उत्तराखंड में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) को घुघुतिया (Ghughutiya) संक्रांति या पुस्योड़िया संक्रांति भी कहते हैं. उत्तराखंड में इसके अन्य नाम मकरैण, उत्तरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्यात्यार, खिचड़ी संक्रांति, खिचड़ी संगरादि भी हैं.
उत्तराखण्ड का लोकपर्व उत्तरायणी
मकर संक्रांति के त्यौहार के दिन अनेक पकवान कव्वों को खिलाये जाते हैं. घुघता इन पकवानों में मुख्य है. घुघुत एक पक्षी का नाम भी है. त्यौहार के दिन बनने वाला घुघुत पकवान हिन्दी के अंक ४ के आकार का होता है.
आटे को गुड़ में गूंदने के बाद उससे घुघते बनाए जाते हैं. इस बात को कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं है कि यह त्यौहार कब से और क्यों मनाया जाता है. इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि इस पकवान को घुघता क्यों कहते हैं.
एक लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था. एक ज्योतिषी ने उसे बताया कि मकर संक्रांति की सुबह कव्वों द्वारा उसकी हत्या कर दी जायेगी.
राजा ने इसे टालने का एक उपाय सोचा. उसने राज्य भर में घोषणा कर दी कि सभी लोग गुड़ मिले आटे के विशेष प्रकार के पकवान बनाकर अपने बच्चों से कव्वों को अपने अपने घर बुलायेंगे. इन पकवानों का आकर सांप के आकार के रखने के आदेश दिए गये ताकि कव्वा इन पर और जल्दी झपटे.
राजा का अनुमान था कि पकवान खाने में उलझ कर कव्वे उस पर आक्रमण की घड़ी को भूल जायेंगे. लोगों ने राजा के नाम से बनाये जाने वाले इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.
इसी तरह की एक अन्य जनश्रुति है. कहते हैं सालों पहले उत्तराखंड क्षेत्र में एक राजा हुआ करता था. उसे एक ज्योतिषी ने बताया कि उस पर मारक ग्रहदशा आयी हुई है. यदि वह घुघुतों (फ़ाख्तों) का भोजन कव्वों को करा दे तो उसके इस ग्रहयोग का प्रभाव टल सकता है.
राजा अहिंसावादी था. उसे संक्रांति के दिन निर्दोष पक्षियों को मारना ठीक नहीं लगा. उसने उपाय के तौर पर गुड़ मिले आटे के प्रतीकात्मक घुघते बनवाये. राज्य के बच्चों से कव्वों को इसे खिलवाया तभी से यह परम्परा चल पड़ी.
कव्वे को पकवान खिलने के संबंध में एक अन्य मान्यता यह है कि ठण्ड और हिमपात के कारण अधिकांश पक्षी मैदानों की ओर प्रवास कर जाते हैं. कव्वा पहाड़ों से प्रवास नहीं करता है. कव्वे के अपने प्रवास से इस प्रेम के कारण स्थानीय लोग मकर संक्रांति के दिन उसे पकवान खिलाकर उसका आदर करते हैं.
गढ़वाल में इसे ‘चुन्या त्यार’ भी कहा जाता है. इस दिन वहां दाल, चावल, झंगोरा आदि सात अनाजों को पीसकर उससे चुन्या नाम का विशेष व्यंजन तैयार किया जाता है. इस दिन गढ़वाल में आटे के मीठे घोल्डा/ घ्वौलो के बनाये जाने के कारण इसे घोल्डा या घ्वौल भी कहा जाता है.
उत्तरायणी में कौवो को खिलाने की परंपरा के बारे में एक और लोक कथा इस प्रकार है–
बात उन दिनों की है जब कुमाऊँ में चन्द्र वंश का राज हुआ करता था. उस समय के चन्द्रवंशीय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, जो उसकी उत्तराधिकारी बनती. इस वजह से उसका मंत्री सोचता था कि राजा की मृत्यु के बाद वही अगला शासक बनेगा. एक बार राजा कल्याण चंद रानी के साथ बाघनाथ मन्दिर गए और पूजा-अर्चना कर संतान प्राप्ति की कामना की.
