पिथौरागढ़ जिले में आज जौलजीबी के मेले का आयोजन किया गया. जौलजीबी कस्बा पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 68 किमी की दूरी पर बसा है. जौलजीबी कस्बा गोरी और काली नदी के संगम पर बसा है. Jauljibi Mela 2019
तीन देशों की लोक संस्कृति को संजोये यह मेला वर्षों से चल रहा है. जौलजीवी मेले को प्रारम्भ करने का श्रेय अस्कोट के पाल ताल्लुकदार स्व. गजेन्द्रबहादुर पाल को जाता है. उन्होंने यह मेला सन् 1914 में प्रारम्भ किया था. स्कन्द पुराण में भी वर्णित है कि मानसरोवर जाने वाले यात्री को काली-गोरी के संगम पर स्नानकर आगे बढ़ना चाहिये. Jauljibi Mela 2019
मार्गशीर्ष माह की वृश्चिक संक्रान्ति को मेले का शुभारम्भ संगम पर स्नान से होता था. वर्ष 1974 तक पाल रियासत के वारिसों के हाथ में जौलजीबी मेले की बागडोर रही. बाद में वर्ष 1975 में यूपी सरकार ने मेले को अपने हाथों में ले लिया और तभी से ये मेला देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर 14 नवम्बर से मनाया जाने लगा.
1962 में चीनी आक्रमण से पूर्व मेले में तिब्बत और नेपाल के व्यापारियों की सक्रिय भागीदारी होती थी. लेकिन भारत चीन युद्ध के बाद से तिब्बती व्यापारियों और कौतिक्यारों का जौलजीबी मेले में आना बंद हो गया. आज भले ही तिब्बती व्यापारी इस अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक-व्यापारिक मेले में शिरकत नहीं करते लेकिन भारत-चीन के मध्य होने वाले स्थलीय व्यापार के जरिये भारतीय शौका व्यापारियों द्वारा तिब्बत से आयात किया गया माल जौलजीबी मेले में बेचा जाता है. इस मेले में तिब्बती सामान की भारी खरीद होती है.
पिछले 10-15 सालों से इस मेले में मेरठ, लुधियाना, कानपुर, कोलकाता के व्यापारियों तथा हल्द्वानी, बरेली, रामनगर और टनकपुर मण्डियों के आढ़तियों की आमद लगातार बढ़ी है. अब परम्परागत वस्तुओँ के स्थान पर आधुनिक वस्तुओं का क्रय-विक्रय ज्यादा होने लगा है. मेले में जिला बाल विकास, खादी ग्रामोद्योग, उद्यान विभाग, सूचना विभाग, जनजाति विकास विभाग कृषि-बागवानी आदि विभागों द्वारा स्टॉल तथा प्रदर्शनी भी लगाई जाती है. इसके अतिरिक्त झूले-सर्कस आदि के साथ-साथ स्थानीय विद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है.
काफल ट्री को जौलजीबी मेले कि सभी तस्वीरें संजय परिहार और प्रेम परिहार ने भेजी हैं.
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