गिरदा की 9वीं पुण्यतिथि पर वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव रौतेला से वर्ष 2006 में प्रकाशित उनकी बातचीत का अंश :
आप आखिर क्यों गैरसैंण के पीछे पड़े हुए हैं, किसके लिएॽ
अब लड़ाई अपनों से है क्योंकि यह मोड़ ऐतिहासिक है. हमें निर्णय लेना है. सवाल सचिवालय या विधानसभा का नहीं, राज्य की धड़कन का है. इस समय गंभीरता नहीं होगी तो अंजाम आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी. सवाल पहाड़ मैदान या दून गैरसैंण का नहीं जनभावनाओं का है. मनुष्य, राज्य, संस्था के निर्माण में भूगोल महत्वपूर्ण है इसलिए गैरसैंण राजधानी बनें. यदि दिल्ली लखनऊ की संस्कृति चाहिए तो देहरादून ठीक है.
तो क्या गैरसैंण में भ्रष्टाचारा व माफिया लॉबी शिफ्ट नहीं होगी जो लखनऊ से देहरादून आयीॽ
गैरसैंण में देहरादून की अपेक्षा जनता का दबाव ज्यादा होगा. भष्टतंत्र तो शिफ्ट होगा ही लेकिन तुलनात्मक रूप से इसकी पकड़ गैरसैंण में कम रहेगी. यह 2005 है कोई तुगलकी काल नहीं. एन.डी. तिवारी कह रहे हैं देहरादून को गैरसैंण नहीं ले जाया जा सकता. हम कब कह रहे हैं कि हमें दून चाहिए. हमें तो राजधानी चाहिए जिसका सी.एम हाउस प्राथमिक विद्यालय के समान हो. हमने सपना देखा था कि उत्तराखण्ड के विधायक रोडवेज की बसों में सवारी करें.
आप विकास को मुद्दा क्यों नहीं मानतेॽ
1947 में देश की आजादी के बाद से ही सभी सरकारें विकास की ही रट लगाए हुए हैं और जो विकास अब तक हुआ है वह एक निश्वित गति के साथ ही हुआ है जो स्वाभाविक सी प्रक्रिया है लेकिन विकास का मॉडल क्या हैॽ हमारे राज्य में तो भू-माफिया, लीसा व लकड़ी चोरों का ही विकास हो रहा है. यहीं नहीं ऐसे कई लोग तो आज राज्य के मंत्री बन बैठे हैं.
युवाओं के पलायन पर क्या कहेंगेॽ
पलायन रोकने को चिंतन होना चाहिए. सरकार के पास स्वरोजगार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है. हमारे ऊर्जावान और प्रतिभावान युवक विवश होकर मैदानी भागों की ओर पलायन कर रहे हैं. प्रतिभा तो अपना रास्ता खुद ही तलाशेगी न भैय्या. वह कब यहां रूकने वाली है. हाय धोती-हाय रोटी भी तो एक समस्या है.
आरोप है कि आप लोग पहाड़ बनाम मैदान जैसी संकीर्णता रखते हैंॽ
हिमालय तो विश्व की निधि है और हम तो मध्य हिमालय के एक छोटे से खण्ड की बात कर रहे हैं. मैदान पहाड़ की नहीं, इसे तो मुद्दा तथाकथित राजनीतिक दलों और उनके चंद महत्वाकांक्षी नेताओं ने बनाया है, जो वोट की राजनीति करते हैं. हम कहां किससे वोट मांग रहे हैं.
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वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव रौतेला देश के कई नामी मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं.
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