Featured

उतीस के पेड़ का रहस्य और नीम करौली महाराज

आज 15 जून है, यदि सामान्य स्थिति होती और पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से नहीं जूझ रहा होता तो कैंची धाम के मन्दिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह की वर्षगांठ पर लाखों की संख्या में लोग कैंची धाम की ओर उमड़ रहे होते, लेकिन पिछले 56 वर्षों से अनवरत् मनाया जाने वाला यह पर्व इस वर्ष नहीं होगा, यह भक्तों के लिए निराशाजनक है. मन्दिर प्रबन्धसमिति ने सभी श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि वे अपने-अपने घरों से ही नीमकरौली महाराज से इस महामारी से बचाने के लिए अपने अपने घरों से प्रार्थना करें. यों भी लीलाधाारी सर्वव्यापी महाराज की कृपा भाजन के लिए जरूरी नहीं कि धाम में ही जाया जाय, यदि मन में अटूट श्रद्धा है तो वे सर्वत्र सुलभ हैं.
(Kainchi Dham Mela 2020)

कैंचीधाम मेरा जन्मस्थान भी हैं, लेकिन मैं इसे सौभाग्य कहॅू अथवा छुटपन के अनुरूप अपनी अनभिज्ञता का दुर्भाग्य कि ऐसे विश्वविख्यात सन्त की महिमा तब हमारे समझ से परे थी और सान्निध्य का अवसर चूकना एक महान भूल। कैंची धाम में महाराज जी के प्रवास पर्यन्त भण्डारा होता और बचपन मंे यही हमारा आकर्षण का केन्द्र हुआ करता. जब किशोर वय में थोडा होश संभाली तब 1973 में महाराज जी  महानिर्वाण को प्राप्त हो गये थे. कुल मिलाकर हमारे हिस्से रहा, उनका 9 वर्ष का दर्शन लाभ किसी उपलब्धि से कम नहीं है. तब  जो बातें हमारी नजरों में कोई विशेष महत्व नहीं रखती थी, आज उन गूढ़तम रहस्यों का अहसास होता है.

कैंची धाम की प्राण प्रतिष्ठा के समय केवल तीन मन्दिर- भगवान शिव, लक्ष्मीनारायण तथा बजरंग बली हनुमान के बने थे और उसी के पास की कुटिया के छोटे कमरे में महाराज जी के दर्शन होते, इसी भवन के एक कक्ष में आश्रम का कार्यालय संचालित होता. कभी कभी अपनी कुटिया की खिड़की से ही महाराज जी भक्तजनों को दर्शन दिया करते.

’चमत्कार को नमस्कार’ पर विश्वास करने वाली ये दुनिया तब तक किसी महापुरूष पर आसानी से विश्वास नहीं करती, जब तक कोई अविश्वसनीय घटना उनसे जुड़ी न हों? लेकिन जिसकी सारी लीलाऐं ही चमत्कारों से अटी पड़ी हों, कौन ऐसा भक्त होगा जो उन पर आस्था न रखे? कम से कम आध्यात्मिकता से न सही भौतिक सुखों की चाह में हरेक शरण में आना ही चाहता है. नीमकरौली महाराज के चमत्कारों से उन पर लिखा साहित्य अटा पड़ा है. जिन चमत्कारों से प्रभावित होकर सात समुन्दर पार के हार्वड यूनिवर्सिटी के प्रोफसेर डॉ. एल्बर्ट रामदास, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स व फेसबुक के संस्थापक जुकरबर्ग जैसी शख्सियतों का पूरा जीवन ही रूपान्तरित हो गया, ऐसे चमत्कारी सन्त के चमत्कारों समझ  पाना भी एक औसत इन्सान के लिए कठिन था.
(Kainchi Dham Mela 2020)

एक ऐसे ही चमत्कार से मैं आपको रूबरू करा रहा हॅू, जो आज भी प्रमाण स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में उपस्थित है. यदि आप कैंची धाम गये हैं, तो यज्ञशाला के ठीक सामने एक पेड़ के नीचे  पूजास्थल की तरह एक शिला पर पुष्पों से सुशोभित चबूतरा अवश्य देखा होगा. दरअसल यही वह शिला है, जहां महाराज स्थापना के प्रारम्भिंक वर्षों में कंबल बिछाकर इस पर बैठा करते. बजरंग बली के अवतार महाराज नीमकरौली स्थूलकाय होते हुए भी हनुमान जी की ही भांति कभी किसी ऊॅची शिला पर अपना आसान जमा लेते तो कभी उस समय बनी लकड़ी की पुल अथवा सड़क के किनारे बने ऊॅचे पैराफिट उनकी पसन्दीदा जगह होती. तब मन्दिर निर्माण अपने प्रारम्भिक दौर पर था, शिला से लगा हुआ उतीस का एक विशालाकाय जीर्ण-शीर्ण पेड़ था,जिसकी अधिकांश शाखाऐं सूख रही थी. उस पेड़ की छांव में ही महाराज जी शिला पर बैठा करते.

उतीस पहाड़ी इलाकों में जंगलों में पायी जाने वाली प्रजाति का एक बड़ा वृक्ष होता है, जो नमी वाली जगहों पर पाया जाता है. वृक्ष काफी पुराना होने से उसकी लगभग आधी टहनियां सूख चुकी थी. महाराज ने अपने स्थानीय शिष्य पूर्णानन्द तिवारी को बुलाया और हुक्म दिया- ’’ पूर्णानन्द ! इस पेड़ की जड़ में पानी दो  और यह कार्य तुम्हें नियमित रूप से करना है. ’’ समीप बैठे लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगे, आखिर इतना बड़ा वृक्ष, वह भी जो अपनी उमर पूरी कर चुका है, जिसकी जड़े कई कई मीटर दूर तक फैली होंगी, भला एक बाल्टी पानी से हरा भरा कैसे हो जायेगा? लेकिन महाराज का हुक्म था, तो तर्क-वितर्क करने का सवाल ही नहीं था. पूर्णानन्द तिवारी का उतीस के पेड़ को पानी देना नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन गया. पेड़ दिनोंदिन हरा होता गया, और लोग हैरान रह गये कि कुछ ही समय के बाद बहुत पुराना जीर्ण-शीर्ण वृक्ष अपने पूरे यौवन में आ गया, जो आज भी यज्ञशाला के सामने देखा जा सकता है.

चित्र में मन्दिर के पृष्ठभाग में यह विशालकाय वृक्ष स्पष्ट देखा जा सकता है.  जिसने प्रकृति के पांचों तत्वों पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने अधीन कर लिया हो, अष्ट सिद्धि प्राप्त ऐसे महान सन्त के लिए यह एक सामान्य सी बात थी.
(Kainchi Dham Mela 2020)

नीम करौली महाराज से विनम्र प्रार्थना है कि सदैव जनमानस के कष्टों को अपने कंबल में समेट लेने वाले महाराज,कोरोना महामारी के विपत्तिकाल में सम्पूर्ण विश्व को इस संकट से उबारें.

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago