उत्तराखण्ड में कई जगहों के नामों की शुरुआत में गड़, गढ़ी या गढ़ का इस्तेमाल दिखाई देता है. इस शब्द का इस्तेमाल उत्तराखण्ड में मध्यकाल के शासकों के समय से होता आया है. मध्यकाल में उत्तराखण्ड में स्थानीय शासकों का शासन हुआ करता था. (Gadh Medieval Fort Uttarakhand) इन शासकों की अपनी छोटी-छोटी सामंती रियासतें हुआ करती थीं. इन रियासतों के छोटे दुर्ग भी हुआ करते थे. इन दुर्गों को कोट, बुंगा, गड़, गढ़ी या गढ़ कहा जाता था. इसका निर्माण उस रियासत की सबसे ऊंची चोटी पर एक समतल भूमि पर किया जाता था. कत्यूर, चन्द, पवांर आदि शासकों के गढ़ों के अलावा इनके सामंतों, जागीरदारों के भी अपने गढ़ भी हुआ करते थे.
इन मध्कालीन गढ़ों के अवशेष आज भी कई जगहों पर मौजूद हैं. इन अवशेषों से पता चलता है कि इन गढ़ों की दीवारें काफी मोटी और मजबूत हुआ करती थीं. इनका बाहरी घेरा धरातल के हिसाब से ही बनाया जाता था. इन दीवारों का निर्माण विशाल पत्थरों से किया जाता था. इन पत्थरों को कुशल कारीगरों द्वारा काट-छांट लिया जाता था. इन बड़े पत्थरों का लम्बाई डेढ़-दो मीटर तक भी हुआ करती थी. इन दीवारों के भीतर पहाड़ के कुछ उभारों को भी शामिल कर लिया जाता था.
इन दीवारों में थोड़ा दूरी पर क्रमवार मोहरे बने होते थे, जिनसे बंदूक दागी जा सकती थी. गढ़ का भीतरी रास्ता मुख्य द्वार पर आकर खुलता था, यह आगे राजमार्ग में शामिल हो जाता था. मुख्य प्रवेश द्वार के अलावा भी अन्य कई द्वार हुआ करते थे. इन सभी दरवाजों के पिछले हिस्से में सेनानायकों के कमरे हुआ करते थे. यहीं पर शस्त्रागार भी होते थे. इन गढ़ों में किसी भी बुरी स्थिति का सामना करने के लिए अन्न का पर्याप्त भण्डार और जलापूर्ति की व्यवस्था हुआ करती थी.
किसी समय केदारखंड के नाम से जाने जाने वाले गढ़वाल को तो यहाँ भारी संख्या में गढ़ों के होने के कारण ही गढ़वाल कहा जाता है. इतिहास बताता है कि पंवारवंशी राजा अजयपाल ने जब एक राज्य के रूप में गढ़वाल का एकीकरण किया तो यहाँ मौजूद गढ़ों की संख्या पचास से ज्यादा हुआ करती थी.
इन गढ़ों को कोट या बुंगा के नाम से भी जाना जाता था. अतः उत्तराखण्ड में जिन जगहों के नामों में गढ़, कोट या बुंगा शामिल है वे प्रायः मध्यकाल की छोटी रियासतों से सम्बंधित हैं. जैसे –बड़कोट, आराकोट, अस्कोट, धूमाकोट, रामगढ़, पिथौरागढ़, गढ़कोट, रतनगढ़ आदि.
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