरकाशी भ्रष्टाचार निरोधक संघ” की बुनियाद डालता है जिसे वह “आदर्श नागरिक संघ” नाम देता है. यह एक ऐसा मंच बनता है जिसमें संगीत की स्वर लहरियां गूंजती हैं, नाटक होते हैं अँगूर की बेटी, भक्त रघुनाथ, सत्यवादी हरिश्चन्द्र.
(Kamla Ram Nautiyal)

उसके बाल मन में किशोरावस्था तक देखी टिहरी है.यहाँ के दरबार में उसके दादा उसके पिता कारिंदे रहे. खेलने कूदने की उम्र में ही ये बात समझ में आ गई कि टिहरी की जनता राजशाही के घात प्रतिघातों को कैसे झेल प्रताड़ित होते रही और आजादी के परचम का लहराना चाह रही, मुख्य धारा में बहना चाह रही .कमलाराम के बुजुर्गों ने इसी टिहरी रियासत की परतंत्रता में जीवनयापन कर राजा की सेवा की.

अब दूसरी तरफ का परिवेश और सोच बिलकुल अलग है,जो उसके नाना का घर है.बड़कोट यानी बाबा विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी में. उसके  नाना उत्तरकाशी के सयाणा, ब्रह्मवृत्ति वाले जिनकी बहुत से गांवों में जजमानी थी. जहां मां के साथ रह लोक थात से संपन्न परंपरा ने उसके भावुक मन को बहुत संवेदनशील बना दिया था.पर ये कैसा माहौल जो जड़ है, ठहरा हुआ. सब अपनी नूनतेल रोटी की चिंता से आगे कुछ करने की सोच नहीं रखते.धार्मिक हलचलों में पसरी हुई शून्यता . मनुष्य के भले, उसके कल्याण के लिए,उसकी खुद की जननी, उसकी मां अदृश्य ईश्वर से ले कर, लोहे के बने हुए नृसिंह देवता के त्रिशूल तक पर विश्वास करती फिरती. रोज ही प्रार्थना करती. कोई भी कष्ट, कठिनाई और संकट,बीमारी मुफलिसी, लाचारी देवता के नाम संकल्प से अगर ठीक हो जातीं हैं मां,तो ऐसा होता क्योँ नहीं? सुना,बार -बार सुना, पर पाया कि समस्याएं तो अपनी जगह हैं और इस अंधविश्वास से फायदा उठाने वाले झोली भर रहे.वह स्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते. पर परिवर्तन तो लाना ही होगा.

यह युवक कमलाराम रामलीला के माध्यम से श्री रामचरितमानस के भीतर से लोक हित लोक कल्याण के दृष्टान्त खोज जनता के बीच उनका मंचन करता है. लोकथात के रेशे पकड़ अपने इलाके की समृद्ध विरासत को सामने रखने का जतन करता है. और सूत्रपात करता है टिहरी और उत्तरकाशी में प्रगतिशील और क्रांतिकारी विचारों की पहली लहर का. रामलीला संचालन का संगठन अपनी सी सोच वाले नवयुवकों की टोली में बदलती है. आर्थिक और सामाजिक द्वन्द और असमानता को तोड़ डालने के लिए साम्यवाद की दूसरी लहर जन्म लेती है. सेकंड वेव.जो फैलती है बहुत तेज और जनमानस को उन विवशताओं को तोड़ने पर बाध्य करती है जिनमें घिरे रह सिर्फ शोषण होता है.वह भी दबे कुचलों का कल्याण तो सुविधा अवसर समझौते की लपेट में है.

उत्तरकाशी में ऐसी जनचेतना को प्रस्फुटित करने वाले कमला राम नौटियाल के बारे में राजकीय ऑटोनोमस कॉलेज में प्राचार्य रहते मुझे प्रोफेसर डबराल ने बताया जो उत्तराखंड के इतिहास पर भारी पोथियाँ लिखने वाले पंडित शिव प्रसाद डबराल के सुपुत्र थे और महाविद्यालय के भीष्म पितामह की संज्ञा से तुरंत ही मैंने उन्हें अलंकृत कर किया था क्योंकि प्रदेश के एकमात्र ऑटोनोमस कॉलेज के वरदान से जो विकट समस्याएं पैदा हो गईं थीं उनकी शर शैया पर भीष्म ही लेट सकता था. मैं तो अर्थशास्त्र की अपनी प्राध्यापकी में अलमस्त था कि पता चला कि शासन में सीधे मुख्यमंत्री के आदेश पर मुझे ऑटोनोमस कॉलेज भेजा गया है कि लो बहुत पढ़ा लिए अब पचड़े समझो. ये ऑटोनोमस कॉलेज बनना है आदर्श. पूरे उत्तराखंड में अकेला. पाठ्य क्रम बदलो. आमूलचूल परिवर्तन कर दो. सेमेस्टर कर दो. रेगुलर पढ़ाई हो. टाइम बाउंड. यहाँ अब खुद पेपर बनवाओ पूरी गोपनीयता से. उन्हें खुद छापो और यू जी सी की हर शर्त का पालन हो. सीमित संख्या में ऐडमिशन हों, पचहत्तर प्रतिशत से कम उपस्थिति में छात्र परीक्षा में न बैठ सके. स्टॉफ 9 से 4 बजे तक कॉलेज में रहे. अगर ये परिपालन न हुआ तो यू. जी. सी पहले तो अगले अनुदान को रोक देगी. फिर डेवलपमेंट ग्रांट न मिलेगी. शासन अलग नाक भों चढ़ाएगा.
(Kamla Ram Nautiyal)

अब सीमित प्रवेश के चलते जिन सूरमाओं को महाविद्यालय में घुसपैठ की अनुमति नहीं मिली तो वो बबाल काटेंगे ही. उससे निबटो. उन्हें प्राइवेट फॉर्म भराओ जिनकी परीक्षा गढ़वाल विश्व विद्यालय लेगा. अब लड़के टंकी में चढ़ें या तुम्हें जूतों की माला पहनाएं. निदेशक फोन न उठायें. सब तुम्हारी किस्मत. सबसे बड़ी बात तो ये कि पचहत्तर प्रतिशत स्टॉफ तो चाहता ही न था कि कैंपस ऑटोनोमस बने. ये उनकी स्वतंत्रता का हनन था. ऐसे मायूस माहौल में डबराल जी हमें गढ़वाल की बोध कथाएं सुनाते उनमें उत्तरकाशी के कमलाराम जी नौटियाल का जिक्र कई बार हुआ. स्वयं प्रो. डबराल उत्तरकाशी से सम्मोहित थे.

बाबा विश्वनाथ की कृपा और तत्कालीन शिक्षा सचिव के हस्ताक्षर से ऋषिकेश से ऊपर उठ मेरा उत्तरकाशी स्थानांतरण हुआ तो लाखामंडल, सेम, बूढ़ाकेदार महासू देवता हनोल की सीमा रेखाओं को छू लेने के रोमांच से मन भर उठा. अध्यापन की शुरुवात बिरला राजकीय महाविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल से 1974 में हुई थी तो उसी के साथ शुरू हुआ गढ़वाल को जानने समझने का दौर. कुछ ही दिनों में स्वामी मन्मथ से भेंट हुई तो कलियासौड़ से पैदल चल धारी देवी के दर्शन हो गए.पैदल चल गाँव गाँव जाने और अपने विद्यार्थियों के गाँव घर रहने, पहाड़ की आर्थिक हालत देखने समझने का सिलसिला 2010 में उत्तरकाशी आने के बाद जैसे अपने उत्कर्ष पर था.

यहाँ चौरंगीखाल है. हर्षिल, पाछिबिला, रैथल, मयालीसौड, नागणी ठाँग, राड़ी, सरुका, देवराना, बनचौरा, दिवारीखोल, पत्थरखोला, नागटिब्बा, पाजू धार, बाल्चा, ताल्लुका, लियाडी, कफनौल, बौख है. भागीरथी किनारे होटलों की लम्बी श्रृंखला है जिनमें से कई भयावह बाढ़ का सामना ना कर पाए.पुल भी धंसे बाजार का एक हिस्सा ही सुबह साफ था. कई कई महिने यही उत्तरकाशी एक बंद टापू बनते भी देखा. ये तो 2012 की त्रासदी थी इससे पहले भी 1978 अगस्त को अति वृष्टि से गंगनाणी से आगे डबराणी के पास पहाड़ की चट्टान टूटने से नदी अवरुद्ध हुई थी. लोग वरुणावत पर्वत पे चढ़ गए थे.

उत्तरकाशी में एक बेहतर कॉलेज तो है ही, पर्वतारोहण संस्थान भी और प्रवेश करते ही कई जगह से चू रही सुरंग भी जहां से विश्वनाथ रोडवेज ट्रक और कार जीप हरेभरे जंगलों, झाड़ियों दुर्गम हिम प्रदेशों में पाँव पसारने की अगवानी करतीं हैं. ये बात और है कि हर बरसात या कभी भी होने वाली बारिश से रस्ते जाम भी रहते हैं फिर खुल भी जाते हैं. देहरादून के लिए मसूरी वाला एकांत सी सड़क भी खुल चुकी है जिस पर सुबह 5 बजे चल सिर्फ एक स्टॉप पे रुक 11 बजे यहाँ पहुँचाती और फिर वही बस वापस राजधानी को लौट भी जाती.
(Kamla Ram Nautiyal)

उत्तरकाशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है. सालभर साधु संतों का जमावड़ा रहता है. अनेक मठ हैं आश्रम हैं. नई -पुरानी सब तरह की दुकानें हैं. तीन मंजिले चार मंजिले होटल हैं. बस अड्डे के पास के एक होटल की छत से शाम के समय बाजार के दृश्य खींचने को आतुर मेरा कैमरा अचानक ही देसी दारू के अड्डे पर टिक गया है जहां गेरूवा पहने कई किस्म की विभूत लगाए जोगी लाइन में धक्का मुक्की सी हलचल में हैं. फिर यह भी पता चलता है कि यहाँ से पांच सात कि. मी. दूर एक गाँव ही है जहां सबसे अच्छा सबसे बेहतर पहाड़ी बकरी का गोश्त मिलता है. खूब बिकता है. गाँव का नाम है हिना. खूब रेलमपेल देखी यहाँ.

लोग मिले खूब मिलनसार यहाँ के स्थानीय भी तो विदेश से कुछ लिखने के लिए एकांत चाहते बस भागीरथी के निनाद में रमने वाले नौजवान भी. और ऐसे ही एक दिन महाविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अपने चेले सोहन पाल ने चर्चा की. उसने भी  बताया कमलाराम नौटियाल के बारे में जिनके पिता दादा राजशाही के पदों पे चले, नाना उत्तरकाशी के प्रसिद्ध ज्योतिषियों में, मालगुजार भी जिनकी यजमानी खूब फैली थी. और यही कमला राम नौटियाल उत्तरकाशी में नई चेतना का प्रणेता बने.

कॉमरेड कमलाराम नौटियाल कहलाये उसी उत्तरकाशी में जहां सामाजिक और आर्थिक द्वैधताएँ सघन और गहन रूप से विद्यमान थीं. पता चला कि महाविद्यालय में जंतु विज्ञान की प्रवक्ता मधु उनकी बेटी हैं. मधु ने अपने पिता के जीवन और उनके संघर्ष पर उनकी डायरी के आधार पर किताब भी लिखी थी. उत्तरकाशी की लोकविधाओं और संस्कृति पर प्रामाणिक कम कर रहे सुरेश ममगई से भी खूब जाना.

उत्तरकाशी के ग्राम भेटियारा, पट्टी गाजणा कठूड़ के थोकदार टिहरी नरेश का कट्टर समर्थक परिवार. रियासत कालीन युग में इस परिवार के वरिष्ठ सदस्य को टिहरी नरेश की ओर से ठाणे दारी के अधिकार मिले थे. पिता श्री विद्या सागर नौटियाल जीवन भर पटवारी के पद पर रहे तो ताऊ श्री गंगा प्रसाद नौटियाल जो बनारस विश्वविद्यालय से बी. ए, एल एल बी थे, ने टिहरी नरेश श्री नरेंद्र शाह के युग में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर राज सेवा की.5 जुलाई 1930 को अपनी ननिहाल उत्तरकाशी में कमला राम नौटियाल का जन्म हुआ तो विधि की ऐसी विकट लीला कि दस बारह वर्ष का होते होते दादा, दादी, नाना, नानी ताऊ और पिता की स्नेह छाया से वंचित हो गए. मां के साथ उत्तरकाशी रहते वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल जो अब कीर्ति इंटर कॉलेज है से सातवीं तक पढ़ाई की.

आगे इंटर तक की पढ़ाई अपने चाचा के साथ रहते देहरादून के डी. ए. वी स्कूल से 1952 में पूरी की. उत्तरकाशी आए आर्थिक अभाव चरम पर थे. मां का स्वास्थ्य खराब रहता था. आगे की पढ़ाई जारी रखना संभव न था. कुछ समय स्वयंसेवक के तौर पर अपने पुराने कीर्ति हाई स्कूल में विज्ञान पढ़ाया. फिर आजीविका के लिए कमल पोथी शाला खोली जो बाद में कमल पुस्तक भंडार बनी. किताब और बच्चों के खिलौने बोरी में भर पीठ पर लाद गाँव के मेलों में बेचे.

आगे पढ़ने और कुछ कर गुजरने के दौर में 1955 में देहरादून आए और डी. ए. वी कॉलेज से बी ए, एल. एल. बी की पढ़ाई पूरी कर डाली.1957 के विधान सभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवारों को समर्थन दिया. देहरादून में का. बृजेन्द्र कुमार गुप्ता, का. गोविन्द सिंह नेगी, सावन चंद्र रमोला से घनिष्ट संपर्क बने. जिला देहरादून में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के अध्यक्ष रहे. विकास नगर में इसके प्रसार में तत्कालीन एम. पी. श्री ब्रह्म दत्त और ऋषिकेश में जुझारू किसानों का समर्थन मिला. मुदालियर कमीशन की रिपोर्ट के घृणित अंशों की खिलाफत कर रहे का.विद्या सागर नौटियाल के आंदोलन के समर्थन में कूद पड़े.
(Kamla Ram Nautiyal)

फरवरी 1960 को उत्तरकाशी टिहरी जिले से अलग कर नया जिला बना दिया गया था. कमलाराम जून 1960 से वापस उत्तरकाशी लौट आये और वकालत करने लगे.पेशेवर वकीलों की तरह अदालत में हाजिर रहना स्वभाव में न था. इस पेशे से जनसम्पर्क बढ़े तो गहराई से महसूस होने लगा कि उत्तरकाशी में कितनी गरीबी है,पिछड़ापन है,अज्ञान और अन्धविश्वास है. इन सबका एक बड़ा कारण सदियों से चली आ रही भेदभाव और सामाजिक उत्पीड़न की वह व्यवस्था है जिसके बने रहने में उस वर्ग के फायदे बने हुए हैं जिनके कब्जे में संसाधन हैं. ब्रिटिश राज के साथ टिहरी की राजशाही से भले ही प्रतीकात्मक आजादी मिल गई हो पर पूंजीवादी व्यवस्था की न्यायिक प्रक्रिया कहाँ बदली? घूसखोरी पर अंकुश कहाँ लगा? अफसरशाही का चरित्र तो देश की परतंत्रता से मुक्ति के बाद और अधिक दोगला होता जा रहा. इन सबकी लपेट में बड़ी मेहनत से जीवन यापन करता जन मानस का बड़ा हिस्सा है.वही पीस रहा, पीसा जा रहा.

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय बना तो बाड़ाहाट की उपजाऊ कृषि भूमि का जिला प्रशासन ने जबरन अधिग्रहण किया. कमलाराम ने बाड़ाहाट के किसान, स्त्री -पुरुषों को संगठित किया. जबरन कब्जे का विरोध हुआ. यह पहला आंदोलन था जिसमें अपने हक़ के लिए किसान एकजुट थे. आखिरकार अधिग्रहण रुका.750 रूपये प्रति नाली के हिसाब से किसानों को मुआवजा मिला.1960 से 1962 तक पैमाइश प्रक्रिया चली और जमीन सम्बन्धी विवादों का ताँता लग गया. कमलाराम को किसानों के हक़ की पैरवी के खूब मौके मिले.

जून 1961 को ग्राम ठाँडी -कमद की जनता के चरान -चुगान सम्बन्धी वन रक्षा आंदोलन ने जोर पकड़ा. उत्तरकाशी में इसका प्रबल विरोध किया गया. कितने गाँव वासियों पर सरकार ने मनमाने मुक़दमे थोप दिए. वनों पर ग्रामवासियों के हक़ हकूक की इस लड़ाई में आखिर सरकार को झुकना पड़ा. स्थितियां इतनी कमजोर थीं कि स्कूल और अस्पताल खोलने के लिए भी संघर्ष करने पड़े. सरकार का ध्यान पहले से स्थापित नगरों पर ही टिका रहता था. कमलाकांत ने ग्राम धौंतरी में जूनियर हाई स्कूल और अस्पताल खोलने के लिए कमर कसी.आम व्यक्ति के दुख दर्द को समझने के बजाय निकम्मे अफसर उन्हें येन केन परेशान कर प्रताड़ना की नीति अपनाते थे. हाई स्कूल के अध्यापक नारायण सिंह बिष्ट पर ऐसे ही छुटभैये अफसरों का कोप हुआ. उन्हें परेशान कर गिरफ्तार किया गया फिर पागल घोषित करा गया. कमला कांत ने अब छात्रों को एकजुट किया और अफसरशाही की निरंकुश कार्यवाही पर लगाम कसी.
(Kamla Ram Nautiyal)

1960 से 1962 तक भूमि पैमाइश के परिणाम स्वरुप भूमि लगान में अनियमित वृद्धि के मामले बढ़ते गए. इनके खिलाफ 1965-66 तक विशाल किसान संघर्ष किया गया.18 मई 1965 को राजगढ़ी कांड हुआ जिसमें अध्यापक ज्ञानीराम थपलियाल और विद्यार्थियों पर पुलिस ने बर्बर अत्याचार किए. वहीं जिलाधिकारी देशराज सिंह ने भटवाड़ी में अपने ड्राइवर से मारपीट कर दी . यही नहीं जिलाधिकारी ने नौगांव बाजार के लाला भीमा लाल के माध्यम से ठडूंगा ग्रामवासियों की भेलुथा वाली जमीन पर कब्ज़ा कर दिया.1966-67 से जनपद में ऋषिकेश की देशराज -बूटाराम फर्म ट्रांसपोर्ट का काम का रही थी. जनता यह जान गई थी कि ये फर्म जिलाधिकारी के संरक्षण में अनेक जनविरोधी कार्य करती है. तस्करी भी. जिलाधिकारी के इन काले कारनामों का भंडाफोड़ नया जमाना, मुक्ति संघर्ष और अन्य अन्य अख़बारों में किया गया.

 इस जन जागरण से प्रशासन ने 1967 में नज़रबंदी कानून में कमलाकांत को गिरफ्तार कर नौ पेज की चार्ज शीट थमा टिहरी जेल में डाल दिया. उनके साथी चन्दन सिंह राणा, धरम सिंह चौहान और केवल सिंह पंवार को भी फौजदारी के मुक़दमे लगा भटवाड़ी जेल में डाल दिया गया. इन गिरफ्तारियों से प्रबल जन विरोध हुआ. पट्टी गाँजणा -कठूड़ से दो हज़ार लोग ढोल नगाड़ों के साथ चल पड़े. पट्टी बाड़ा गड्डी और बाड़ाहाट से विशाल जुलूस उमड़ा. लोग पचीस मील तक पैदल चल जिला मुख्यालय उत्तरकाशी आ धमके. जिला कार्यालय घेर लिया गया. प्रदर्शन बढ़ते गए आखिरकार तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के हस्तक्षेप से कमला राम को बिना शर्त टिहरी जेल से रिहा किया गया.

जिलाधिकारी देशराज सिंह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में परगना मजिस्ट्रेट भटवाड़ी और डुंडा के न्यायालयों की मानहानि के दो मुक़दमे बना उनके व उनके मुख्य साथियों के खिलाफ बना कर दायर कर दिए. इनमें विद्या सागर नौटियाल, राजेश्वर उनियाल, चन्दन सिंह राणा, माया राम रतूड़ी, गोविन्द सिंह नेगी, राधा कृष्ण कुकरेती, सावन चंद रमोला, रमेश सिन्हा और योगेंद्र सिन्हा को भी अभियुक्त बनाया गया. इनकी पैरवी श्री आरिफ अंसारी,  श्री सर्वानंद डोभाल, वा श्री केशवानंद धूलिया एडवोकेट द्वारा की गई. माननीय कैलाश नाथ काटजू जस्टिस ने दोनों मानहानि के मुकदमों में उन्हें हाई कोर्ट से बरी कर अपना फैसला सुनाया. जो एक नजीर बना.

अब शुरू हुआ 1970 के दशक का ऐतिहासिक भूमि हथियाओ आंदोलन जो अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस 25 जुलाई से आरम्भ किया गया. ‘गोचर पनघट छोडेंगे -बंजर भूमि जोतेंगे ‘,’भूंमिहीन को भूमि दो-वनों का विनाश छोड़ दो ‘,’जो धरती को जोते बोये -वह धरती का मालिक है’, के नारों के साथ गरीब भूमिहीन किसानों और हरिजनों से सरकारी बंजर जमीनों पर कब्जे शुरू हुए. गिरफ्तारियां भी हुईं.आखिरकार जनजागृति से बड़ी संख्या में भूमिहीनों को राहत मिली.
(Kamla Ram Nautiyal)

अब चला ‘गढ़वाल विश्व विद्यालय बनाओ’ आंदोलन जिसकी शुरुवात 22 सितम्बर 1971 को की गई. प्रदर्शन किए गए. धरना दिया गया. इससे पूर्व 1969 में उत्तरकाशी महाविद्यालय की स्थापना के लिए अनूठा प्रयोग किया गया था जिसमें मुख्यालय में कार्यरत सभी कर्मचारियों से अपील की गई कि वह विभिन्न विषयों में अपनी रूचि के हिसाब से दाखिला लेंगे. मुहिम जारी रही और प्राचार्य भेजे गए श्री पृथ्वीनारायण चौहान जो बहुत कर्मठ विद्वान तो थे ही कुशल प्रशासक भी रहे. देखते ही देखते सुदूर के इस महाविद्यालय ने खूब नाम कमाया. 1972 में महंगाई विरोधी आंदोलन चला.

अब हुआ तिलोथ कांड जिसके लिए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने श्रीनगर गढ़वाल की विशाल जन सभा में इसकी आलोचना करते हुए जिला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. मनेरी भाली विद्युत् परियोजना के पावर हॉउस के लिए तिलोथ सेरे की जमीन पर धान की खड़ी फसल पर हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी के बुलडोज़र 25 अगस्त 1973 को खड़े कर दिए गए. धारा -144 का ऐलान कर दिया गया. कमलाराम के नेतृत्व में डेढ़ सौ किसानों के साथ भीड़ ने इलाका घेर दिया. प्रशासन बल प्रयोग पर उतर आया.महिलाओं पर लाठीचार्ज हुआ. जन समूह के साथ पुलिस पी. ए. सी की भिड़ंत हुई. जिलाधिकारी ने जुबानी गोली मारने के आदेश तक दे डाले. पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्री गिरि राज शाह ने गोली नहीं चलाई. अंततः समझौता हुआ. कब्ज़ा रुका. सेंतीस लोग विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए. मामला बढ़ा और अंततः सरकार ने तीन सौ रुपये मुआवजे की जगह पंद्रह सौ रुपए प्रति नाली का मुआवजा किसानों को दिया.

1979 की 2 अक्टूबर व फिर 11 व 12 को तिलोथ गाँव के पांच परिवारों की महिलाओं और बच्चों पर पुलिस ने जानलेवा हमला किया और घर के मर्दो को इतना मारा कि वह घर बार छोड़ कर भाग गए. इन परिवारों का सारा सामान तितर बितर कर दिया गया. लूट पाट भी की गई. शहर में धारा 144 लगा दी गई. कमला राम के विद्रोही तेवर देखते बौखलाई पुलिस ने उन्हें गुंडा एक्ट में गिरफ्तार करवा दिया. नवंबर 12 को जिलाधिकारी के न्यायालय में पेशी हुई. तब जनता पार्टी का राज था. सभी राजनीतिक भेदभाव भुलाते हुए हजारों की भीड़ ने न्यायालय परिसर में जमा हो जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया. गुंडा एक्ट में किसी भी प्रकार की कार्यवाही रिपिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा रोक लगी.
(Kamla Ram Nautiyal)

फिर हुआ धरासू गोली कांड जिसमें धरासू पावर हाउस के मजदूरों ने 1986 में राजकुमार सिविल कंस्ट्रक्शन कंपनी से अपनी न्यायोचित मांगे मनवाने के लिए आंदोलन छेड़ा था. पर कंपनी के मालिकों ने मजदूरों को आतंकित करने व मार डालने की नीयत से उन पर 5 जून को गोली चलवा दी.तेरह मजदूर घायल हुए. भय और आतंक का माहौल बना कंपनी के मालिकों ने तिलाड़ी गोली कांड की पुनरावृति कर दी. तब 30 मई 1930 को टिहरी की अत्याचारी सामंती सत्ता ने निहत्थे और निर्दोष किसानों को गोलियों की बौछार से भूना था. तब तिलाड़ी मैदान में रवाईं जौनपुर के मेहनतकश किसान व जनता चरान -चुगान, लकड़ी, घास, ईंधन की लकड़ी आदि के अपने वन सम्बन्धी काश्तकारी अधिकार की रक्षा के लिए इकठ्ठा हुए थे. अब आजादी के चालीस साल भी न बीते कि धरासू गोली कांड हो गया वह भी तब जब मजदूर उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री व क्षेत्रीय विधायक श्री बलदेव सिंह आर्य से मिलने चिन्यालीसौड़ डाक बंगले जाना चाहते थे.उसी दिन कंपनी के दलालों ने एक मजदूर के घर जा मारपीट की, बीबी बच्चों को आतंकित किया. मालिक से शिकायत करने पहुंचे निहत्थे मजदूरों पर गोलियों की बौछार कर दी गई. तेरह मजदूर घायल हुए.कमला राम के नेतृत्व में गोली कांड के खिलाफ और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए आंदोलन चला.21जून को हनुमान चौराहे पर विशाल जन सभा को सम्बोधित करते कमला राम को 61 मजदूरों व श्रमिकों के साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. छह महिने इक्कीस दिन जेल में डालने के बाद उन्हें ससम्मान रिहा कर दिया गया.अब पैर तकलीफ देने लगे थे.

धरासू गोली कांड में गिरफ़्तारी के बाद टिहरी जेल में कमला राम की तबियत बिगड़ने लगी. सरकार ने उन्हें दून अस्पताल में भरती कर दिया. ठीक होने के बाद फिर नौ महिने टिहरी जेल में डाल दिया गया.यहाँ पैर की हड्डी में संक्रमण की शुरुवात हुई. रिहा होने के बाद जाँघ की फीमर हड्डी टूट गई. इलाज के लिए एक साल दिल्ली रहे. पार्टी ने इलाज के लिए रूस भेजा.फीमर हड्डी के फ्रैक्चर होने और पाँव में स्टील रॉड पड़े होने के बावजूद अब कमला राम को उत्तरकाशी की जनता ने एक नया दायित्व सौंपा. 1989 में वह नगरपालिका अध्यक्ष चुने गए. उत्तरकाशी के आध्यात्मिक अतीत के पुनरीक्षण व प्रगति के सोपान अब जमीन से जुड़े एक साम्यवादी चिंतक ने तय करने थे.

1992 में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय समिति के सदस्य चुने गए. एक साल पहले ही उत्तरकाशी में आए भूकंप से तिहाड़, भुक्खी, सुख्खी जैसे सुदूरवर्ती इलाकों में जा पीड़ितों के समुचित मुआवजों की व्यवस्था हेतु आंदोलन करना पड़ा.1997 से विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान अल्मोड़ा के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के निदेशक मण्डल, रिसर्च एडवाइजरी समिति तथा प्रबंध समिति में सदस्य मनोनीत किया गया.इनमें रहते उत्तरकाशी जनपद के कृषि व उद्यान विकास की अनेक योजनाओं के साकार होने की राह बनी. उत्तरकाशी में चकबंदी कार्यवाही आरम्भ करने के लिए चकबंदी अधिकारी व कर्मचारियों के पद स्वीकृत हुए.

उत्तरकाशी के उद्यानों में अधिकांशतः प्राकृतिक जलस्त्रोत रहे जो प्रतिकूल मौसम में सूख जाते थे.अतः बाग बगीचों के चकों तक सिंचाई के लिए हौज, हार्वेस्टिंग टैंक, टपक सिंचाई व स्प्रिंकलर सिंचाई की व्यवस्था के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड की वित्तीय सहायता आवश्यक है. मृदा परिक्षण की व्यवस्था भी दुर्बल थी. पांच से तेरह हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर जड़ी बूटी खेती होती रही है जिसे बढ़ावा देने के लिए किसानों को पचास प्रतिशत अनुदान व अधिकतम पांच प्रतिशत ब्याज पर ऋण मिले.डुंडा व चौरंगीखाल में कृषि विज्ञान केंद्र खुलें.चिन्यालीसौड़ में ऐसा केंद्र बनने से स्थानीय कास्तकार की कई परेशानियां दूर हुईं .उत्तरकाशी के सुप्रसिद्ध माघ मेले में उन्होंने विकास प्रदर्शनी के साथ ही उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर के पर्वतीय इलाके में पैदा होने वाली साग, सब्जी, फल, फूल, बागवानी व कृषि उत्पादों की प्रदर्शनी लगाने के प्रयास किए जो 1999 के माघ मेले से संभव बने.
(Kamla Ram Nautiyal)

उत्तरकाशी में मोरी, नौगांव व भटवाड़ी विकास क्षेत्रों में बेहतरीन किस्म का सेव होता है. पर विपणन की दुर्बल हालत है. फल पेटियों की व्यवस्था हेतु वन विभाग से गिलटू लकड़ी अनुदान पर मिले. सेव के पेड़ों पर भाइक, किक्कर व ओलिया फिश बीमारी लगती है. इनका निदान जरुरी है. मौसमी फल और सब्जी अनुकूल मौसम में पर्याप्त होतीं हैं पर तब किसान को इनका उचित मूल्य नहीं मिल पाता. शीत गृह हैं नहीं. किसान की यह मज़बूरी है कि उसे घाटा सह अपना माल बेचना पड़ता है.

कमला राम ने सीमित साधनों में 1989 से 1994 तक नगरपालिका अध्यक्ष रहते स्कूल, बालशिक्षा, स्वास्थ्य सफाई, विद्युत्, मालिन बस्ती निपातन, आवासीय भवन निर्माण, सुमन वन योजना, बहुउद्देशीय ऑडिटोरियम व क्रीड़ा स्थल आयुर्वेदिक अस्पताल, उजेली के पास गंगा में टापू पर पार्क निर्माण, भागीरथी के किनारे किनारे सड़क एवं सीवर लाइन निर्माण, विविध कार्यों के संपादन के लिए ट्रेक्टर क्रय हेतु सरकार से अनुदान और ऋण प्राप्त करने के निरन्तर प्रयास किए. तत्कालीन जिला प्रशासन भी पालिका को रचनात्मक सहयोग देने में विफल रहा. जनता की शिकायतों पर तेजी से अमल करने की कोशिश हुई तो शहर में जगह जगह शिकायत बॉक्स लगवाए जिन्हें अज्ञात लोगों ने बार बार तोड़ा भी. नई पीढ़ी की विचारधारा भी साफ दिखाई दे रही थी. युवा वर्ग नशा नहीं रोजगार दो जैसे सन्देश से आकर्षित न हो तुरंत फायदे, अवसर वाद और बड़े नेताओं की पूँछ पकड़ ठेकेदारी हासिल करने को इष्ट समझने लगा था. जिन युवाओं में प्रतिभा थी वह बेहतर हासिल करने महानगरों की ओर कूच करने लगे. शायद “ब्राइस “का यह कथन चरितार्थ हो रहा था कि,’ जन तंत्र की यही खराबी है कि उसके माध्यम से हमेशा प्रतिभा रहित लोग सत्ता में आते हैं.

कमलाराम अपने सीमित साधनों में जो कर दिखाना चाहते थे उससे आगे भी अपने इलाके की समस्याओं को सुलझाना उनका जूनून था जो इस आकर्षण से और ऊर्जा ग्रहण करता रहा कि उत्तरकाशी की जनता उनकी बात समझती है और उनसे उम्मीद रखती है. इसी के सहारे उन्होंने खराब और फिर बहुत खराब सेहत के होते भी संघर्षों की कतार लगाई, सामाजिक जीवन में बेदाग रहे.1998 में ‘अमेरिकन बायोग्राफिल इंस्टिट्यूट ‘ने उन्हें “मैन ऑफ द ईयर ” चयनित कर सम्मान प्रदान किया.
(Kamla Ram Nautiyal)

24 अप्रैल 2004 को उन्हें मस्तिष्क आक्षेप पड़ा. चिकित्सकों ने बताया कि यह सर पर लगी पुरानी चोट से हुआ है. याद आया कि तिलोथ कांड के समय लाठी मारी गई थी. अब स्पीच लॉस भी होने लगा. सी एम आई देहरादून के डॉ महेश कुड़ियाल का उपचार चला. शोषण विहीन जाग्रत समाज का स्वप्न आँखों में लगातार तैरता. समाज में विषमता कम कर सकें यह भावना सबके भीतर समावेशित हो सके यही सोच आखिरी सांस तक रही कि :

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार अब तो पथ यही है,
मुझको तो जीवन भर चन्दन ही रहना है.

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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