अगर आप कभी पिथौरागढ़ गये होंगे तो कामख्या देवी के मंदिर से जरूर वाकिफ़ होंगे. पिथौरागढ़ झूलाघाट मार्ग पर स्थित सैनिक छावनी के ठीक ऊपर पहाड़ी पर एक भव्य मां कामाख्या मंदिर है. सैन्य छावनी क्षेत्र के ठीक ऊपर बना यह मंदिर कुसौली गांव की पहाड़ी में निर्मित है.
पिथौरागढ़ मुख्यालय से इस मंदिर की दूरी 6 किमी है. इस मंदिर की स्थापना 1972 में मदन मोहन शर्मा के प्रयासों से हुई थी. 1972 में मदन मोहन शर्मा ने जयपुर से छः सिरोंवाली मूर्ति लाकर यहां स्थापित की थी.
छः नाली में फैले इस मंदिर के निर्माण में 69 माउंटेन ब्रिगेड ने भी अपना सहयोग दिया है. मंदिर में शिव, बटुकदेव, भैरव, हनुमान और लक्ष्मीनारायण की भी मूर्तियां हैं. इस मंदिर की व्यवस्था वर्तमान में भी शर्मा परिवार ही देखता है.
कामाख्या मंदिर में नवरात्रि के दिनों दस दिनों तक अखण्ड ज्योति जलाने के साथ अष्टोतर पूजा की जाती है. यहां प्रत्येक नवरात्रि में भोग लगाया जाता है. नवरात्रि के अतिरिक्त यहां मकर संक्रान्ति, जन्माष्टमी, शिवरात्रि में भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है. मंदिर में इन दिनों भजन और कीर्तनों का भी आयोजन किया जाता है.
कामाख्या मंदिर का मुख्य द्वार बंगला शैली में निर्मित है. इस मंदिर परिसर में बैठने के लिए कई छत्रियों का निर्माण किया गया है. मंदिर परिसर में बनी मुख्य छत्री का निर्माण कर्नल एस.एस.शेखावत ने करवाया है. इस मंदिर को सजाने संवारने में विशेष योगदान आर्किटेक्ट डी.एल.साह का रहा है.
कामाख्या मंदिर परिसर में शुद्ध जल की व्यवस्था सौड़लेक पहाड़ी के ‘गंथर’ स्त्रोत से की गयी है. इस मंदिर से सामने की ओर पिथौरागढ़ हवाई के नैनी सैनी हवाई पट्टी की भव्य छवि दिखती है.
कामाख्या मंदिर में कुछ व्यू पाइंट भी हैं. मंदिर से एक और तो सुंदर सीढ़ीदार हर भरे खेत दिखते हैं दूसरी तरफ झुलाघाट-पिथौरागढ़ सड़क के किनारे बसी घनी आबादी. मदिर परिसर के पिछले हिस्से में स्थित व्यू पाइंट से सूर्योदय व सूर्यास्त के अनुपम नजारे दिखते हैं.
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Jai ho Uttra Khand