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हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 49

हैड़ाखान बाबा की मृत्यु के कुछ ही दिन बाद एक किशोर वय का बाबा हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. इसका कोई पुख्ता सबूत तो नहीं था किन्तु बताया गया कि उसने एक बाबा को पहाड़ी से नीचे गिरा कर मार डाला. पद्मादत्त पन्त जी ने इस बाबा को जमानत पर छुड़वा लिया और घर ले आए. उसके लिए एक कुटिया बना दी और बताने लगे कि यह बहुत चमत्कारी बालक है. वे यह बताना चाहते थे कि जिस तरह पुराने हैड़ाखान बाबा नया चोला पहनकर आये थे उसी तरह अब इस बालक रूप में चोला बदल कर आए हैं. उन्होंने बांके लाल साह और मुझे उस बालक के चमत्मकारों को देखने के लिए आमंत्रित किया और कहा कि इसे देख कर आप लोग भी मान जाओगे. एक दिन बांकेलाल साह और मैं दोपहर में जब उनके घर पहुंचे तो वे बड़ी बेचैनी के साथ इधर-उधर टहल रहे थे और कहने लगे कि बाबा पुंडरीकाक्ष उनकी अनुपस्थिति में उस बालक बाबा को उठा कर ले गए हैं. वेदान्ताचार्य बाबा पुंडरीकाक्ष मुनस्यारी से आगे मर्तोली की बर्फीली पहाड़ियों में एक लम्बे समय तक साधना कर चुके थे. मर्तोली के घने भोजपत्र वन में विचरण करने वाले कस्तूरी मृग उनके आश्रम में पालतू जानवरों की तरह रहते थे. बहुत से लोग उनकी तपस्या से अविभूत थे लेकिन वे भी विवादों से परे नहीं रह पाये. एक बार तो उन्हें जासूस समझ कर जांच भी की गई. उनका मुनस्यारी बस स्टेशन नहीं एक मकान भी था जिसे बाद में उन्होंने मेरे समाचार पत्र के सहयोगी दुर्गासिंह मर्तोलिया को बेच दिया. वे अक्सर हल्द्वानी नवाबी रोड़ में आकर टिका करते थे. पन्त जी ने बताया कि बाबा पुण्डरीकाक्ष उस बालक को उठा ले गए हैं. उसके बाद उसका कोई पता नहीं चल पाया. कुछ साल बाद हरिद्वार में एक दशहरगिरि नामक बाबा के लापता होने का समाचार सुर्खियों में छपा और उसके माने जाने की आशंका जाहिर की गई. जांच करने वाले हैड़ाखान भी पहुंचे. पत्रकारों की टीम के साथ मैं भी हैड़ाखान तक गया किन्तु वहां कुछ पता नहीं चल पाया. कुछ समय बाद बाबा के मिल जाने का समाचार भी मिला और यह भी पता चला कि दशहरगिरि बाबा और कोई नहीं वही बालक है. बाबाओं और उनके भक्तों के रहस्यलोक का पता लगा पाना आसान काम नहीं है.

