एक दिन घटिया चरस के सेवन ने गट्टू भाई की ऐसी गत बनाई कि वो लगातार अठत्तर घंटे सोते रहे. उनकी इस सांसारिक अनुपस्थिति के दौरान जंगलात डिपार्टमेंट के दो टेन्डर, एक नामकरण और तीन शामें मिस हुईं और उनके एक बेहद करीबी दोस्त ने उनके भविष्य पर चिंता जाहिर करते हुए उनसे बुरी चीज़ों से दूर रहने और अच्छी चीज़ों को गले लगाने उचित सलाह दी. ये दोस्त हिमांचल के एक बौद्ध आश्रम में विपश्यना का कोर्स कर आए थे और उसके बाद से सभी बुरी चीज़ों से दूर रहते हुए केवल और केवल जंगली लकड़ी और लीसे की स्मगलिंग करते थे और बड़े आदमी बनने की राह पर थे.
गट्टू भाई पर इस सज्जन स्मगलर दोस्त की बात का असर हुआ. सहायकों की ड्यूटी लगा दी गयी कि बढ़िया और आरामदेह विपश्यना करवाने वाली जगह खोज कर उनके वास्ते एक सीट बुक करवाएं. सप्ताह भर के बाद गुड़गाँव के पास एक ऐसी जगह मिल गयी और उक्त घटना के बाद से अठत्तरी बाबा की उपाधि अर्जित कर चुके गट्टू भाई हल्द्वानी से अपने वफादार ड्राइवर जगदीश उर्फ़ जगुवा गनेल को लेकर विपश्यना करने आश्रम पहुँच गए. ज़ाहिर है कि जगदीश के इस नाम का सम्बन्ध गाड़ी चलाने की उसकी घोंघा-स्पीड से था.
गट्टू भाई की विपश्यना उन्हीं की ज़बानी –
“तो अशोक भाई रिसेप्शन पे जो है एक बाबा टाइप की लौंडिया बैठी हुई थी और उन्ने पैले तो मुजसे पूछी कि ठाकुर साब आपको हमारे बारे में बताया किन्ने. मैंने कई कि मेरे फारम का मैनेजर हैगा दसरथ उन्नेई बुकिंग कराई. उसके बाद बो बोली कि आप जाना करो हो कि ह्यां बड़े कायदे-नियम से रैना पड़े है तो मैंने तो हाथ जोड़ दिए कि चाओ तो ऊपर से और पेसे ले लो बस ये सांप के कान के नीचे वाले माल की लत छुड़ा दो. नियम-क़ानून चाए जित्ते फिट कल्लो. फिर उन्ने देखा जे जगुवा को और पूछने लगी के ये भी कोर्स करंगे तो मैंने कई कि जे जगुवा हैगा और इसने कुछ स्टाट ई नईं किया तो छोड़ेगा किच्चीज को? घंटा!”
“मुज्को तो कर दिया गया कमरे में सेट और जगुवा गया स्टाप-क्वाटर में. शाम हो रई थी और कीटा-फाइट का टैम भी. तलब तो बड़ी लगी पर पन्दरा ही मिनट में डिनर का बुलावा आ गया और मैंने क्या देखा कि बिपसना करने को आए दो आदमी और छे-सात लैडीजें डाइनिंग टेबल बेठ के पे घास जैसी कुछ चीज खा रये. बिना जूते पैने एक आदमी खड़ा था. मैंने सोची बैरा होगा तो बो लिकला आसरम का इंचार्ज. तो उन्ने बताया कि बोई डिनर हैगा. बो तो तुमारी भाबी ने थोड़ी मठरी-फटरी धर रखी थी बैग में. उसकी मुजे याद थी. सो मैंने कई कि मुजे भूख ना है. डिनर के बाद उन्ने जो नियम-कानून गिनाए तो मैंने सोची के बेटा गट्टू तेरी तो हो गई मौत.”
“आप समल्लें सुबे जल्दी उठना होगा, दिन भर में एक लफज नईं बोलना होगा, दो टैम खाने को सादा खाना मिलेगा और आँख बंद कर के पैले दिमाग के अन्दर लाल पॉइंट को ढूंढना होगा और उसके बाद उसी को देखते रैना. स्याम के साढ़े सात पे घास मिलेगी, और उसके बाद जो सवाल मन में आ रए उनमें से बस एक को पूछ सको हो. चौबीस घंटे में बस इत्ता ई बोलने की परमीसन मिलेगी. और फिर सो जाओ.”
