उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील में अवस्थित सीमान्त व्यांस घाटी के पहले गाँव बूदी से गर्ब्यांग तक की दूरी कुल 9 किलोमीटर है. पिछले कोई पचास साल से इस गाँव को ‘धंसता हुआ गाँव’ की ख्याति मिली है. एक ज़माने में यह गाँव एक विशाल चौरस मैदान पर बसा हुआ था लेकिन 1960 के बाद से इसने धंसना शुरू किया और इसके परिणामस्वरूप व्यांस घाटी के कुछ सबसे सुन्दर घर नेस्तनाबूद हो गए. धंसने की यह प्रक्रिया आज भी जारी है और लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी वाले अनेक पुराने मकान बहुत खतरनाक ढंग से बची-खुची साबुत ज़मीन से अटके और टंगे हुए देखे जा सकते हैं.
गर्ब्यांग गाँव के भूगोल को वर्णन करते हुए एटकिंसन ने लिखा है – “ऊपरी व्यांस घाटी का पहला गाँव है काली नदी के समीप 10,320 फीट की ऊंचाई पर बसा गर्बिया अथवा गर्ब्यांग. मकान दोमंजिले हैं और एक-दूसरे के नज़दीक बनाए गए हैं. घरों के बाहर लकड़ी के खम्भे लगाए गए हैं जो या तो सज्जा के लिए हैं या संभवतः किसी अन्धविश्वास के कारण. यहां से थोड़ा आगे छिन्दू गाँव के अवशेष हैं जिसका बाकी हिस्सा नदी अपने बहाव में बहा कर ले जा चुकी है. इस घाटी का आधार आसपास के पहाड़ों की पुरानी मिट्टी और पत्थरों से खासे बड़े हिस्से बना हुआ है अलबत्ता इसकी बुनावट बहुत ढीली है. गाँव की सतह से कोई तीन-चार सौ फीट नीचे नदी इसके एक बड़े हिस्से को काट चुकी है. नदी के ठीक किनारे बसे मकानों को इससे बहुत ख़तरा है.”
1962 से पहले गर्ब्यांग गाँव कुमाऊं के संपन्नतम गांवों में से एक था. एक समय में तिब्बत से होने वाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र रहा यह गाँव चहल-पहल का केंद्र हुआ करता था. 1882 में छपे एटकिंसन के गजेटियर में लिखा हुआ है कि खसदेश के तत्कालीन राजा बाजबहादुर चंद ने इस व्यापार की तरक्की में बहुत दिलचस्पी दिखाई और व्यापार के मार्ग की रखरखाव के लिए बहुत काम किया.
गाँव का धंसना गर्ब्यांगवासियों के लिए बहुत बड़े सदमे की तरह था जिन्हें सरकार ने कुमाऊँ की तराई के सितारगंज के अजनबी मैदानों में पुनर्वासित किया. यदि यहां से गुज़रते हुए एक यात्री के तौर पर आपकी किस्मत अच्छी हो और आपको यहां रात बिताने का मौक़ा मिले तो आपको उस छोटे विलायत या मिनी यूरोप के अनेक किस्से सुनने को मिल सकते हैं जिस नाम से यह गाँव एक ज़माने में जाना जाता था.
स्विट्ज़रलैंड के यात्री आर्नल्ड हाईम और ऑगस्ट गैंसर ने 1936 में इस गाँव का भ्रमण किया था. गर्ब्यांग गाँव के अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द थ्रोन ऑफ़ द गॉड्स: एन अकाउंट ऑफ़ द फर्स्ट स्विस एक्स्पेडीशन टू द हिमालयाज’ में लिखा है.
(टेक्स्ट: अशोक पाण्डे)
गर्ब्यांग गाँव की कुछ मनोहारी छवियाँ अनिरुद्ध गर्ब्याल के कैमरे से.
गर्ब्यांग गाँव के लोग, उनके देवता और करजंग गुन्ग्का की कथा
गर्ब्यांग गाँव से तसोंग ह्या-गुंगसुंग ह्या और ह्या नमज्युंग की कथाएं
गर्ब्यांग गाँव के मूल निवासी अनिरुद्ध गर्ब्याल मुम्बई में रहते हैं और सिनेमा से जुड़े हुए हैं. पहले मसूरी के विख्यात स्कूल वाइनबर्ग एलेन से शिक्षा ली और बाद में सत्यजित राय फिल्म और टीवी इंस्टीट्यूट से मोशन पिक्चर फोटोग्राफी में डिग्री हासिल की. बॉलीवुड की अनेक फिल्मों में काम कर चुके अनिरुद्ध अपनी जड़ों से बहुत मोहब्बत करते हैं और साल में एकाधिक बार अपने गाँव अवश्य आते हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
View Comments
बढ़िया आलेख।
Very nice & attractive place of the earth, it's natural scenery is best