संदेश सागर के साथ जुड़ने के बाद हल्द्वानी के तत्कालीन पत्रकारों से भी मेरा परिचय हुआ. ‘जागृत जनता’ के सम्पादक ओर क्रान्तिकारी विचारधारा के पीताम्बर पांडे को यद्यपि आज सभी लोग भूल गए हैं लेकिन भारी विपन्नता में भी उनका अक्खड़पन भूला नहीं जा सकता है. अपनी बात बेवाकी से कहने के लिए वे अपने अन्तिम दिनों में भी दो पेज का अखबार निकाल कर बांट दिया करते थे. वे और उनकी पत्नी दोनों मिल कर कम्पोजिंग किया करते थे. आय का विशेष जरिया भी नहीं था, बच्चे भी इस लायक नहीं थे कि उनका सहयोग कर सकें. मूल रूप पाटिया निवासी पीताम्बर पांडे का जन्म सन 1980 में फरसोली भीमताल में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा भी साधारण थी. कानपुर में वे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी और डॉ. जवाहर लाल रोहतगी के साथ रहे. वहीं इनके पैर में गोली लगी. यहीं रह कर क्रान्ति का बीज उनके मन में प्रस्फुटित हुआ. वैशम्पायन व बनारसी दास चतुर्वेदी के साथ भी रहे. 1930 और 1942 में कारावास में भी रहे. 1932 में अल्मोड़ा से निकलने वाले तत्कालीन क्रांतिकारी समाचारों के साथ भी वे जुड़े लेकिन अपनी बात कहने के लिए उन्होंने ‘जागृत जनता’ का प्रकाशन शुरू किया. बाद के वर्षों में हल्द्वानी टनकपुर रोड में उन्होंने एक प्रेस लगा लिया और यहीं से समाचार पत्र निकालने लगे. उनके पत्र में आजादी से पूर्व के ही क्रांतिकारी विचारों की झलक मिलती थी. उन दिनों स्वतंत्रता सेनानियों को विशेष सहायता भी नहीं मिलती थी और न समाचार पत्र निकालना लाभकारी था. लेकिन भूखे रह कर भी पांडे जी अखबार निकालते थे और तमाम उन कमियों को निर्भीकता से उजागर करते थे जो उन्हें दिखाई देती थी. आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है और तमाम बदलाव आ गए हैं लेकिन इस नीवं की पत्थरों को भुलाया जाना कृतध्नता ही होगी.

‘नेशनल हेराल्ड’ के संवाददाता जवाहर लाल साह भी पत्रकारिता में अपना अच्छा स्थान रखते थे. तब नेशनल हेराल्ड,’ उर्दू का मिलाप, वीर अर्जुन समाचार पत्र भी यहां काफी पढ़े जाते थे. यद्यपि साह जी को अंग्रेजी का अधिक ज्ञान नहीं था फिर भी समाचारों में उनकी अच्छी पकड़ थी. कमला नेहरू को जब भवाली सैनीटोरियम में भर्ती किया गया तब पं. जवाहरलाल नेहरू भी कुछ दिन भवाली रहे. नेहरू जी जवाहर लाल साह जी के ही मकान टिके. यही परिचय उन्हें नेशनल हेराल्ड से जोड़ गया.

लीथो पर छपने वाले ‘खबर संसार’ के सम्पादक ओमप्रकाश आर्य से भी इसी दौरान मेरा परिचय हुआ. ओमप्रकाश आर्य पहले महात्मा गांधी स्कूल में आर्ट के अध्यापक रहे. मतभेदों के चलते उन्होंने विद्यालय छोड़ दिया और पत्रकारिता करने लगे. वे खबर संसार के साथ कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों के लिए भी काम किया करते थे. खबर संसार के साथ कुछ समय गुरूदयाल सिंह आनन्द और इस्लाम हुसैन भी उनसे जुड़े रहे. ओमप्रकाश आर्य ने कुछ दिनों उत्तर उजाला के सम्पादकीय विभाग में भी कार्य किया.

यदि हम कुमाऊॅं क्षेत्र के प्रथम दैनिक समाचार पत्र की बात करें तो विष्णुदत्त उनियाल को भुलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने 6 अक्टूबर 1953 में अल्मोड़ा से और 4 अक्टूबर 1972 से नैनीताल से पर्वतीय नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया. 1 मई 1972 में यह समाचार पत्र दैनिक के रूप में छपने लगा. तब उन्होंने इस दैनिक पत्र का प्रकाशन हल्द्वानी से शुरू किया. वे पत्रकारिता के किस आयाम को स्थापित कर पाने में सफल रहे यह विवाद का विषय बन सकता है. लेकिन ‘पर्वतीय’ ने बहुत से लोगों को पत्रकारिता व लेखन की ओर आकर्षित किया. एक प्रकार से यह पत्रकारिता की पाठशाला कहा जाएगा. इन्हीं के साथी ब्रह्मानन्द बडोला ने पर्वतीय के बाद ‘सीमांचल’ का प्रकाशन नैनीताल से शुरू किया. महेश कुकरेती इस दैनिक अखबार के सम्पादन का कार्य लगन से किया करते थे. हल्द्वानी के बाद उनियाल जी ने इसका प्रकाशन हरिद्वार से शुरू किया, किन्तु अस्वस्थ्यता के कारण यह पत्र बन्द करना पड़ा.

पत्रकारों और पत्रकारिता की एक लम्बी श्रृंखला है लेकिन पत्रकारिता के बदलते स्वरूप के साथ इनकी गाथा को यहां विस्तार नहीं दिया जा सकता है और यह विषय ही अलग है. बहरहाल नित्यानंद भट्ट व ललित किशोर पांडे ने उत्तरायण नामक समाचार पत्र का प्रकाशन 1969 में किया जो कुछ ही अन्तराल के बाद बन्द हो गया. ललित किशार पांडे बहुत प्रखर समाजवादी विचारधारा के थे. उत्तराखण्ड क्रांतिदल के विधायक विपिन त्रिपाठी व ललित किशोर पांडे से मेरा पहला परिचय संदेश सागर के सम्पादन काल में हुआ. तब ये दोनों अपने कई साथियों के साथ समाजवादी युवजन सभा के लिए कार्य करते थे. तब विपिन त्रिपाठी ने ‘युवजन मशाल’ नाम से एक पत्र भी निकाला. बाद में दोनों नित्यानन्द भट्ट के साथ उत्तराखण्ड क्रांतिदल के संस्थापक के रूप में उभर कर सामने आए. राजनीति के भीतर चलते मतभेदों के श्री भट्ट व पांडे उक्रांद से अलग हो गए. ललित किशोर पांडे ने कुछ दिन तक यूनिवर्सल टाइम्स व जागृत जनता का भी सम्पादन किया. संघीय विचारधारा के सतीश चन्द्र अग्रवाल ने भी कुछ समय तक ‘शैलराज’ नामक पत्र का प्रकाशन किया था. 1971 में विजय कुमार तिवारी ने ‘लोकालय’ नाम से एक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया. इसी दौरान अमर उजाला का प्रकाशन बरेली से होने लगा. तब अमर उजाला ट्रेडिल मशीन पर छपा करता था. मैं भी कभी -कभी कुछ लेख व समाचार अमर उजाला के लिए भेजा करता था. अमर उजाला के लिए हल्द्वानी से सन् 1982 तक सत्येन्द्र तलवाड़ कार्य किया करते थे. बाद में अल्मोड़ा से यहां आकर ताराचन्द्र गुरूरानी ने अमर उजाला का कार्यभार संभाल लिया. बाद में उनके साथ मदन गौड़ नियुक्त कर दिए गए. अब अमर उजाला का प्रकाशन हल्द्वानी से ही होने लगा है. इसके अलावा दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, पंजाब केसरी आदि कई के प्रकाशन व कई के कार्यालय हल्द्वानी में स्थापित हो गए हैं . पंजाब केसरी के लिए सत्येन्द्र तलवाड़ के पुत्र संजय तलवाड़ व सुनील तलवाड़ काम किया करते है. दैनिक जागरण मेरठ संस्करण के लिए सबसे पहले पारसनाथ सिंह ने यहां प्रारम्भिक दौर में काम करना शुरू किया फिर जागरण का कार्यालय ही यहां खुल गया और कई कर्मचारी नियुक्त हो गए किन्तु पारसनाथ सिंह ने जागरण के लिए काम करना छोड़ दिया. अब जागरण का प्रकाशन भी हल्द्वानी से ही होने लगा है. व्यावसायिकता के चलते बहुत से समाचार पत्रों की बाढ़ सी आ गई है.

(जारी)

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से’ के आधार पर

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Sudhir Kumar

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