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उत्तराखण्ड मूल की फिल्म निर्देशिका पुष्पा रावत का इंटरव्यू

पहली बार उस लड़की से मिलिए तो उसमें आपको एक निहायत भोली और ठेठ पहाड़ी लड़की नज़र आएगी. सादगी से भरी उसकी शुरुआती बातें आपके पहले इम्प्रेशंस से मेल खाएंगी. फिर आप उसकी बनाई फ़िल्में देखिये. उसके बाद वह आपके सामने पहाड़ जितनी मज़बूत और बेहद दिलेर स्त्री में तब्दील हो जाएगी. हम उत्तराखंड की युवा और संभावनाशील पुरुस्कृत फिल्मकार पुष्पा रावत की बात कर रहे हैं.

 2016 के अंत में हल्द्वानी फिल्म फेस्टिवल के दौरान पुष्पा रावत की फिल्म ‘मोड़’ दिखायी गयी थी. इस फिल्म के प्रदर्शन दौरान सुचित्रा अवस्थी ने पुष्पा रावत का इंटरव्यू  किया था. सुचित्रा अवस्थी उत्तराखण्ड मुक्त  विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की असिटेंट प्रोफेसर हैं.  

Read the post in English : Interview with Uttarakhand Film Director Pushpa Rawat

सुचित्रा अवस्थी- पुष्पा जी क्या आप हमारे पाठकों को अपना परिचय दे सकती हैं?

पुष्पा रावत- मैं चौखुटिया ब्लॉक, अल्मोड़ा से हूं. हालांकि, मैंने गाजियाबाद से शिक्षा प्राप्त की है. मैंने विद्यावती पीजी कॉलेज, मेरठ विश्वविद्यालय, गाजियाबाद से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है.

सुचित्रा अवस्थी- फिल्म बनाने का विचार आपको कैसे आया?

पुष्पा रावत- कैमरा हमेशा मेरे लिए आकर्षण की वस्तु रहा है. मैंने बचपन से ही कैमरे के साथ बहुत से प्रयोग किये हैं. शुरुआत में जब मेरे पास अपना कैमरा नहीं था, तो मैं अपने पड़ोसियों से मांग लेती थी और तस्वीरें लेती थी. मैं एक उत्साही शौकिया फोटोग्राफर थी और जो भी चीज मेरा ध्यान खीचती मैं उसका फोटो खीच लेती. मैं ऐसा इसलिये करती थी क्योंकि मैं चीजों को अपने नजरिये से देखना चाहती थी. मैं फिल्म रोल खरीदने के लिये पैसे बचाती थी. जब फिल्म रोल से फोटो बनाने की बात होती तो मेरी माँ मुझे बहुत डांटती भी थी क्योंकि एक मध्यमवर्गीय परिवार जिसके लिये एक-एक पैसा मायने रखता है उसके लिये यह बहुत खर्चीला था

2007 में मैंने नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय बाल भवन में प्रवेश लिया और कैमरे के प्रति लगाव के कारण फोटोग्राफी विभाग से जुड़ी. वहां पर मैंने वरिष्ठ व प्रसिद्ध  फोटोग्राफर आशीष भटाचार्य जी के निरीक्षण में कैमरे के विभिन्न पहलुओं को समझा और जाना. उसी दौरान वहां पर दस दिन की वीडियोग्राफी कार्यशाला और नैनीताल घुमने का प्रस्ताव, दोनों विकल्प के रूप में सभी बच्चों के सामने रखे गये. अब मैं या तो विडियोग्राफी सीख सकती थी या नैनीताल घुम सकती थी.  मैंने सोचा की शायद मुझे वीडियोग्राफी स्किल्स सीखने का दुबारा मौका नहीं मिलेगा जबकि नैनीताल हमेशा मेरे लिये बाहें खोलकर स्वागत करता रहेगा. मैंने इसे वीडियोग्राफी स्किल्स सीखने के एक अच्छे मौके के तौर पर देखा और वीडियोग्राफी कार्यशाला में जाने का फैसला लिया. प्रसिद्ध डॉक्यूमेंट्री फिल्म-मेकर अनुपमा श्रीनिवासन ने हमें डॉक्यूमेंट्री बनाने के बारे में महत्त्वपूर्ण टिप्स दिये और मेरे फिल्म बनाने का सफ़र शुरू हुआ. कार्यशाला का हिस्सा रहते हुये मैंने सात अन्य बच्चों के साथ मिलकर दृष्टिहीन लोगों के जीवन पर आधारित एक लघु और अपने जीवन की पहली फिल्म नज़र  बनायी.

सुचित्रा अवस्थी- क्या आपने इस कार्यशाला के अलावा फिल्म बनाने की अन्य कोई औपचारिक ट्रेनिंग ली है?

पुष्पा रावत- नहीं, इसके अलावा मैंने फिल्म मेकिंग की कोई अन्य औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली है. मेरे लिये अनुपमा मैम ही सबसे बड़ी मेन्टर  और मार्गदर्शक रही. फिल्म निर्माता के रूप में मेरी स्किल्स के विकास में वह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. वह खुले मन से मेरे साथ विचार साझा करती हैं और मुझे सुझाव भी देती हैं जो फिल्म मेकर के रूप में मुझे मजबूत बनाने में बहुत अधिक सहायक होते हैं. मैम के अलावा मेरी ज़िन्दगी मेरे लिये एक शिक्षक है. मैंने अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े सबक़ अपनी गलतियों से सीखे हैं. मैं आज पूरे गर्व के साथ कहती हूँ कि भगवान की कृपा से मैं अपनी बाधाओं को पार करने में सफल रही हूँ और हमेशा जीवन में आगे बढ़ रही हूँ.

(एक मिसाल है पहाड़ की यह बेटी)

सुचित्रा अवस्थी- आपको राजीव महरोत्रा के साथ भी जोड़ा जाता है. वह आपकी फिल्म निर्णय के प्रोडूसर थे. क्या उनके साथ आप अपने कुछ अनुभव साझा करे सकती हैं?

पुष्पा रावत- मैं अपनी ज़िंदगी में कभी राजीव महरोत्रा से नहीं मिली हूँ. चूंकि वह पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग ट्रस्ट के संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं. पीएसबीटी के माध्यम से उन्होंने मेरी फिल्म स्पांसर की थी. हालांकि मैं उनसे कभी नहीं मिली लेकिन वे हमेशा मेरे लिये बहुत मददगार हुये. जब मेरी फिल्म धर्मशाला फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीन हुई तो उन्होंने ही मेरी और श्रीवास्तव मैम की हवाई टिकट और अन्य व्यवस्था भी की थी.

सुचित्रा अवस्थी- आपकी फिल्म निर्णय पर आते हैं, एक फिल्म जिसमें आप अपनी जिन्दगी दो टूक में कह देती हैं. क्या आपको किसी अवसर पर इस बात का पछतावा है कि आपने अपने जीवन को एक फिल्म में इतनी स्पष्टता से कह दिया?

पुष्पा रावत – नहीं, मुझे बिल्कुल कोई पछतावा नहीं है. सिवाय इसके मैंने कभी निर्णय फिल्म को अपनी जिन्दगी तक सीमित करके नहीं देखा. फिल्म के माध्यम से मैं अपने समाज की रूढ़िवादी प्रकृति पर चोट करना चाहती थी. मैंने फिल्म के माध्यम से अपनी अन्य महिला मित्रों के समर्थित कारणों को भी उठाया. फिल्म बनाते हुये मुझे महसूस हुआ कि केवल लड़कियां ही रूढ़िवादिता की शिकार नहीं हैं, बल्कि लड़के भी बड़े पैमाने पर इसका बोझ सह रहे हैं. मैंने कभी भी समस्याओं से दूर भगाने पर भरोसा नहीं रखा और हमेशा मजबूत दिल से उनका सामना किया और यही संदेश मैं अपनी फिल्म के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना चाहती थी. इसके अलावा इस फिल्म के लिये मुझे मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (एमआईएफएफ) की ओर से  मोस्ट इनोवेटेड फिल्म 2014 अवार्ड मिला. यह पुरूस्कार  प्रसिद्ध प्रमोद पति पुरूस्कार के रूप में भी जाना  जाता है.

(सिनेमा : मध्यमवर्गीय लड़कियों की अन्तरंग कहानी ‘निर्णय’)

सुचित्रा अवस्थी- मोड़ फिल्म का विचार कैसे आया?

पुष्पा रावत- मेरा भाई अंकुर इस फिल्म के पीछे का कारण था. अंकुर और उसके दोस्त हमारे समाज के बिगड़े बच्चों का प्रतिनिधित्व करते हैं. अंकुर बचपन से ही तुनकमिजाज था उसके अस्थिर स्वभाव ने मुझे काफी परेशान किया और मैं उसे समझना चाहती थी इसलिये मैंने उसकी जिंदगी पर यह फिल्म बनायी. फिल्म बनाने के दौरान अंकुर के बारे में कई सारी बातें मुझे पता चली. फिल्म के दौरान एक दृश्य है जिसमें अंकुर मुझ पर चिल्ला कर कहता है “ये लड़की जो कैमरा लेकर बैठी है मैं उससे नराज हूँ” इसकी इस लाईन ने मुझे पूरी तरह हिला कर रख दिया. इतना ही नहीं मुझे आश्चर्य हुआ कि उसकी इस हालत के लिये क्या मैं भी जिम्मेदार हूँ. मुझे एहसास हुआ कि बड़ी बहन होने के नाते उसके प्रति अतिसंवेदनशील होने के कारण उसका  जीवन खराब हो रहा था. जैसे जैसे अंकुर और उसके दोस्त मेरे साथ खुलते गए मुझे महसूस हुआ कि वे बिगड़े बच्चे होने से ज्यादा मानसिक स्तर पर कमजोर हैं. इस तरह इस फिल्म ने मुझे उन बिगड़े बच्चों को समझने का मौका मिला जिन्हें समाज शरारती तत्वों से ज्यादा कुछ नहीं समझता.

मोड़ फिल्म को मैंने TISS-SMCS फेलोशिप से मिले धन से बनाया था और मैं सम्मान के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की वास्तव में ऋणी हूं. अगर मुझे वह फेलोशिप नहीं मिली होती तो मैं कभी वह फिल्म नहीं बना पाती.

सुचित्रा अवस्थी- पुष्पा जी हमें अपने कुछ अन्य प्रोजेक्टस के बारे में बताइये और साथ ही दर्शक आपकी फिल्मों को दर्शकों ने कैसे लिया है?

पुष्पा रावत- नज़र, निर्णय, मोड़ के अलावा मैंने एक और सार्ट डाक्यूमेंट्री क्यों भी बनाई है. क्यों, सामान्य व्यक्ति के गुस्से पर आधारित  एक लघु फिल्म है इसके अलावा मैं और लोगों के लिये भी सूट करती हूँ.

सुचित्रा अवस्थी- आपने और किसके लिए सूट किया है?

पुष्पा रावत- सुचित्रा जी, मैं इसका हिसाब नहीं रखती. मैं बस काम करती हूँ और भूल जाती हूँ. हमेशा चलते रहिये ही मेरी ज़िंदगी का ध्येय वाक्य है. अगर मैं लोगों के लिये किये का ही हिसाब रखती रहूँगी तो मैं अपने भविष्य के प्रयासों के लिए कैसे समय निकाल पाऊँगी. हाल ही तक मैं खबर लहरिया के साथ काम कर रहूँ जो कमजोर तबके की महिलाओं द्वारा लाया गया एक स्थानीय भाषा का साप्ताहिकी है. मैं कुछ अन्य संस्थानों की फिल्मों के लिये भी स्क्रीप्ट लिख रही हूँ, एडिटिंग कर रही हूँ और डारेक्सन भी कर रही हूँ.

आपके पिछले प्रश्न का जवाब, मैं दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर उत्साहित महसूस करती हूं. यह मुझमें गरिमा और आत्मविश्वास लाता है और मैं अपने काम के बारे में और अधिक प्रतिबद्ध और ईमानदार हो जाती हूँ.

सुचित्रा अवस्थी- क्या आप हमारे पाठकों को अपने भविष्य के प्रोजेक्ट के बारे में कुछ और बता सकती हैं?

पुष्पा रावत- मैं भविष्य प्लान नहीं करती हूँ. मैं अपने रास्ते जैसे आते हैं वैसे ही तय करती हूँ.

सुचित्रा अवस्थी- आज-कल लोग डाक्युमेंटरी में तथ्य और कथा के बीच की कमजोर पंक्ति को पुनः परिभाषित कर रहे हैं और अधिक मिश्रित हैं. क्या आप डाक्युमेंटरी के इस मिश्रित संस्करण से सहमत हैं?

पुष्पा रावत- खैर, मैं कभी रूढ़िवादी नहीं रही हूँ. मैं समय के साथ चलने में भरोसा रखती हूँ. आप समय को रोक कर नहीं रख सकते हैं. क्या आप रख सकते हैं? अगर कोई कहानी के साथ से छेड़ छाड़ नहीं करता है और उसके आधार को बरकरार रखते हुये अपने तरीके से कहानी कहता है तो मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती. आखिरकार हर किसी की अपनी-अपनी शैली होती है.

सुचित्रा अवस्थी- आपको अपनी प्रेरणा कहाँ से मिलती है?

पुष्पा रावत- मुझे अपने जीवन के अनुभवों और समय से प्रेरणा मिलती है और उसी का एक हिस्सा अनुपमा श्रीनिवासन मैम भी हैं. वह मेरे लिये भगवान हैं ! उनके अलावा मेरे व्यक्तित्व निर्माण में मेरे पिता की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है. वह हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते रहे, मोड़ उनके ही कारण बन पाई है. जब कभी ज़िन्दगी के ज्वार आपके खिलाफ़ होते हैं तो वे आपको तैरने के पर्याप्त कारण भी देते हैं.

सुचित्रा अवस्थी- क्या आप हमारे पाठकों को कोई सन्देश देना चाहेंगी?

पुष्पा रावत- मैं पाठकों से कहना चाहूंगी कि हमें अपनी प्राथमिकताओं के बारे में स्पष्ट होना चाहिये और अपने बारे में सोचना शुरू करना चाहिये. किसी को भी अपने सपनों का पीछा करने में संकोच नहीं करना चाहिए. गलती करना सामान्य है. यदि आप गिरते हैं तो आप में फिर से खड़े होने की हिम्मत होनी चाहिए.

समाज में मुख्य रूप से उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में महिलाओं को उद्यमशील कार्य हेतु बढ़ावा नहीं दिया जाता है. लेकिन आपको अपनी क्षमाताओं पर भरोसा होना चाहिये और सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिये.

मुझे भी पहले प्रोत्साहित नहीं किया गया लेकिन मैं अपने सपनों को लेकर स्पष्ट थी इसलिये बाधाओं को पार करती चली गयी. यही कहानी अनुपमा मैम की भी है. वह एक समृद्ध और पढ़े लिखे परिवार से आती हैं, सिविल सेवकों और वैज्ञानिकों के परिवार से आने बावजूद अपने करियर के शुरूआती दिनों में उनको भी उनके परिवार का सहयोग नहीं मिला क्योंकि उनका परिवार चाहता था कि वो भी अपने बड़ों की तरह वैज्ञानिक बने या सिविल सर्विसेस में ही उच्च स्तर पर कार्य करें लेकिन उन्होंने खुद को पहचाना और अपने अस्तित्व की नीव रखी और आज वह विश्व की सबसे बेहतरीन डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर में से एक हैं. ऐसे में आपको विद्रोह करना पड़ता है और जब तक आप सही और गलत के बीच अंतर कर सकते हैं तब तक मुझे इसमें कोई हानि नहीं दिखाई देती है.

समाप्त करते हुये मैं माता-पिता से अनुरोध करना चाहूंगी कि अपने बच्चों के साथ आपसी समझ विकसित करें ताकि वे अपनी क्षमता को पूरी तरह समझ पायें.

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Girish Lohani

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