पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश के अनेक प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के घरों में छापा मारा और इनमें से कम से कम पांच को गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों में प्रसिद्ध कवि वरवर राव, मानवाधिकार कार्यकर्ता वर्नन गोंजाल्वेज़ और अरुण फरेरा, ट्रेड यूनियनिस्ट और वकील सुधा भारद्वाज और ख्यात सामाजिक चिन्तक-कार्यकर्ता गौतम नवलखा शामिल हैं.
अनेक शहरों में एक साथ की गयी महाराष्ट्र पुलिस की इस कार्रवाई के बाद देश के तमाम जाने-माने वकीलों, शिक्षाशास्त्रियों, लेखकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों के नेताओं ने नाराजगी जाहिर करते हुए इसे आपातकाल की परोक्ष घोषणा बताया.
विश्वप्रसिद्ध संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे बदले की कार्रवाई बताते हुए विरोध की हर आवाज़ को दबाने की नीति बताया.
ये छापे और गिरफ्तारियां पिछले साल 31 दिसंबर को महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में दलितों और उच्च जातियोंके मध्य हुई हिंसा की जांच के सिलसिले में हुए हैं. पुलिस का कहना है कि इन सभी ने इस हिंसा को फैलाने में योगदान दिया.
देश से शीर्ष इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इस कृत्य की निंदा करते हुए मांग की कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देते हुए स्वतंत्र आवाजों के “दमन और अपमान” पर रोक लगाने का प्रयास करना चाहिए.
कांग्रेस के प्रवक्ता जयपाल रेड्डी ने इस घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि जिन लोगों पर कार्रवाई की जा रही है वे निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाली संस्थाओं से जुड़े हुए हैं. सीपीआई के प्रवक्ता का कहना था कि सरकार नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन कर रही है और भीमा-कोरेगांव के असली अपराधियों को बचा रही है.
बुकर अवार्ड विजेता अरुंधती घोष, अधिवक्ता प्रशांत भूषण, सीपीएम नेता प्रकाश करात ने भी इस कार्रवाई की निंदा करते हुए अलग-अलग वक्तव्य जारी किये हैं.
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