संस्कृति

कलुवावीर : उत्तराखण्ड के लोकदेवता

कलुवा शायद एक नागपंथी सिद्ध था. अपनी सिद्धियों की वजह से ही उसने इस पंथ में अपनी ख़ास जगह बना ली थी. कलुवावीर के बारे में कुमाऊँ और गढ़वाल मंडलों में अलग-अलग जनश्रुतियां चलन में हैं. (Kalwavavir Lokdevata Uttarakhand)

कुमाऊँ में प्रचलित गोलू देवता के अनुसार कलुवावीर का जन्म गोलू के जन्म के समय उनकी माता कन्नरा के प्रसवजन्य उस रक्त से हुआ था जिसे उसकी सौतों ने एक बट्टे में लपेट दिया था तथा गोलू को गोठ में छिपाकर कन्नरा से कहा था कि तेरे गर्भ से यही बट्टा जन्मा है. नाम में समानता होने की वजह से कुछ लोग इसे कुमाऊँ के लोकदेवता कलबिष्ट से भी जोड़ते हैं जो कि गलत है.

इस बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें : गोलू देवता की कहानी

कुमाऊँ में इसे कलिनारा का पुत्र गोरिया का भाई माना जाता है. इसकी जागर का आयोजन ख़ास तौर से पाली पछाऊं के शिल्पकारों द्वारा किया जाता है.

कलुवावीर की जागर गाथा में बताया जाता है कि इसका जन्म कैलाघाट में हुआ. इसे मारने के लिए इसके हाथों में हथकडियां, गले में घनेरी और पांवों में बेडियां डालकर गहरे गड्ढे में फेंक दिया गया. इस गड्ढे को बड़े सी चट्टान से ढंक दिया गया, लेकिन वह इस सबको तोड़कर बाहर निकल आया.

इसे भी पढ़ें : जटिया मसाण और गोलू देवता की कथा

शायद काले रंग का होने के कारण इसे कलुवावीर कहा गया होगा, इसे काला, कलुवा भी कहा गया. कलुवा वीर के 12 बयाल और 4 वीर चलते थे— रागुतुवावीर, सोबुवावीर, लोड़िया वीर, और चौथियावीर.

गढ़वाल में कलुवावीर को अलग रूप में माना जाता है. वहां इसे नागपंथी वीरों में एक लोकदेवता के रूप में पूजा और नचाया जाता है. वहां इसे प्रचण्ड देवशक्ति माना जाता है. गढ़वाल में मान्यता है कि पीड़ित व्यक्ति की गुहार पर यह दूसरे पक्ष को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है.   

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष : प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago