Featured

कुमाउनी भाषक सब्बूं है ठुल मानी जाणी कवि गुमानी ज्यू

बने बने काफल किल्मौड़ो छे,
बाड़ामुणी कोमल काकड़ो छगोठन में
गोरू लैण बाखड़ो छ,
थातिन में उत्तम उप्राड़ो छ
(Guamani Pant)

यौ कविता छू गुमानी ज्यूकि. आज मैं आपूं कैं कुमाउनी भाषक सब्बूं है ठुल मानी जाणी कवि गुमानी ज्यूक बार में बतूंल. कोई कोई तो उनूकैं कुमाउनीक आदि कवि लै कूँ. उनर जनम 1791 सन में गंगोलीहाटक नजीक उप्राड़ा गौं में देवनिधि पन्त ज्यूक घर हौ. उनरि इजक नाम छी देवमंजरी. गुमानी उपनाम थैं उनूंल कविता लेखीं. उसि उनर असली नाम लोकरत्न धरी गो छी. उनर परिवारैक कुल परम्परा छी पंडित-वृत्ति और वैद्यकी. उनर जजमान कुमाऊं है अघिल नेपाल, गढवाल और तिरहुत जांलै फैली हाय.

गुमानी ज्यू संस्कृत भाषाक भौत्ते ठुल विद्वान् मानी जांछी. अपुण जिन्दगी में उनूंल करीब बीस किताब लेखीं जो संस्कृतक अलावा नेपाली और कुमाउनी में क छीं. उनूंल अपणी कविता में देशकालक भौत्ते जीवंत बखान करौ. उनरि कविता कैं समग्र पढ़ि बेर पत्त लागूं कि उ एक सच्च देशभक्त लै छीं. उनूल देशभक्ति वालि कविता जादे हिन्दी में लेखी लेकिन अपणी दुदबोलि मतलब मातृभाषा में उनूल यौ कुमाऊ देसक एक-एक चीजक बार में ख़ूब हौस लिबेर लेखौ.

कुमाउनी में लै यतुक मिठी भाषा लेखी जै सकें यौ बात कर बेर बतूणी वाल गुमानीज्यू पैल मैंस छी. हिसालूक लिजी लेखी उनरि एक कविता पढ़ बै समझी जै सकूं:

छनाई छन मेवा रत्न सगला पर्वतन में,
हिसालू का तोफा छन बहुत तोफा जनन में,
पहर चौथा ठंडा बखत जनरो स्वाद लिण में,
अहो, मैं समजुंछ अमृत लग वस्तु क्या हुनलो.
(Guamani Pant)

गुमानी ज्यू कैं सब लोग उनरि काफलक कविता लिजी लै याद करनी जिमें ऊं काफलोंकि वाणी में कूणी – खाणा लायक इंद्र का हम छियां भूलोक आई पड़ा. बताई जां कि एक फ्यार उनर वां अकाव पडौ. अकाव जसि विषम परिस्थिति में लै उनरि कविता ज्यूनी रै. यस मुस्किल बखत में उनूंल पैली अपण गौंक भाल बखातक बार में चार पंक्ति कईं:

केला निम्बु अखोड़ दाड़िम रिखू नारिंग आदो दही,
खासो भात जमालि को कल्कलो भूना गेडीरी गबा,
च्यूड़ा सद्य उत्योल दूद बाकलो घ्यू गाय को दाणे दार,
कहानी सुन्दर मौणियां धपडुआ गंगावली रौणियां.

और वीक बाद चार कईं अकालक बार में. जरा देखिया धैं –

आटा का अणचालिया खशखशा रोटा बड़ा,
बाकलाफानो भट्ट गुरूंस और गहत को डुबका,
बिना लूण काकालो शाक जीनो बिना भुटण को पिंडालू का,
नौल कोज्यों त्यों पेट भरी अकाल काटनी गंगावली रौणियां.

आज जब हमारि अघिल पीढ़ी कैं ठुल नगर-महानगरैक संस्कृति लुभूण भैट रै और पुराण लोग लै आपणी परम्पराऊं कैं भुलण लाग गेयीं, हमन कैं चैं कि हम आपण इतिहास में जै बेर अपुण द्याप्त जस कवि-लेखकूंकि पछ्याण करों और जतु लै संभव हो आपणी थाती कैं बचे बेर धरूं.
(Guamani Pant)

जब हम आपणी संस्कृतिक फाम नि करन तो समज ज्यो गोर्खाली राज दूर नि राइ जा जान जैक बार में गुमानी ज्यू कूंछी –

दिन-दिन को खजाना का भार बोकनलि,
शिव शिव चुली मेंका बाल नै एक केका,
तदपि मूलक तेरो छोड़ि नै कोई भाजा,
इति वदति गुमानी धन्य गोर्खाली राजा.

अशोक पांडे

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

4 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

5 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

5 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago