माना जाता है कि चैत्र प्रतिपदा से नये साल की शुरुआत होती है आज के दिन से ही नवरात्रि भी होती है. पहाड़ों में आज के दिन उपवास रखा जाता है और कुछ जगहों पर आज के दिन हरेला भी बोया जाता है. हरेला, उत्तराखंड का एक लोकप्रिय त्यौहार है. उत्तराखंड में प्रकृति से जुड़ा लोकपर्व हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है.
(Harela Festival Navratri 2022)
चैत्र के महीने हरेला चैत्र प्रतिपदा यानी पहली तारीख को बोया जाता है. इसके बाद सावन का महीना लगने से नौ दिन पहले असौज महीने में भी हरेला बोया जाता है और 10 या 11 दिन बाद काटा जाता है. आश्विन के महिने का हरेला नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे के दिन काटा जाता है.
हरेला एक एक कृषि पर्व है जिसमें घर में सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए हरेला बोया और काटा जाता है. पारम्परिक रूप से हरेला बोने के लिये रिंगाल की टोकरी में मिट्टी ली जाती है कुछ स्थानों में पेड़ की पत्तियों के दौने बनाकर भी मिट्टी भरी जाती है. इसमें पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज डाले जाते हैं. जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट के बीजों को बोया जाता है. समय के साथ आये परिवर्तन में अब टोकरी प्लास्टिक वगैरह की होती हैं.
(Harela Festival Navratri 2022)
इस टोकरी को सामन्यतः घर के मंदिर के पास रखा जाता है. सूरज की सीधी रौशनी से बचाते हुये इसमें अगले आठ से ग्यारह दिन तक पानी डाला जाता है. अनाज के बीजों मे अंकुरण होता है और दसवें दिन तक यह लम्बा हो जाता है. हरेला काटने के दिन घर पर पूजा का आयोजन होता है और हरेला घर के दरवाजों पर गोबर के बीच डालकर इसे सजाया जाता है. इसके बाद घर की बुजुर्ग महिला घर के सभी सदस्यों के सिर पर हरेला रख उन्हें शुभाशीष देती हैं.
हरेला से जुड़ी एक मान्यता यह है कि जिसका हरेला जितना अच्छा खिलता है उस वर्ष उसके घर में उतनी अच्छी फसल होती है इसी कारण हरेला सुख और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है. हरेला पर्व का एक वैज्ञानिक पक्ष यह हो सकता है माना जाता है कि व्यक्ति अपने खेत की मिट्टी का कुछ हिस्सा लेता है उसमें सभी प्रकार के अनाज के बीज डालता है और उसके बाद इस बात का अनुमान लगाता है कि उस वर्ष कौन सी फसल अच्छी हो सकती है.
(Harela Festival Navratri 2022)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…
सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…