Featured

कल्पकेदार: सत्रहवीं शताब्दी का पौराणिक शिव मंदिर

साल 1945 में धराली के ग्रामीणों को गंगा नदी के किनारे मंदिर का शीर्ष भाग नजर आया. कौतुहल के साथ ग्रामीणों ने खुदाई शुरू की. लगभग 14 फीट की खुदाई के बाद कल्प केदार मंदिर समूह का एक समूचा शिव मंदिर सही-सलामत सामने था. इस मंदिर को भी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में खीर गंगा नदी में आयी भीषण बाढ़ में बहा या मलबे में विलुप्त हुआ मान लिया गया था. ग्रामीणों द्वारा मंदिर तक जाने के लिए रास्ता बनाया गया. धराली उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर 73 किमी की दूरी पर है. भागीरथी और खीरगंगा का संगम स्थल धराली पौराणिक काल में श्यामप्रयाग के नाम से पुकारा जाता था.

धराली में सड़क से लगभग 60 मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर कल्पकेदार मंदिर समूह का हिस्सा है. माना जाता है कि यह उन्हीं मंदिर समूहों में से एक है जिसे आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म के उत्थान की गरज से बनाया था. कुछ लोग मंदिर समूह में 240 मंदिर तक होना बताते हैं. लेकिन इस बात का स्पष्ट प्रमाण कि यहाँ एकाधिक मंदिर हुआ करते थे. 1869 में गंगा-गौमुख क्षेत्र के भ्रमण पर निकले ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन द्वारा लिए गए फोटोग्राफ में कल्पकेदार के मौजूदा मंदिर के साथ 2 अन्य मंदिर भी दिखाई देते हैं. यह तस्वीर आज भी पुरातत्व विभाग के पास संरक्षित है, स्थानीय ग्रामीणों के घरों, प्रतिष्ठानों में भी इस तस्वीर की प्रतिलिपि दिखाई देती है. इस तस्वीर में भागीरथी नदी मंदिर के आज के बहाव की दिशा के विपरीत बहती दिखाई देती है. यानि जब यह तस्वीर ली गयी उस समय नदी वहां पर बहा करती थी जहाँ आज उत्तरकाशी गंगोत्री हाइवे है.

कल्प केदार केदारनाथ की ही शैली में बना मंदिर है. आज मंदिर का प्रवेशद्वार सड़क से 60 मीटर की दूरी पर 12 फीट की गहराई में है. प्र्स्वेश द्वार से मंदिर के गर्भगृह की गहराई करीब 20 फीट है. कल्पकेदार शिव मंदिर है. मंदिर के गर्भगृह में शिवजी की सफ़ेद मूर्ति स्थापित है. मंदिर परिसर में शिवलिंग, सिंह, नंदी के अलावा घड़े की आकृति बनायीं गयी है. इसके अलावा परिसर में शिवजी की एक आधुनिक मूर्ति भी है. मंदिर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की आकृतियां लिए बेहतरीन नक्काशी की हुई है. पुरातत्वविद कल्पकेदार और धराली में मौजूद अन्ह्य अवशेषों को 17वीं शताब्दी का बताते है.

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि धराली क्षेत्र में खुदाई करने पर भूस्खलन और बाढ़ की भेंट चढ़ चुके मंदिर समूह में से कुछ को पूरी तरह और शेष के अवशेषों को बाहर निकाला जा सकता है. पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago