उत्तराखण्ड के पारंपरिक वाद्ययंत्रों, ढोल-दमाऊ, डौंर-थाली, मसकबीन, की धुन पर लोकभाषा में स्कूली वंदना की कल्पना गढ़वाल में साकार हो रही है. (Garhwali Saraswati Vandana Pauri)
उत्तराखण्ड के पौड़ी जिले के दो स्कूलों में सरस्वती वंदना अब स्थानीय वाद्ययंत्रों के साथ गढ़वाली भाषा में हो रही है. जिले के एक प्राथमिक और एक माध्यमिक विद्यालय में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
यह कल्पना मूर्त रूप ले पायी है पौड़ी के जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल की लोकभाषाओं व लोकसंस्कृति के संरक्षण व संवर्धन की मुहीम के चलते.
धीरज गर्ब्याल इससे पहले पौड़ी गढ़वाल में पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए गढ़वाली भाषा में स्कूली पाठ्यक्रम तैयार करने की महत्वाकांक्षी परियोजना को मूर्त रूओप दे चुके हैं.
पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी का प्रभार सँभालते ही धीराज ने गढ़वाली भाषा को प्राथमिक शिक्षा से जोड़ने के गंभीर प्रयास शुरू कर दिए थे. इस कर्योजना के तहत सबसे पहले विशेषज्ञों की निगरानी में स्कूली पाठ्यक्रम तैयार कर उसे लागू किया गया. जून 2019 में कक्षावार ‘धगुलि’, ‘हंसुलि’, ‘झुमकि’, ‘पैजबी’ आदि पाठ्यपुस्तकों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया था. जिलाधिकारी की इस पहल की तब मुख्यमंत्री समेत राज्य की जनता द्वारा खूब सराहना की गयी थी. इस शुरुआत को उत्तराखण्ड की लोकभाषा व लोकसंस्कृति के संरक्षण की सार्थक पहल के रूप में देखा गया था. इस बारे में विस्तार से पढ़ें: पौड़ी के डीएम धीराज गर्ब्याल की पहल पर पांचवीं कक्षा तक गढ़वाली पाठ्यक्रम तैयार
इसी कड़ी में इन दिनों धीराज गर्ब्याल के निर्देशन में शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों में प्रातःकालीन वंदना को भी गढ़वाली में किये जाने की कार्ययोजना को अमली जामा पहनाया गया.
इसके लिए आठ लोगों द्वारा बाकायदा स्थानीय वाद्ययंत्रों का प्रशिक्षण दिया गया.
प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद पौड़ी जिले के राजकीय प्राथमिक विद्यालय, कल्जीखाल ब्लॉक और राजकीय आदर्श इंटर कॉलेज धुमाकोट, नैनीडांडा में गढ़वाली में सरस्वती वंदना से स्कूल के दिन की शुरुआत करने की परंपरा शुरू कर दी गयी है. जल्द ही जिले के सभी विद्यालयों में इस परम्परा की शुरुआत कर डी जाएगी. इस बारे में जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग द्वारा तेजी से प्रयास किये जा रहे हैं.
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