बाघनाथ की अनुकम्पा से जल्द ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. पुत्र का नाम निर्भय चंद रखा गया. निर्भय को उसकी माँ लाड़ से उत्तराखंड की एक चिड़िया घुघुति के नाम से बुलाया करती. घुघुति के गले में मोतियों की एक माला सजी रहती, इस माला में घुंघरू लगे हुए थे. जब माला से घुंघरुओं की छनक निकलती तो घुघुती खुश हो जाता था.
घुघुती जब किसी बात पर अनायास जिद्द करता तो उसकी माँ उसे धमकी देती कि वे माला कौवे को दे देंगी. वह पुकार लगाती कि ‘काले कौवा काले घुघुति माला खाले’ पुकार सुनकर कई बार कौवा आ भी जाता. उसे देखकर घुघुति अपनी जिद छोड़ देता. जब माँ के बुलाने पर कौवे आ ही जाते तो वह उनको कोई न कोई चीज खाने को दे देती. धीरे-धीरे घुघुति की इन कौवों के साथ अच्छी दोस्ती हो गई.
उधर मंत्री जो राज-पाट की उम्मीद में था, घुघुति की हत्या का षड्यंत्र रचने लगा. मंत्री ने अपने कुछ दरबारियों को भी इस षडयंत्र में शामिल कर लिया. एक दिन जब घुघुति खेल रहा था तो उन्होंने उसका अपहरण कर लिया. वे घुघुति को जंगल की ओर ले जाने लगे. रास्ते में एक कौवे ने उन्हें देख लिया और काँव-काँव करने लगा. पहचानी हुई आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा. उसने अपनी माला हाथ में पकड़कर उन्हें दिखाई.
धीरे-धीरे जंगल के सभी कौवे अपने दोस्त की रक्षा के लिए इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों के ऊपर मंडराने लगे. मौका देखकर एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले उड़ा. सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच व पंजों से जोरदार हमला बोल दिया. इस हमले से घबराकर मंत्री और उसके साथी भाग खड़े हुए. घुघुति जंगल में अकेला एक पेड़ के नीचे बैठ गया. सभी कौवे उसी पेड़ में बैठकर उसकी सुरक्षा में लग गए.
इसी बीच हार लेकर गया कौवा सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा. जब सभी की नजरें उस पर पड़ी तो उसने माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी. माला डालकर कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा. माला पहचानकर सभी ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है और कहना चाहता है. राजा और उसके घुड़सवार सैनिक कौवे के पीछे दौड़ने लगे.
कुछ दूर जाने के बाद कौवा एक पेड़ पर बैठ गया. राजा और सैनिकों ने देखा कि पेड़ के नीचे घुघुती सोया हुआ है. वे सभी घुघुती को लेकर राजमहल लौट आये. घुघुती के घर लौटने पर जैसे रानी के प्राण लौट आए. माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि इस माला की वजह से ही आज घुघुती की जान बच गयी. राजा ने मंत्री और षड्यंत्रकारी दरबारियों को गिरफ्तार कर मृत्यु दंड दे दिया.
घुघुति के सकुशल लौट आने की ख़ुशी में उसकी माँ ने ढेर सारे पकवान बनाए और घुघुति से ये पकवान अपने दोस्त कौवों को खिलाने को कहा. घुघुति ने अपने सभी दोस्त कौवों को बुलाकर पकवान खिलाए. राज परिवार की बात थी तो तेजी से सारे राज्य में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया. तब से हर साल इस दिन धूमधाम से यह त्यौहार मनाया जाता है. तभी से उत्तरायणी के पर्व पर कौवों को बुलाकर पकवान खिलाने की परंपरा चली आ रही है.
मकर संक्रान्ति पर कमल जोशी के भकार से काले कौव्वा
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