देहरादून से कालसी की ओर जाते हुये कालसी से कुछ दूर पहले यमुना नदी से एक छोटी से नदी मिलती है अमलावा. अमलावा और यमुना नदी के संगम पर स्थित है मौर्य राजा अशोक के चौदह शिलालेखों में 13वां शिलालेख.
कालसी यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित एक छोटा सा क़स्बा है जो देहरादून से करीब 70 किमी की दूरी पर स्थित है. इसका प्राचीन नाम खलतिका था इसके अन्य नाम कालकूट व युगशैल भी मिलता है.
महाभारत काल में कालसी का शासक राजा विराट था और उसकी राजधानी विराटनगर थी. अज्ञातवास के समय पांडव रूप बदलकर राजा विराट के यहाँ ही रहे थे. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने सातवीं सदी में इस क्षेत्र को ‘सुधनगर’ नाम से पहचाना.
माना जाता है कि कालसी के स्तूपों का विनाश 1254ई. में संभवतः “नसीरुद्दीन महमूद” द्वारा किया गया. ब्रिटिश व्यक्ति फारेस्ट ने इसकी खोज 1860 ई० में की थी.
कालसी अभिलेख एक बड़ी चट्टान पर बना है. इस शिलालेख में हाथी की आकृति बनी है जिसके नीचे गजेतम शब्द लिखा है. हाथी को आसमान से उतरते हुये दिखाया गया है. इस संरचना की ऊंचाई 10 फुट और चैड़ाई 8 फुट है
प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखे गये इस शिलालेख में कालसी क्षेत्र को “अपरांत” व कालसी निवासियों को “पुलिंद” शब्द से संम्बोधित किया गया है. शिलालेख अशोक के आंतरिक प्रशासन से संबंधित है.
शिलालेख में सम्राट के पशुओं को अनावश्यक मारने पर प्रतिबंध, जानवरों और इंसानों के लिए स्वास्थ्य सुविधा, युद्व घोष के स्थान पर धम्म घोष द्वारा विजय का उल्लेख किया गया है.
कालसी शिलालेख की कुछ तस्वीरें देखिये :
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