पहाड़ में महिलाओं के जीवन का नाम ही संघर्ष है. विषम भौगोलिकता के बावजूद पहाड़ की महिलायें राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय मंचों पर अपना नाम करने में कामयाब रही हैं. विश्व महिला दिवस पर जानिये उत्तराखंड की सशक्त महिलाओं के बारे में :
15 साल की उम्र में अपने राज्य के वीरगति पाने वाली तीलू रौतेली मध्यकाल में गढ़वाल की शासिका थी. तीलू रौतेली के सम्मान में उत्तराखंड सरकार हर वर्ष उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित करती है. उत्तराखंड में कांडा और बीरोंखाल में हर साल तीलू रौतेली की याद में मेले का आयोजन किया जाता है. तीलू रौतेली के बारे में अधिक पढ़िये – तीलू रौतेली की दास्तान
पहाड़ में आज भी सड़कों के किनारे कई सारे टूटे-फूटे सराय देखने को मिलते हैं. सदियों पुराने यह सभी सराय दारमा की एक महिला जसुली द्वारा बनवाये गये हैं. जसुली बूढी के नाम से विख्यात इस महिला ने अपने जीवन की पूरी कमाई इन्हीं सराय के निर्माण में लगा दी थी. जसुली के विषय में जानने लिये यहां देखिये – जसुली अम्मा की बिखरती धरोहर
उत्तराखंड जब कभी नशा विरोधी आन्दोलन के विषय में बातचीत होगी टिंचरी माई का नाम हेमशा लिया जायेगा. टिंचरी माई ने सत्तर के दशक में पहाड़ में शराब विरोधी आन्दोलन चलाया गया था. एक सामान्य महिला दीपा देवी से टिंचरी माई तक का उनके जीवन का सफ़र अनुकरणीय है. टिंचरी माई का जीवन विस्तार से यहां पढ़िए – उत्तराखण्ड के नशामुक्ति आन्दोलन की पुरोधा: टिंचरी माई
चिपको आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली महिला गौरा देवी गढ़वाल के रैंणी गाँव की रहने वाली थी. गौरा देवी जंगलों को अपना मायका मानती थी. जब ठेकेदार जंगल के पेड़ काटने रैंणी गांव पहुंचे तो गौरा देवी ने कहा : “पहले मुझे गोली मारो फिर काट लो हमारा मायका.” चिपको आन्दोलन के विषय में विस्तार से पढ़िये – दिलचस्प और प्रेरक रहा है चिपको आन्दोलन का इतिहास
चंद्रप्रभा ऐतवाल उत्तराखंड की एक प्रमुख पर्वतारोही हैं. धारचूला में जन्मीं चंद्रप्रभा ऐतवाल ने हिमालय की बहुत सी चोटियां फ़तेह की हैं. भारत सरकार ने चंद्रप्रभा ऐतवाल को 1981 में अर्जुन अवार्ड और 1990 में पद्मश्री दिया था. चंद्रप्रभा ऐतवाल के जीवन के विषय पर लेख यहां पढ़िए – जिस महिला पर उत्तराखण्ड हमेशा नाज करेगा
सत्तर के दशक में आकाशवाणी से एक गीत आता था आज पनी ज्यों-ज्यों, भोल पनी ज्यों-ज्यों पोरखिन न्हें जोंला… पहाड़ के खेतों में काम करने वाली महिलाओं के बीच में यह आवाज खूब लोकप्रिय थी. यह आवाज थी लोकगायिका कबूतरी देवी की. लोक गायिका कबूतरी देवी का साक्षात्कार यहां पढ़िए – लोक द्वारा विस्मृत लोक की गायिका कबूतरी देवी
उत्तरकाशी में जन्मी बछेंद्री पाल एवरेस्ट फतेह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं. 23 मई 1984 को यह कारनामा करने वाली भारत की पहली बनी. उन्हें सरकार ने अनेक पुरूस्कार से सम्मानित किया है. बछेंद्री पाल के विषय में और अधिक जानिये – उत्तराखण्ड का नाम सगरमाथा के माथे पर लिख देने वाली महिला
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११ कर्मठ स्त्रियों का व्क्तत्व जोशीला और सराहनीय , विभिन्न उद्वेशों से प्रेरित है
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
शक्तिदेव