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गंगोत्री धाम का इतिहास

उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर है चार धामों में से एक गंगोत्री. जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से इसकी दूरी 97 किमी है. यहाँ पहुंचकर गंगा उत्तर की ओर बहने लगती है, इसीलिए इसे गंगोत्री (गंगा+उत्तरी) कहा जाता है.  

गंगोत्री को सामान्यतः गंगा नदी का उद्गम माना जाता है लेकिन गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री धाम से 17 किमी आगे गौमुख ग्लेशियर से है. गंगा से ही इस धाम को गंगोत्री कहते हैं लेकिन यहाँ इसके प्रवाह को भागीरथी कहा जाता है. देवप्रयाग में भागीरथी, अलकनंदा और मन्दाकिनी के संगम के बाद से नदी का प्रवाह गंगा कहलाता है.    

पौराणिक मान्यता के अनुसार गंगोत्री ही वह जगह है जहाँ भगीरथ ने गंगा को धरती पर ले आने के लिए घोर तपस्या की थी.  भगीरथ के पूर्वज कपिलमुनि के क्रोध से भस्मीभूत हो गए थे. अपने इन्हीं पूर्वजों, जो कि सगर के पुत्र थे, के तारण के लिए वे गंगा को धरती पर लाना चाहते थे. उन्होंने श्रीमुख पर्वत पर घोर तपस्या की और ब्रह्मा के कमंडल में रहने वाली गंगा को धरती पर आने के लिए राजी कर लिया. सवाल यह था कि  गंगा जब धरती पर आएगी तो उसके प्रचंड वेग को कौन संभालेगा. इसके लिए शिव राजी हुए. शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को संभाल लिया. वहां से भगीरथ अपने तप के प्रताप से गंगा को गंगासागर ले गए. उन्हीं राजा भगीरथ का मंदिर भी गंगोत्री में है.  

यह भी कहा जाता है कि महाभारत में पांडवों द्वारा गोत्र, गुरु, बंधु हत्या के बाद जब शिव उनसे नाराज हो गए थे तो पांडवों ने गंगोत्री में ही शिव की अराधना की. गंगोत्री में भगवन शिव के दर्शन करने के बाद पांडव स्वर्गारोहिणी के लिए निकल पड़े थे.

यहाँ पर भगीरथ के मंदिर के अलावा गंगा का एक मंदिर भी है. कहते हैं कभी यहाँ कोई मंदिर नहीं था. उन्नीसवीं सदी में गोरखा शासक अमर सिंह थापा ने यहाँ एक छोटा सा मंदिर बनवाया. यह मंदिर उसी शिला पर बनाया गया था जिस पर बैठकर भगीरथ ने तपस्या की थी. अमर सिंह थापा ने ही मुखबा के सेमवाल ब्राह्मणों को यहाँ का पुजारी नियुक्त किया. मुखबा गाँव ही गंगा का शीतकालीन प्रवास भी है. शीतकाल में जब गंगोत्री के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तब उनकी पूजा-अर्चना मुखबा के गंगा मंदिर में ही की जाती है.

नवम्बर में गंगोत्री के कपाट शीतकाल के लिए, दीवाली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन, बंद कर दिए जाते हैं. इसके बाद अक्षय तृतीया के दिन भव्य समोराह में कपट पुनः खोले जाते हैं.  

कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण जयपुर के राजपूत राजाओं द्वारा करवाया गया था. इस मंदिर में मां गंगा की भव्य प्रतिमा है. इसके अलावा जाह्नवी, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, भागीरथी, सरस्वती तथा आदि शंकराचार्य की मूर्तियाँ भी इस मंदिर में हैं.

गंगोत्री में मौजूद भगीरथ शिला के पास ही ब्रह्म कुंड, सूर्यकुंड, विष्णुकुंड है, जहाँ पर श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद अपने पितरों का पिंडदान किया करते हैं.  

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Sudhir Kumar

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