भाई साहब मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम के भक्त हैं. दुआ सलाम “जै राम” के उदघोष से करते और आह भरते तो “हे राम” कहते. दिनभर में न जाने कितनी बार राम का नाम लेते. किसी बात पर अटकते तो कहते “सब राम की माया” है. माथे पर लंबा टिका लगाये रहते. धार्मिक क्रिया-कलापों में बढ़-चढ़कर भाग लेते तथा लोगों की इन गतिविधियों के प्रति उदासीनता से नाराज रहते. किसी को चोरी के शक या किसी संगीन जुर्म में कूटना होता तो सबसे आगे होते. वे इलाके के स्वयंभू नेता थे.
भाई साहब सोशल मीडिया में भी खूब सक्रिय थे. मगर यहां उनका दूसरा ही रूप नजर आता था. अपनी डीपी उन्होंने “जै श्री राम” के नाम से बनाई हुई थी. खुद तो उन्हें दो अक्षर लिखने नहीं आते थे, मगर किसी फैक्ट्री से प्रसारित होने वाले ब्रह्म ज्ञान को वे नियमित रूप से आगे बढ़ा देते थे. इस ब्रह्म ज्ञान में नेहरू, गांधी, अकबर तथा समाजवादियों के काले कारनामों का जिक्र होता. बताया जाता कि कैसे प्राचीन भारत में विमान उड़ाने की तकनीक खोज ली थी. सारा आधुनिक ज्ञान अपने वहाँ पहले से मौजूद था.
भाई साहब की इस तरह की पोस्टों पर कोई सवाल उठाता तो वे तुरंत नाराज हो जाते और ऐसे लोगों को छद्म बुद्धिजीवी, सेक्युलर, वामपंथी तथा माओवादी कहकर चुप कराने की कोशिश करते. कोई उनसे पूछ ले कि ये सेक्युलर या वामपंथी होता क्या है तो वे बातचीत को तुरंत दूसरी दिशा में मोड़ने में दक्ष थे. वे चर्चा-परिचर्चा पर बिलकुल यकीन नहीं रखते थे. उन्हें लगता था जो भी ज्ञान “ब्रह्म ज्ञान” फैक्ट्री से आ रहा है, वही अंतिम है.
भाई साहब को देश की हमेशा चिंता लगी रहती थी. मगर यह चिन्ता जबानी जमा-खर्च से आगे नहीं बढ़ पाती थी. उन्हें एक और विशेष ज्ञान था कि जो भी व्यक्ति लोकतंत्र, समानता तथा धर्मनिरपेक्षता की बात करता है वह कम्युनिस्ट है. भाई साहब मुसलमानों को शक की दृष्टि से देखते थे. पता नहीं किसने उन्हें समझा दिया था कि मुसलमान देश से प्यार नहीं करते. उन्होंने अखंड भारत को विभाजित करवा दिया. उनके पास मुसलमानों तथा समाजवादियों के कुकर्मों की इतनी कहानियां थी कि जैसे ही सुनाने लगते तो उत्तेजना के मारे उनकी सांस धौकनी की तरह चलने लगती और गुस्से से कांपने लगते.
मुसलमानों से घृणा के बावजूद भाई साहब उन्हीं से सब्जी लेते. लकड़ी का काम उन्हीं से करवाते. मोटरसाइकिल सलीम से ठीक करवाते. भाई साहब को इन मुसलमानों में कभी कोई बुराई नजर नहीं आयी. उनका कभी किसी देहद्रोही मुसलमान से सामना नहीं हुआ. फिर भी अपनी इस घृणा को वे लोगों तक आगे बढ़ाते रहते थे. कोई उनसे पूछता कि जब मुसलमानों को लेकर आपके दिमाग में इतना संशय और शिकायतें हैं तो अखंड भारत में आप उनके साथ कैसे रह पाते. शायद भाई साहब ने इस तरह से कभी सोचा ही नहीं था.
भाई साहब का संकट ही यही था कि उनके पास अपना कुछ भी नहीं था. जो था ब्रह्मज्ञान कंपनी का था. मसलन उन्हें यह भी पता नहीं था कि राम हद दर्जे के विनम्र और उदार थे. राम ने “शिव धनुष” तोड़ने का धर्म विरुद्ध कार्य किया था. जब परशुराम ने दहाड़ते हुए कहा कि शिव धनुष किसने तोड़ा है तो उन्होंने लक्ष्मण की तरह गुस्से से फुँफकारने के बजाय विनम्रता से कहा था. ‘सर, शिव धनुष तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा.’
राम को जब पता चला कि पिताजी ने केकैयी को उनके वनगमन पर सहमति दे दी है, तो गुस्से में पिताजी से झगड़ने और शिकायत करने के बजाय वे तुरंत वन जाने को तैयार हो गए. भाई साहब को यह भी पता नहीं था कि राम को रोकने की जब कोई सूरत नहीं बन रही थी तो दशरथ ने राम से कहा कि वे उन्हें कैद करके कारागार में डाल दें और सिंहासन पर बैठ जाएं. राम ने वनगमन को टालने के लिए दिए गए इस व्यवहारिक सुझाव को भी खारिज कर दिया था तथा इसे रघुकुल की रीति-नीति के विरुद्ध ठहराया था.
