समाज

1 मई और रुद्रप्रयाग का बाघ

यह लेख वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अरुण कुकसाल की किताब ‘चले साथ पहाड़’ का एक अंश है. किताब का ऑनलाइन पता यह रहा – ‘चले साथ पहाड़’ – सम्पादक
(Gulabrai Mela Rudraprayag)

गुलाबराय आने को है और हिमाली सड़क किनारे स्थित आम के पेड़ के नीचे की एक छोटी सी घेरबाड़ नीतू को दिखाना चाहती है जहां पर जिम कार्बेट ने रुद्रप्रयाग के आदमखोर बाघ को मारा था.

‘‘अब तो गुलाबराय जाने को है और वो जगह क्यों दिखाई नहीं दे रही है?’’ हिमाली मेरी तरफ मुखातिब है.

मैं बताता हूं कि ‘‘उस आदमखोर बाघ ने सन् 1918-26 (आठ साल) के दौरान रुद्रप्रयाग क्षेत्र के 125 से अधिक लोगों मारा था. और, आखिरकार 1 मई 1926 की रात को जिम कॉर्बेट की बंदूक से निकली गोली ने उस बाघ का अंत किया था.
(Gulabrai Mela Rudraprayag)

तब गांव-गांव से सैकड़ों की तादाद में आये लोगों ने रुद्रप्रयाग आकर जिम कार्बेट की जय-जयकार की थी.

जिम कार्बेट शिकारी के साथ एक बेहतरीन लेखक भी थे. उन्होने इस घटना के संस्मरणों पर ‘रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ’ पुस्तक लिखी.

बीसवीं शताब्दी के उत्तराखंड के जनजीवन के बारे में जिस संजीदगी से उन्होने लिखा है, ऐसा बहुत कम देखने-पढ़ने को मिलता है. उनकी लिखी ‘माइ इंडिया’ बेहतरीन किताब है. तुम सबको यह किताब पढ़नी चाहिए. पर तुम लोग पढ़ते कहां हो, केवल देखते हो और वो भी मोबाइल.’’

गाड़ी में बैठे अन्य तीनों यात्रीगण अब मुस्कराहट के साथ इधर-उधर देख रहे हैं.

मुझे वह किस्सा भी याद आ रहा है कि जब सन् 1942 में मेरठ के मिलैट्री अस्पताल में जिम कार्बेट के सामने द्वितीय विश्व युद्ध में बुरी तरह घायल रुद्रप्रयाग क्षेत्र के किसी गांव का सैनिक उस वक्त अति खुशी से जोर-जोर से रो पड़ा जब उसे मालूम चला कि वह कारबेट साब (जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट याने जिम कॉर्बेट का आमजन में यही नाम था) से सचमुच मिल रहा है.
(Gulabrai Mela Rudraprayag)

बचपन में आदमखोर बाघ के मारे जाने की जो अपार प्रसन्नता अपने मां-पिता और गांव के लोगों में देखी थी, वह उसे हू-ब-हू याद थी. उस सैनिक को इस बात की खुशी हो रही थी कि वह अपने गांव जाकर बतायेगा कि उसने जिम कार्बट को देखा, उसे छुआ और उससे बात की. ये उसके लिए अपार गर्व की बात थी.

जिम कार्बेट की लोकप्रियता का आलम यह था कि वर्षों तक गुलाबराय में 1 मई को आदमखोर बाघ के मराने की याद में मेला मनाया जाता था. जिसमें दूर-दूर के ग्रामीण शामिल होते थे.

आज गुलाबराय में भवनों-दुकानों की भरमार है परन्तु वो धरोहर गायब है जिसमें जिम कार्बेट के साहस की खुशबू दशकों तक जीवंत रूप में महकती थी.
(Gulabrai Mela Rudraprayag)

– डॉ. अरुण कुकसाल

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अरुण कुकसाल का यह लेख उनकी अनुमति से उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है.

लेखक के कुछ अन्य लेख भी पढ़ें : वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अरुण कुकसाल के अन्य लेख

Support Kafal Tree

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

2 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

6 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

6 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago