समाज

झोली तो झोली, हमारे कुमाऊं की गुड़झोली भी किसी से कम नहीं

झोली का नाम झोली ही कैसे पड़ा इस बारे में विद्वानों के अपनी अपनी बुद्धि और तजुर्बे के हिसाब से कई मत हो सकते हैं, जैसे मेरी अल्पबुद्धि कहती है कि ये मैदानी भागों में बनाए जाने वाले आलू के झोल जैसी कोई चीज़ हो सकती है या पहाड़ी भागों में दाल – भात के साथ परोसे जाने वाली एक और ऐसी डिश जिसे सुड़कते हुए खाने में स्वाद बढ़ने की पूरी संभावना रहती है . ये भी हो सकता है कि किसी को इसमें कोई झोल नज़र आया हो या फिर इस बात पर भी ग़ौर किया जा सकता है कि इसका मिज़ाज कँधे पर लटके झोले से मिलता जुलता हो जो सामान के हिसाब से अपना आकार -प्रकार ख़ुद ही गढ़ लेता है. Gurjholi Kumaoni Dish Smita Karnatak

बहरहाल ये वो झोली है जो हर पहाड़ी के घर में खान – पान का अटूट हिस्सा है . ये पंजाबी कढ़ी जैसी काढ़ कर नहीं बनाई जाती , न ही इसमें पकौड़ियाँ डालने की ज़रूरत है . अपनी सुविधा से इसे कई तरह से बना लिया जाता है . हींग – जीरे के छौंके के साथ भी और कभी लहसुन की कली या क्यारी में लगे लहसुन के ताज़े पत्तों से भी . यही नहीं इस पहाड़ी झोली के भी कई प्रकार हैं — तुरत – फुरत बनने वाले. मूली को सिलबट्टे में थींच कर मेथी और जीरे के तड़के के साथ पहले थोड़े पानी के साथ उबालिए और फिर बेसन मिला छाछ या पतला दही डालकर दस पंद्रह मिनट अच्छी तरह पकाइए . स्वाद बदलने के लिए उड़द और ककड़ी से बनने वाली बडियाँ डालकर बनी झोली भी अपनी एक अलग जगह रखती है . जायके के शौक़ीन कुछ लोग इसे ऊपर से थिंचे हुए लहसुन से भी छौंकते हैं. Gurjholi Kumaoni Dish Smita Karnatak

फोटो: स्मिता कर्नाटक

ये तो हुई नमकीन झोली की बात लेकिन इसकी एक मीठी बहन भी है जो पहाड़ में जाड़े को दूर भगाने के लिए बनाई जाती है . यही नहीं प्रसव के बाद नई बनी माँ को भी ठंड से बचाने के लिए इस झोली को बनाया जाता है . नाम है — गुड़झोली . शुद्ध पहाड़ी घी में गेहूँ के भुने आटे में गुड़ की चाशनी से बनी इस गुड़झोली में सख़्त से सख़्त ठंड को भगा सकने की ताब है . यहाँ ये सवाल उठना लाज़मी है कि ये तो आटे का हलुवा हो गया लेकिन असली ट्विस्ट यहीं पर है . ये हलुवे की तरह गाढ़ी नहीं होती. ये अलग बात है कि दोनों को बनाने की तकनीक काफ़ी मिलती – जुलती है . घी में आटे को रंग बदलने तक भून लिए जाने के बाद गुड़ की चाशनी को धीरे – धीरे इस तरह से डालना होता है कि ग़लती से भी कोई डले ना रह जाएँ , क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो बनाने वाले का सारा पाकशास्त्र का ज्ञान शून्य समझा जाएगा . इसे झोली कहा ही इसलिए जाता है कि ये भी अपनी नमकीन बहन की तरह तरल अवतार में ही रहती है . इसमें ऊपर से चम्मच भर घी डालकर खाने से इसका आनन्द कई गुना बढ़ जाता है. Gurjholi Kumaoni Dish Smita Karnatak

तो अगली बार ठंड होने पर आमतौर पर कही जाने वाली बात “ लगाते हो एक ?” कहने से पहले सोच लें कि हमारी गुड़झोली भी किसी से कम नहीं.

यह भी पढ़ें: रानीखेत के करगेत से कानपुर तक खिंची एक पुरानी डोर

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

स्मिता कर्नाटक. हरिद्वार में रहने वाली स्मिता कर्नाटक की पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड के अनेक स्थानों पर हुई. उन्होंने 1989 में नैनीताल के डीएसबी कैम्पस से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया. पढ़ने-लिखने में विशेष दिलचस्पी रखने वाली स्मिता की कहीं भी प्रकाशित होने वाली यह पहली रचना है. उन्हें बधाई!

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

3 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

3 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

4 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

4 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

1 month ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

1 month ago