“खैर मैंने कई कि गट्टू गुरु देखी जागी. जो होवेगा सिबजी अच्छे के लिए ही करंगे. जे कायदे-कानून सुन के जब मैं पौंचा कमरे पे तो देखा मेरा बैग खुला हुआ हैगा और उसमें से सिगरेट की डिब्बी, विस्की का हाफ और मठरी सब गायब. अच्छा हुआ बटुवा मेरी जेब में ही था. मैंने रिसेप्सन पे जाके लौंडिया से कया कि मेरे कमरे में चोरी हो गयी तो बो हंस के कैने लगी कि जो माल बैग से लिकाला गया है बो कोर्स ख़तम हो जाने पे बापिस मिल जागा.”
“पेट पकड़ के सोने की कोसिस तो करी पर नींद आ के ना दे. जब आ गई और मैंने सपना देखना सुरू ही किया तो अचानक ऐसा लगा जैसे कोई मार ठन्नठन्न-ठन्नठन्न-ठन्नठन्न-ठन्नठन्न कनपटी पे फायरिंग कर रिया. मुझे लगा बौडर पे हमला हो गया. ऐसेई घबरा के उठ के देखा तो दरबज्जे के भार एक आदमी थाली पीट रिया था. मैं उसको डांटने को कुछ बोलता उसके पैलेई उन्ने होंट पे उंगली धर के चुप होने का इशारा किया और बोला कि पन्दरा मिनट में तैयार हो के बिपसना के लिए बगीचे में पौंचना हैगा.”
“घड़ी देखी तो साला पैन्चो पौने तीन. मैंने कई सबर कर गट्टू बेटे कोई बात ना. हप्ते भर की बात हैगी. सब गोला बना के पेले से बेठे थे तो मैं बी बेठ गया. उसके बाद साला बिपसना में बोई इंचार्ज जिसको मैंने बेरा समजा था बो आप समल्लें तीन घंटे जे बताता रया कि आँख कैसे बंद करनी हैगी. बीच में एक आदमी ट्रे ले के आया तो मैंने समजा चाय आई होगी. चाय आती घंटा. साला उबले धनिये का फीका पानी दे के गया सब को. लेडीजें भौत मजे से सुड़क गईं . और मुज को तो अशोक भाई उल्टी आते-आते रै गयी.
“ह्वां इंचार्ज बोलता जा रिया था और ह्यां पेट में गरम पानी के जातेई गट्टू भाई को प्रेसर. कैसे रोका मैंई जाना करूं कसम से. तीन घंटे के बाद हमसे कई गई कि आदे घंटे में ना-धो के हल्का ब्रेकफास्ट होगा और उसके बाद लंच तक बिपसना.”
“ब्रेकफास्ट में मिला आधा उबला आलू और दो दर्जन चने के दाने. तुम तो जाना करो हो कि मुजे रोज सुबे नौ बजे कैसी भूख लगती है अशोक भाई. और उद्दिन तो सात बजे ही कोई मुझे कैता तो मैं डेढ़ किलो का चिकन अकेले सूत जाता. खाली पेट साला आठ बजे से एक बजे तक गोला बना के आँख बंद करके लाल पॉइंट देखते रए. मैंने चोरी से कनखियों में सारी लेडीजों को इत्ता ताड़ लिया कि मन उचाट हो गया साला. उधर मन में ये हो रिया था कि एक बजे खूब खाऊंगा लंच में. और लंच में मिली आधी कटोरी मूंग की दाल, बाजरे की दो रोटी और चार टुकड़े खीरे के. और मांगने का मतलब ई नईं . इंचार्ज बोला कि एक घंटे का रेस्ट और फिर स्याम तक बिपसना और साढ़े चार बजे चाय-नास्ता. दो रोटी खा के साली भूख और बी भड़क गयी. कमरे पे गया तो एक बार इच्छा हुई कि भूखे रेने से अच्छा जे हैगा कि चार लात मार इन सब को और निकल्ले हल्द्वानी. फिर बी मैंने खुद को समजाते हुए कई कि गट्टू बेटे कोई बात ना. सबर कर हप्ते भर की बात हैगी.”
“कमरे पे जैसेई आँख लगने को हुई फिर वोई ठन्नठन्न-ठन्नठन्न-ठन्नठन्न-ठन्नठन्न. तीन घंटे फिर बोई लाल पॉइंट देखो. अब मैं ज़रा अधमरा टाइप हो गया. साढ़े चार बजे धनिये का उबला पानी और दो फीके बिस्कुट. पन्दरा मिनट कमरे पे आराम करने गया तो पेट जैसे ज्वालामुखी की तरे बस आग-आग-आग कै रिया और आँख बंद होने को हो रई. उसके बाद फिर वोई ठन्नठन्न-ठन्नठन्न-ठन्नठन्न-ठन्नठन्न और फिर डिनर तक लाल पॉइंट.”
“मेरी रूह जाना करे अशोक भाई कैसे बिताया बो टैम. कभी लगे अब लकवा पड़ा तब पड़ा. कबी लगे जैसे हार्ट ने काम करना बंद कद्दिया. कबी आँख खोल के देखूं तो सब लाल-लाल दिखने लग जा. जब कनपट्टी में साली जूंओं की बरात जैसी रेंगने लग गयी तब जा के साढ़े सात बजे फिर डिनर का बखत आया और ह्वां फिर से बोई घास.”
“आप समल्लें अशोक भाई घास देखी तो मुजको जो है चक्कर जैसा आ गया. अब भूख तो लगी ही थी. जैसे-तैसे दो कटोरे घास निबटाई. उसके बाद सवाल-जवाब का सेसन चल गया. मेरी बारी आई तो मैंने कहा कि साब बाकी तो आप लोग देस के लिए भौत बड़ा काम कर रए हो पर खाना थोड़ा ढंग का मिल जाता तो … तो अशोक भाई बो इंचार्ज बोला कि ठाकुर साब कल से आपको जो है आदत पड़ जागी. उसके बाद उसने आधे घंटे का लेक्चर दिया कि हमारी बॉडी कूड़े का गोदाम हैगी और आदमी को सुद्ध करना उनके प्रोग्राम का टारगेट है और ये और मार वो.”
“कमरे पे गया तो ऐसा लगा जैसे दो मील की नहर खोद के आ रिया हूँ. बिस्तर पे लेटा तो आँख बंद करते ही खोपड़ी टकराई छत से जैसे तीन-चार क्वाटर सूत लिए होंगे बिना खाए. दो घंटे बिस्तरे पर उलटपुलट करने के बाद आया पैन्चो पसीना और ऐसा लगने लग गया कि आज रात मौत अब आई और तब आई. उसके बाद अशोक भाई मुझे आई तुम्हारी भाबी और बच्चों की याद. फिर क्या था अंदर से आई जोर की आवाज. कोई चिल्ला के बोला कि साले गट्टू भाग. और गट्टू भाग गया. चौकीदार वगैरा को चकमा दे के और दीवार फांद ने जो रोड पे कूदा तो घुटना छिल गया. चार कदम भागा तो टखना मुड़ गया लेकिन मैं भागता गया. जब तक टैक्सी ना मिली रुका नईं . उसके बाद पकड़ी टैक्सी और आ गया हल्द्वानी …”
गट्टू भाई मुझे घुटने पे लगी चोट का निशान दिखाने लगे तो मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया – “वो जगदीश ड्राइवर भी तो वहीं रह रहा था ना आश्रम में? उसका क्या हुआ?”
“वो …जगुवा गनेल!” गट्टू भाई अपनी ट्रेडमार्क मोटरसाइकिल हंसी निकालते हुए बोले, “सुबे तीन बजे उसको धर लिया आसरम के इंचार्ज ने कि बेटा तुम्हारा मालिक तो भाग गया मगर पैसे पूरे दे रक्खे हैंगे तो कोर्स किसी न किसी को तो करना ही होगा. रूल यही हैगा. तो फिर … होना क्या था जगुवा ई बिचारा बिपसना करके आया मेरे बदले ….”
-अशोक पाण्डे
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गज़ब गट्टू भाई, बेचारा जगुआ गनेल
अज़ब अद्भुत गुदगुदाती व्याख्या....
बेहतरीन, लाजवाब!