भाई साहब को यह भी पता नहीं कि जब भरत अपनी माताओं, गुरुओं, दरबारियों, जनता तथा सेना को लेकर राम को किसी भी हाल में लिवा लेने चित्रकूट गए तथा महर्षि वशिष्ठ ने पिता की मृत्यु हो जाने, केकैयी द्वारा अपनी गलती को स्वीकार कर लेने तथा भरत द्वारा राजगद्दी स्वीकार न करने की नई परिस्थिति में राम के लिए गद्दी संभालने में किसी प्रकार की नीति संबंधी अड़चन न होने की बात कही, तब भी राम ने पिता के वचन को निभाने के नाम पर अयोध्या लौटने से साफ मना कर दिया.
चित्रकूट से अयोध्या केवल चार दिन की दूरी पर था. अयोध्या से आये दिन लोग प्रशासन संबंधी मामलों की शिकायतें लाकर राम को परेशान किया करते थे. राम इसे वनवास में दखलंदाजी के रूप में देख रहे थे. अयोध्या से दूर होने के लिए वे सीता तथा लक्ष्मण के साथ दंडकारण्य की ओर चले जाते हैं. दूसरी ओर भरत राम के खड़ाऊ राजगद्दी में रखकर स्वयं नंदी ग्राम वन की ओर चले जाते हैं ताकि कोई उन पर आरोप न लगा सके कि वे लाभ के पद पर रहे और उन्होंने पद का दुरुपयोग किया.
भाई साहब शायद यह भी नहीं जानते कि राम का युग स्त्रियों के प्रति बड़ा निर्मम था, उसी की वजह से राम के उज्ज्वल चरित्र पर कुछ धब्बे भी दिखाई पड़ते हैं. पुरषोत्तम, उदार तथा नीतिवान राम यह जानते हुए भी कि सीता निर्दोष है, उसकी अग्नि परीक्षा लेते हैं. बाद में एक नागरिक के कहने पर गर्भवती सीता को राज्य से निकाल देते हैं.
बहरहाल भाई साहब, जो सोचें जो करें. यह उनका काम है. हम तो यही चाहते हैं कि भाई साहब जिन राम का सोते-जागते नाम लेते रहते हैं. कम से कम उनके जीवन तथा आदर्शों के बारे में जानें तो सही. यह तो समझें कि उनकी ब्रह्म ज्ञान कंपनी के कर्ताधर्ता भी सत्ता को लेकर राम का जैसा ही दृष्टिकोण रखते हैं या केकैयी की तरह सत्ता पाने की जुगत में लगे हैं. उम्मीद है किसी न किसी दिन भाई साहब को राम के चरित्र का ज्ञान हो जायेगा. तब उनका गुस्सा, शिकायतें और बेचैनी भी दूर हो जाएगी. पता नहीं वह दिन कब और कैसे आयेगा?
दिनेश कर्नाटक
भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत दिनेश कर्नाटक चर्चित युवा साहित्यकार हैं. रानीबाग में रहने वाले दिनेश की कुछ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. ‘शैक्षिक दख़ल’ पत्रिका की सम्पादकीय टीम का हिस्सा हैं.
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Comment...agreed and practical column.
hmmm......shmt.
vichar pwitr hon ya na hon vaegyanik jroor hone chahiye.kuki ek din pryog ki ksoti pr khra utrte hi use.......ha ha ha ha .pwitrr v ho jana h
जै श्री राम का उदघोष करते ये एक मात्र भाई साहब नहीं हैं.कमोबेश सारे देश में इनकी बाढ़ सी आ गई है. दुखद पहलू है कि यह बाढ़ अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जा रही है.अच्छा भी और बुरा भी.क्योंकि उसे समझ नहीं है कि जिसका उदघोष वे लगा रहे हैं उसे समझें.हमारे देश में श्रुतियों का आरंभ से ही बहुत महत्व रहा है. अनेक आख्यान और पौराणिक कथाएं श्रुतियों के माध्यम से ही हम तक पहुंची हैं.राम का चरित्र भी हमारे यहां पढ़ा कम और सुना अधिक गया है. समझा तो बिल्कुल भी नहीं गया है.
सारी समस्याओं की जड़ यही है.
जब भैया जी जैसे लोग समझ का उपयोग करेंगे तभी धार्मिक कथाओं और आख्यानों की सही व्याख्या होगी.जो निश्चित ही समाजोपयोगी होगी.
दिनेश कर्नाटक जी ने अपनी लेखनी से यही बताने की कोशिश की है.
वर्तमान स्थिति पर सटीक टिप्पणी की है आपने साधुवाद..बधाई और शुभकामनाएं
Congratulations to the author for raising a very relevant topic,when ppl immitate the chracters without understanding/realising their depth....
यथार्थ।
यह बात सही है कि मुसलमानो, जिन्हें आप नही जानते हैं, को शक की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन यतार्थ में जो मुसलमान आपके सहकर्मी हैं, या जिनसे आपके रोजमर्रा के काम होते हैं, उनसे किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता है।
काफल ट्री से दिनेश कर्नाटक जैसे गहरे लेखकों का जुड़ना उम्मीद जगाता है। बढ़िया।
दिनेश कनार्टक जी,
बहुत प्रासंगिक आलेख है। इस तरह के लोग अक्सर टकराते रहते हैं। राम के बारे में जानकारी कुछ नहीं और जाप धन भर चलता रहता है।
इस मारक व्यंग्य के लिए आपको बहुत बधाई।
कर्नाटक जी बेहतरीन आलेख।