रिज़र्व बैंक ने अपनी सालाना रपट में बताया है कि नवम्बर 2016 में एक झटके की तरह लागू की गयी नोटबंदी के बाद 99% से अधिक अवैध घोषित कर दिए गए नोट वापस बैंकों में लौटा दिए गए.
इस आंकड़े से संकेत मिलाता है कि प्रधानमंत्री की डीमॉनीटाईजेशन स्कीम के कारण देश की जीडीपी को कम से कम 1% का नुकसान हुआ और कम से कम 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं. इस योजना का मुख्य उद्देश्य अघोषित धन को सिरे के साफ़ करना था लेकिन रिज़र्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि ऐसा नहीं हुआ.
नवम्बर 2016 में देश के नागरिकों को सदमे की हालत में पहुंचाते हुए लाइव टीवी पर नोटबंदी की घोषणा हुई थी जिसके बाद लोगों को बैंकों में पुरानी के बदले नई करेंसी लेने के लिए कुछ हफ़्तों का समय मिला. लेकिन नए नोट आवश्यकता के अनुरूप रफ़्तार से नहीं छप सके और कई महीनों तक सारे देश में करेंसी की भीषण कमी रही और छोटी-छोटी रकम के लिए लोगों को घंटों बैंकों के आगे लाइन में लगाना पड़ा.
जब देश की विशाल अर्थव्यवस्था ऐसे कमज़ोर दौर में पहुँच रही थी मोदी ने देश की जनता से अपील की कि वह नोटबंदी के फायदों को पूरी तरह सामने आने के लिए कुछ समय का धैर्य रखे. नोटबंदी का एक और लक्ष्य था आतंकवादियों और अपराधियों के पैसे के स्रोतों को बंद करना.
रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि या तो देश में उतना काला धन नहीं था जितने की उम्मीद की गयी थी या काले पैसे का हेरफेर करने वाले नोटबंदी से अधिक सफल रहे.
हालांकि देश में डिजिटल लेनदेन बढ़ा है लेकिन रिज़र्व बैंक ने बताया है कि पिछले साल में चालू बैंकनोटों के परिमाण में 37.7% की बढ़ोत्तरी हुई है.
लेखक और अर्थशास्त्री गुरचरण दस ने कहा है कि नोटबंदी से यह फायदा हुआ कि घरों में रखा गया लोगों का पैसा औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था का हिस्सा बन गया. उन्होंने आगे जोड़ा, “इसके बावजूद इसे लागू करने का तरीका सही नहीं था. लोगों ने इसकी बड़ी कीमत चुकाई और हमने करीब एक साल की आर्थिक तरक्की का नुकसान झेला. और भारत की रोजगार समस्या का समाधान करने के लिए आपको अगले बीस साल तक करीब 8% की दर से विकास करना होगा.”
(‘द गार्जियन’ की रपट के आधार पर)
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