Featured

हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 27

गौला पार में कालीचौड़ का मंदिर भी पुरातत्विक महत्त्व का है किन्तु इस सम्बन्ध में अभी तक खोज नहीं की जा सकी है. कहा जाता है कि बिजेपुर गाँव में राजा विजयचंद की गढ़ी थी. उसके निकट ही कालीदेव की खंडित मूर्तियाँ मिलती हैं. बड़ी तादाद में श्रद्धालु वहां जाया करते थे. अंग्रेज हुकूमत के दौरान शांति और एकांत के लिए अंग्रेज दूरदराज के इलाकों में अपना ठिकाना बनाया करते थे. इसी क्रम में, कहा जाता है कि सरकट नमक अंग्रेज अफसर ने यहाँ अपना निवास बनाया था और लोगों को बसने के लिए प्रेरित किया था. उसने यहाँ के प्राकृतिक जलस्रोत का पानी कालीचौड़ मंदिर तक पहुंचाया और एक गूल भी बनवायी.

कमौला-धमौला में भी पुराने जमाने की इमारतों के अवशेष मिला करते थे. कहते हैं कि कई लोगों को यहाँ हल चलते हुए अशर्फियाँ भी मिलीं थीं. कमौला में कुमाऊं रेजीमेंट का एक बहुत बड़ा फ़ार्म है.

कालाढूंगी में काले रंग का पत्थर बहुतायत में मिलता है. इसीलिए इसे कालाढूंगी कहा जाने लगा. शायद इस पत्थर में लोहे की मात्र अधिक रही हो. बताया जाता है कि यहाँ अंग्रेजों ने लोहा बनाने का कारखाना खोला था. जिम कॉर्बेट अपनी पुस्तक ‘माई इण्डिया’ में उस लोहे के कारखाने का जिक्र करते हुए लिखते हैं. कि इस कारखाने के कारण क्षेत्र के जंगलों को बहुत क्षति होने का अनुमान लगाया गया. क्योंकि लोहा बनाने के लिए जंगलों को ही काटना पड़ता. इसलिए इस कारखाने को बंद कर दिया गया. यह अंग्रेजों कि ईमानदारी को प्रदर्शित करता है. आज जिस तरह हरियाली को तहस-नहस कर हम यहाँ की उपजाऊ भूमि को रेगिस्तान में बदल रहे हैं और पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं. उससे यह नहीं लगता कि हमें यहाँ की धरती से कोई मोह भी है.

कालाढूंगी में, जिसे छोटी हल्द्वानी भी कहा जाता है. जिम कॉर्बेट का एक बँगला है, जिसे 1967 में म्यूजियम में बदल दिया गया. जिम कॉर्बेट ने 1915 में 221 एकड़ भूमि पर छोटी हल्द्वानी नमक इस स्थान को एक आदर्श ग्राम के रूप में बसाया. उन्होंने 10-15 परिवारों को यहाँ पर बसाकर उनके लिए घर बनाए, कृषि के लिए प्रोत्साहित किया, सिंचाई व्यवस्था को विक्सित किया और जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए ग्रामीणों की मदद से गाँव के चारों ओर दीवार खड़ी कर दी.

रानीबाग में भी जिम कॉर्बेट नए प्रवास के लिए ‘रॉक हाउस’ बनाया था, किन्तु अब यह खंडहर में बदल चुका है. जिम कॉर्बेट के पिता क्रिस्टोफर कॉर्बेट 1862 में नैनीताल के पोस्टमास्टर रहे. 1875 में जिम कॉर्बेट नैनीताल में पैदा हुए. जब वे 5 वर्ष के थे उनके पिता का देहांत हो गया. जिम कॉर्बेट एक शिकारी और पर्यावरण प्रेमी ही नहीं एक अच्छे लेखक भी थे. उन्होंने 1928 में वाइल्ड लाइफ मैगजीन शुरू की. उन्होंने कई लोकप्रिय किताबें भी लिखीं. 1947 में जिम कॉर्बेट कीनिया बस गए जहाँ 1955 में उनका देहांत हो गया.

अंग्रेजों ने फतेहपुर में बावन डाठ नाम का पुल बनाया था. जिसके ऊपर से नहर गुजरती है और आस-पास के गाँवों को सिंचाई के लिए पानी मिलता है. इस इलाके के बहुत उपजाऊ गाँव बसानी के आसपास का क्षेत्र बहुत आकर्षक है. अंग्रेज शिकारी अक्सर यहाँ आया करते थे. उन्होंने यहाँ एक डाकबंगला भी बनवाया. फतेहपुर से हल्द्वानी तक का मार्ग पहले सीमेंट का बना हुआ था. उस समय हल्द्वानी से रामनगर जाने के लिए गाड़ियाँ नहीं चला करती थीं. हल्द्वानी से लालकुआं होते हुए ट्रेन से त्यहाँ जाना पड़ता था. 1970 में मार्ग पक्का बन गया और प्राइवेट गाड़ियाँ चलने लगीं. पहले फतेहपुर होते हुए ही मार्ग था बाद में कमलुआगांजा वाली कंडी रोड को पक्का किया गया.

( जारी )

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से ‘ के आधार पर

पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने – 26

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी

उधम सिंह नगर के तिलपुरी गांव की 32 साल की पैरा-एथलीट रेखा मेहता का सपना…

10 hours ago

चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था

चंद राजाओं के समय कुमाऊँ का शासन बहुत व्यवस्थित माना जाता है. हर गाँव में…

14 hours ago

उत्तराखंड में भूकम्प का साया, म्यांमार ने दिखाया आईना

हाल ही में म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप ने 2,000 से ज्यादा…

1 day ago

हरियाली के पर्याय चाय बागान

चंपावत उत्तराखंड का एक छोटा सा नगर जो पहले अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था और…

3 days ago

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

4 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

4 weeks ago