समाज

पर्वत पुत्र और हिल क्वीन

शस्यश्यामला देवभूमि की सड़क से साढ़े छत्तीस डिग्री का कोण बनाती सवारियों से लदी केमू की यह बस हल्द्वानी टेढ़ी पुलिया पर मेरे दाएं कंधे को फ्लाइंग भुक्की देती निकल गयी. दिमाग़ ने कहा लै फ़ोटो, लै फ़ोटो, पर खेंचने का अवसर दे तो वो गाड़ी कैसी! जेब से फ़ोन निकला पर आंखों ने मात्र पिछवाड़े में बड़े हर्फ़ों में ‘हिल क्वीन’ लिखा देखा. Hill Queen and Mountain People Umesh Tewari Vishwas

निगाहों से दूर होती क्वीन बड़ी क्यूट और झुकाव का कोण ज़्यादा एक्यूट लग रहा था. फ़ोटो न ले सकने की खिसियाहट में मेरी चाल शायद अब तेज़ हो गई. क्या पता अगले कट पर दिख जाए, अपने शहर में लाल बत्ती का का सिस्टम तो ठैरा नहीं. आगे बृजलाल हॉस्पिटल के अहाते में भी सब सामान्य था. दो दिन पहले भीमताल रोड पर पलटी बस के घायलों के घाव शायद अंदर भर रहे हों. रोड पर कुछ भी अभूतपूर्व नहीं हो रहा था. ऑटो रिक्शा वाले हस्बे-मामूल बीच रोड पर चलते-चलते अपना ऑटो अचानक सवारियों के भेलों से चिपका ‘स्टेडियम-स्टेडियम’ बोल रहे थे. सरकारी अफसरों के ड्राइवर आम चालकों के दिल में खौफ़ पैदा करने को दबा कर प्रेसर हॉर्न का प्रयोग करते फूले नहीं समा रहे थे.

दाहिनी ओर चौधरी भवन को छोड़ता मैं आगे बढ़ा ही था, सामने जजी बस स्टैण्ड के फुटपाथ से लगी, झुकी-झुकी शरमाई सी हिल क्वीन खड़ी दिख गई. कुछ देर पहले रैंप पर लटके मारती मॉडल सी, अब निश्चल खड़ी हिल क्वीन कुछ बूढ़ी लग रही थी. वो अपने दरबारी साथ लिए  रिआया पर पलट गई होती तो कहानी कुछ और ही होती. 

बहरहाल, आम्रपाली होटल के सामने बस स्टैण्ड पर आ खड़ी पर्वतों की रानी के दीवाने आम से सवारियाँ कमोबेश सकुशल उतर कर ऑटो रिक्शा वगैरह पकड़ रुख़सत चुकी थीं. एक पर्वत पुत्र अपनी अर्धांगिनी के साथ अपने सामान के नग क़रीने से फुटपाथ पर लगा, गिनती कर रहे थे. मुझे दंपति के दाँये कंधे, बायों की तुलना में अस्वाभाविक रूप से उठे-उठे नज़र आये. शायद हिल क्वीन द्वारा देवभूमि की सड़क से बनाया गया कोण सवारियों पर ऐसा समानुपातिक असर छोड़ गया था. Hill Queen and Mountain People Umesh Tewari Vishwas

मैंने पर्वतपुत्र के दाँये कांधे पर हाथ रख कर नीचे दबाते, बांये के समानांतर लाने का प्रयास करते पूछा, “दाज्यू ऐसी टेढ़ी हालत में कहाँ से कहाँ तक जर्नी करी आप लोगों ने ?”

वो बोले, “अरे नहीं साब रानीबाग के पल्ले मोड़ पर कुछ समान ऊपर छत से गिर जैसा गया था. कंडेक्टर साब ने उठा कर अंदर कोच दिया. हमने समझा मोड़ों पर झटके खाकर गिर ग्या होगा. गाड़ी तो रानीखेत से ही हल्की सी टोटिल टाइप लग री थी. हमने सोचा टायर में हवा कम होगी .. आ ही गए हो गोलज्यू की किरपा से.” Hill Queen and Mountain People Umesh Tewari Vishwas

इस वार्तालाप के मध्य, मैं अपने कैमरा फ़ोन से थोड़ी खुंदक के साथ हिल क्वीन गाड़ी की दुर्लभ तस्वीरें भी ले रहा था, जिसका अवसर मुझे टेढ़ी पुलिया पर नहीं मिल पाया था. शायद मुझसे इम्प्रैस होकर, अब तक असम्पृक्त लग रही पर्वतपुत्र की अर्धांगिनी ने टीवी पर बाइट देने वाले भाव में अपनी व्यथा बयान करना उचित समझा होगा. जैसे पार्लियामेंट में जो भी कहना हो स्पीकर के माध्यम से कहा जाता है, वो पर्वत पुत्र को लपेटते बोलीं, “कहाँ कै रे हो, गाड़ी की हालत तो पैलेसे खराब नहीं थी? पिलखोली के मोड़ों फना गडेरी और नींबू के बिंये सारी गाड़ी में नहीं घुरी गए थे? मेरे को तो इतनी गाड़ी भी कब्भी नहीं लगी. बिडौव हो गए कहा. रोडबेज वाले बिना चैकिन करे गाड़ी खरीद रहे हैं करके तो सुना था, ये केमो वालों के ख्वार जो रात पड़ रही होगी.” 

अब उनके कंधे वापस अपनी आदर्श ऊंचाई हासिल कर चुके थे. मैंने भी सोचा आदर्श पत्रकारिता के मापदण्डों के तहत कंडक्टर या ड्राइवर साब का पक्ष भी लिया जाये.  समस्त अभियांत्रिकी को घोट कर पी चुके उस्ताज की अदा से सड़क पर उकड़ूँ बैठ क्वीन के थल्ले का मुआयना फ़रमा रहे कंडक्टर साब ने बिना मेरी तरफ़ देखे लोकहित की पत्रकारिता को डिसमिस कर दिया, “अब कोई क्या उखाड़ लेगा, कमानी के पट्टे बदलने हो रे हैं तीन मैने से, सस्पेंशन की भी लगी पड़ी है. बागेश्वर जाके मालिकों की फोटो खींचो अखबार में लगाने को…” Hill Queen and Mountain People Umesh Tewari Vishwas

इस रियलिटी चैक के बाद मैंने ड्राइवर साब का ओपीनियन लेने की ज़रूरत नहीं समझी जो कंडक्टर को अस्पष्ट सा आदेश पेलते हुए सामने ठेके की ओर अग्रसर हो रहे थे. मुझे अपना बायाँ कंधा कुछ झुका हुआ सा अवश्य महसूस हो रहा था.

उमेश तिवारी ‘विश्वास

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हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.

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