Featured

जामुन के पेड़ वाला भूत बनना है मुझे

मरने के बाद लोग कहां रहते हैं, मुझे पूरा पता है. गांव के धुनकारी मरने के बाद नीम के पेड़ पर चढ़ा दिए गए लेकिन कुछ दिन बाद कैथे के पेड़ पर पाए जाने लगे. लाली सहाय के बड़े भाई पीपल के पेड़ पर पाए जाते थे लेकिन आजकल उस पीपल से 10 पेड़ पहले खड़ी ढाक की झाड़ में रहते हैं. नगरपालिका वाला इमली का पेड़ हमारे बचपन तक बिलकुल खाली था.

इन दिनों उस पर हनुमानगढ़ी चौराहे के सारे मरे हुए मछुवारे रहते हैं. कैंट में लाल इमली के पेड़ पर रिकाबगंज के शास्त्री की बहू रहती है, जो जलकर मरी थी. चर्चा थी कि मुकदमे का फैसला सही होगा तो वह चली जाएगी लेकिन आज भी ढेला मारो तो वहीं अटक जाता है. शास्त्री की बहू पक्का उसी पेड़ पर है और सारे ढेले शास्त्री को मारने के लिए ही बटोर लेती है.

कुछ साल पहले गांव में आम, पीपल, पपीते और अर्जुन के कुछ पेड़ लगाए थे. इस बार गांव गया तो देखता हूं कि पीपल का कद मुझसे कुछ आगे निकल गया है, लेकिन देखकर ताज्जुब हुआ कि इस पेड़ ने लंगोट कस रखी थी. मौसी से पूछा कि क्यों पहनाया तो उन्होंने बताया कि इस पर जनक दादा रहने लगे हैं. मैंने देखा कि पपीते पर भी लाल धागा बंधा है. मौसी ने बताया कि दादा की इधर-उधर करने की आदत मरने के बाद भी नहीं गई. पपीता उनको प्रिय है तो. जरूरी नहीं कि मरने के बाद सबको पेड़ पर ही जगह मिले. मेरी याद के डेढ़ दशक तक डिहिया वाले तालाब पर कम से कम एक दर्जन मरे हुए लोग रहते थे.

जब भी उधर से गुजरूं, हरे बांस की छोटी-छोटी टहनियों में फंसे सुर्ख लाल झंडे लहराते दिखें.

ऐसा सीन अभी की सरकारों को दिख जाए तो तुरंत गांव को नक्सलियों का गढ़ कहकर सेना लगा दें. वहां से घर आते हुए कम से कम दो कुएं पड़ते हैं और दोनों भरे हुए. एक में मेरे ही कोई ताऊ रहते हैं जो अंधेरे में उसमें गिर पड़े थे. दूसरे में गांव का चरवाहा धनिया अपनी प्रेमिका के साथ रहता है. दोनों साथ कूदे थे. मरने के बाद मुझे कुएं या तालाब में नहीं रहना. मीठे कलमी आम का एक पेड़ मैंने बचपन से ही सेट कर रखा है. वहां कुछ लाल चींटियां और भुनगे भी हैं लेकिन वे ज्यादा परेशान नहीं करते. दिक्कत बस इतनी है कि पिछले कई सालों से मैं जामुन के बगल रहता हूं जो इन दिनों फरेंदाफुल है और परमानेंटली खाली भी. अब इस मन का क्या करूं बुच्चन? बहुत ललचा रहा है.

मुझे जामुन वाला भूत बनना है!

 

दिल्ली में रहने वाले राहुल पाण्डेय का विट और सहज हास्यबोध से भरा विचारोत्तेजक लेखन सोशल मीडिया पर हलचल पैदा करता रहा है. नवभारत टाइम्स के लिए कार्य करते हैं. राहुल काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

4 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

1 week ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

1 week ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

1 week ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

1 week ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

1 week ago