गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाए जाने की मांग कर रहे विभिन्न संगठन दो अक्तूबर को राज्य भर में आक्रोश दिवस मनाएंगे. 90 के दशक में जब पृथक राज्य की मांग विधिवत रूप से आगे बढ़ी, तब से ही इस प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में गैरसैंण को देखा जाने लगा था. लेकिन राज्य गठन के सालों बाद भी इस जरुरी मुद्दे का कोई स्थायी हल नही निकल सका है.
इससे पहले बुधवार को स्थाई राजधानी गैरसैण की मांग को लेकर अलग अलग संगठनों से जुड़े लोगों ने अभियान के साथ मिलकर दसवें दिन भी अपना अनिश्चितकालीन धरना और उपवास कार्यक्रम जारी रखा. इसके बाद सामूहिक बैठक कर निर्णय लिया कि दो अक्तूबर को आक्रोश दिवस मनाया जाएगा.
साल 2000 में जिस ‘उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक’ के ज़रिये उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, उस विधेयक में राजधानी के सवाल पर चर्चा ही नहीं की गई. लिहाज़ा प्रदेश की पहली सरकार ने राजधानी के निर्धारण के लिए ‘राजधानी चयन आयोग’ का भी गठन कर दिया. इस आयोग को दीक्षित आयोग भी कहा जाता है.
उत्तराखंड में आम जनभावनाएं हमेशा से गैरसैंण के पक्ष में रही हैं. यही कारण है कि प्रदेश में कोई भी राजनीतिक दल कभी इस स्थिति में नहीं रहा कि गैरसैंण राजधानी बनाए जाने की बात को सिरे से ख़ारिज कर सके. लेकिन स्थाई राजधानी से पहले ग्रीष्मकालीन राजधानी की ओर चलते हुए सरकार शायद ये भूल गई कि इस प्रदेश में लोगों को छलना अब संभव नहीं है.
पिछले 17 सालों से अधिक वक्त में कोई भी सरकार जवाब नहीं दे पाई कि स्थायी बनेगी या नहीं, पलायन रुकेगा या नहीं, शिक्षा मिलेगी या नहीं, बीमारियों से निजात दिलाने वाली स्वास्थ व्यवस्था परिपूर्ण होगी या नहीं, पीने का पानी मिल पायेगा भी या नहीं, इन तमाम सवालों के जवाब अभी भी बाकी हैं.
इस मांग को टालते रहना और स्थायी राजधानी के मुद्दे को लंबित रखना ही हर राजनीतिक दल को सबसे मुफ़ीद विकल्प लगता रहा है लेकिन इस बार जिस तरह से यह मांग धीरे-धीरे व्यापक हो रही है.
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