मैदानी भागों में स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां होने वाली हैं वहां रहने वाले पहाड़ी भी अब महिना दो महिना अपने-अपने गांव जाने की तैयारी में होंगे. पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड के लोगों के बीच एक मज़ाक ख़ासा लोकप्रिय हुआ.
कितना ही शहरों में रह लो
मसाण पूजने घर ही आना पड़ेगा लिख के लेलो
यह बात मजाक में ही कही गयी हो लेकिन आंशिक रूप से यह सच भी है कि पहाड़ियों में मसाण का बड़ा डर होता है. घने जंगल, गाड़- गधेरे, नदियों के संगम, शमसान में कब किस पर चिपट जाये किसी नहीं पता. जागरों में तो कहा जाता है कि लोकप्रिय स्थानीय देवता गंगनाथ ज्यू तक को तेरह बरस की उमर में काली घाट के मसाण ने पकड़ लिया था.
गंगनाथ ज्यू से काली घाट के मसाण ने अपना हिस्सा मांगा फिर गंगनाथ ज्यू और काली घाट के मसाण के बीच सात दिन सात रात तक युद्ध चला. तब गंगनाथ ज्यू ने स्थानीय देवताओं को पुकारा और गोल ज्यू ने आकर काली घाट के मसाण को साधा. तभी से गंगनाथ ज्यू को पूजते समय हमेशा गोलज्यू याद किये जाते हैं.
कुल मिलाकर मसाण का एक बड़ा डर पहाड़ियों के अंदर रहता है. च्यूंकि यह आस्था का विषय है अतः इस बात पर कोई तर्क संगत बहस ही बेवजह है कि मसाण होता है या नहीं.
वैसे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने मसाण को स्थानीय देवता की श्रेणी में रखा है. भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय की वैबसाइट मसाण और ख़बीस दोनों को एक मानती है और इसके विषय में लिखती है कि
ये शमशान के भूत हैं, जो प्राय: दो नदियों के संगम में होते हैं. काकड़ीघाट तथा कंडारखुआ पट्टी में कोशी के निकट इनके मंदिर भी हैं. जिस किसी को भूत लगने का कारण ज्ञात न हो, तो वह मसान या खबीस का सताया हुआ कहा जाता है. मसान काला व कुरुप समझा जाता है. वह चिता से उत्पन्न होता है. लोगों के पीछे दौड़ता है. कोई उसके त्रास से मर जाते हैं, कोई बीमार हो जाते हैं, कोई पागल. जब किसी को मसान लगा तो ‘जागर’ लगाते हैं. कई लोग नाचते हैं. भूत-पीड़ित मनुष्य पर उर्द व चाँवल जोर से फेंकते हैं. बिच्छु घास भी लगाते हैं. गरम राख से अंगारे फेंकते हैं. भूत-पीड़ित मनुष्य कभी-कभी इन उग्र उपायों से मर जाता है. खबिस भी मसाण ही सा तेज मिजाज वाला होता है. वह अँधेरी गुफाओं, जंगलों में पाया जाता है. कभी वह भैंस की बोली बोलता है कभी भेड़-बकरियों या जंगली सुअर की तरह चिल्लाता है. कभी वह साधु भेष धारण कर यात्रियों के साथ चल देता है. पर उसकी गुनगुनाहट अलग मालूम होती है. यह ज्यादातर रात को चिपटता है.
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क्या आप संस्कृति मंत्रालय पर इस उल्लेख वाले पेज का लिंक दे सकते। मुझे तो मिला नही।
धन्यवाद।