कर्तृपुर(कत्यूर):- समुद्रगुप्त के इलाहाबाद के अशोक स्तम्भ पर खुदी हुयी हरिषेण की प्रषस्ति में पराजित राजाओं में कर्तपुर का नाम नेपाल के बाद लिया गया है. इसलिये इतिहासकारों ने इसे कार्तिकेयपुर अथवा कत्यूर कहा है. वास्तव में कत्यूर के ताम्रपत्रों में राजकर्मचारियों और अधिकारियों की जो सूची दी गई है उसकी नामावली पर गुप्त शासकों के अधिकारियों के पद नामों की स्पष्ट छाप है. समुद्रगुप्त को अपने पूर्वजों के काली कुमूं राज्य से सम्बन्धित होने के कारण इस पर्वतीय भू-भग में अधिकार करने में सुविधा हुयी होगी. डा बेनी प्रसाद के अनुसार ‘इनके अलावा और भी बहुतेरे राजाओं केा समुद्रगुप्त ने जीता था. जंगली जातियों पर भी उसने सत्ता जमाई और सीमा प्राप्त की जाति नायकों को भी वश में किया था. पंजाब की ओर अनेक गणराज्य या प्रजातंत्र राज्य बन गए थे. उनके पास बडी-बडी सेनाएं थी. उनके निवासी बहुत युद्ध प्रिय थे. वह ईस्वी पूर्व चैथी सदी के उन प्रजातंत्रों की याद दिलाते हैं जिन्होंने बडी वीरता से सिकन्दर का सामना किया था. इन सबको जीतकर समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य में मिला लिया. उत्तर के और राज्यों को जीतने के बाद समुद्रगुप्त ने दक्खिन में प्रवेश किया.
चन्द्रगुप्त द्वितीयः- सन् 375 ई के लगभग समुद्रगुप्त के देहान्त के उपरान्त उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय गद्दी पर बैठा. उसने मालवा गुजरात व सौराश्ट्र को जीतकर अपने राज्य में मिलाया. चन्द्रगुप्त द्वितीय के उपरान्त सन् 413 ई में कुमारगुप्त प्रथम गद्दी पर बैठा. इसी समय पुष्यमित्र नाम के जाति के राजाओं ने गुप्त साम्राज्य से युद्ध छेडा और पुष्यमित्र की सेनाओं को पराजित होना पडा. कुमारगुप्त के उपरान्त स्कन्दगुप्त तथा उसके बाद हुणों के आक्रमण के कारण पुरगुप्त के समय में गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा. पुरगुप्त का उत्तराधिकारी नरसिंह गुप्त हुआ जिसने नालन्दा विश्व विद्यालय की स्थापना की. पुरगुप्त वालादित्य भी कहलाता हैं. उसके उपरान्त कुमार गुप्त द्वितीय के समय में लगता है कि फिर उत्तर में अनेक छोटे -छोटे राजाओं ने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिये थे.
तोरमाणः- सन् पांच सौ ई के लगभग हूण सरदार तोरमाण ने मालवा तक अपना शासन स्थापित किया ओर महाराजाधिराज की पदवी धारण की. तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल की राजधानी शाकल सम्भवतः सहारनपुर देहरादून की सीमा पर स्थित भग्नावशेष शाकल है, जो अब शाकम्बरी देवी के नाम से जानी जाती है. गुप्त साम्राज्य के विषय में चीनी यात्री फाहियान (405-411) के यात्रा का वर्णन से अनके बातों का ज्ञान होता है. गुप्त शासन काल के शिलालेखों में महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक उपाधियाँ राजाओं के नाम के साथ लिखी मिलती है. साम्राज्ञी महादेवी कहलाती थी और बडा लडका कुमार भट्टारक या युवराज कहलाता था. साम्राज्य के मुख्य अधिकारियों में महासेनापति भटाश्वपति संधि विग्रहिक महासंधि विग्रहिक महादण्ड नायक दण्डाधिप आदि नाम कत्युरी ताम्रपत्रों के समान है. जिलों के लिये विषय नाम कत्युरी शिलालेखों में भी है और गुप्त राजाओं के ताम्रपत्रों में भी.
( जारी )
(श्री लक्ष्मी भंडार अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित ‘पुरवासी’ के अंक-11 से साभार तिलाराम आर्या के आलेख के आधार पर )
गुप्त वंश तथा कुमाऊं भाग-1 के लिए यहाँ देखें
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