पहाड़ की बाखलियों के आस-पास इन दिनों न्यौली चिड़िया का बोलना खूब सुनाई देना शुरु हो गया. उदासी, करुणा और विरह जैसे शब्दों का पर्याय है न्यौली की आवाज. न्यौली, अक्सर अकेले चलने वाली एक ऐसी चिड़िया जिसके बोल पहाड़ की हर औरत के लिये दुनिया का सबसे मधुर संगीत है.
(Himalayan Barbet Nyauli Folk Story)
न्यौली के बारे में पहाड़ों में कुछ तरह कहा गया जाता है- न्यौली बासो बारमास, कफू बासो जेठ… लोक में न्यौली के विषय में कहा जाता है वह अपने बोल में- को हू, को हू, यानी कौन है, कौन है पूछती है.
कहते हैं कि पहाड़ के किसी गांव में दो भाई-बहिन हुआ करते थे. दोनों के बीच खूब प्रेम था. फिर एक दिन बहिन की शादी हो गयी. दुर्गुण के समय बहिन के साथ उसके ससुराल में जाने को भाई खूब रोने लगा तब उसकी मां ने कहा- अभी तो साल में खूब तीज त्यौहार आयेंगे. तेरी दीदी गले में चरेऊ पहने और मांग में सिंदूर लगाये हमारे घर आयेगी.
पहला त्यौहार आया पर दीदी न आई, मां ने अपने बेटे को किसी तरह समझा दिया. दूसरा त्यौहार आया दीदी न आई मां ने भाई को फिर किसी तरह समझा दिया. पर जब तीसरे त्यौहार पर भी दीदी न आई तो भाई को संभालना मां के बस में भी न रहा. अगले ही दिन अपना झोला-झिमटा उठाकर भाई निकल पड़ा बहिन के ससुराल.
(Himalayan Barbet Nyauli Folk Story)
ओहो, बेचारा भाई. गांव-गांव होता हुआ पहुंच गया के घने जंगल में. रात अंधेरी हो गयी और बेचारा रास्ता भटक गया. महीनों-महीनों गांव-गांव, जंगल-जंगल भटकने के बाद किसी जंगल में मृत पाया गया. तभी से भाई न्यौलीली चिड़ियाँ के रूप में पहाड़ के घने जंगलों में बसता है और चैत बिशाख के महीने गाँवों के आस-पास की बाखलियों के पास आता है. जंगल में या गांव के आस-पास जब भी वह चरेऊ पहने और मांग में सिंदूर लगाये किसी महिला को देखता है पूछता है- को हू, को हू… कौन हो तुम कौन हो.
(Himalayan Barbet Nyauli Folk Story)
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