Featured

पहले ही तैयारी से उत्तराखंड के जंगलों को आग लगने से बचाया जा सकता है

करोड़ों वर्षों पूर्व से जब मानव ने जब आग जलाना और उस पर काबू करना नही सीखा था, तब से ही वनों में आग प्राकृतिक रूप से लगती रही है. प्राकृतिक कारणों में शुष्क परिस्थितियों में घर्षण के कारण चिंगारी पैदा होने या बादलों से बिजली का गिरना प्रमुख रहा है. मानव के क्रमिक विकास और संसाधनों पर बढ़ रहे उसके एकाधिकार ने इन प्राकृतिक वनाग्नियों को अब पूरी तरह से मानव जनित बना दिया है. Forest Fire in Uttarakhand

दुनिया भर में होने वाली होने वाली वनाग्नियों की 84 % घटनाएं आज मानव जनित हैं. इनमें ग्लोबल क्लाइमेट चेंज भी एक प्रमुख कारण है. जिसके पीछे फिर से मानव और विकास के प्रति हमारी अंधी और कभी न मिटने वाली भूख खड़ी है.  

विश्व बाजार के लिए पाम ऑयल, सोया, कोयला, टिंबर वुड आदि के लालच के चलते हैं, पिछले और इस वर्ष में हमने अमेजन, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में सदी की सबसे भयानक व सब कुछ तबाह कर देने वाली वनाग्नियाँ देखी. ऑस्ट्रेलिया और अमेज़न की इन घटनाओं में हमने विश्व भर का 11,906,000 हेक्टेयर जंगल हमेशा के लिए खो दिया. अफ्रीका में भी लाखों हेक्टेयर जंगल इसी प्रकार से जल कर खत्म हुआ.

ऑस्ट्रेलिया में लगी वनाग्नियों में लगभग 1 बिलियन जीव मारे जा चुके हैं. इस संख्या में अभी कीट पतंगे जैसे जीव शामिल नहीं हैं जो कि पर्यावरण संतुलन और हमारे जीवन के लिए सबसे अधिक जरूरी हैं. इनमें से जीवों की कई प्रजातियां हमेशा के लिए विलुप्त हो चुकी हैं. ऑस्ट्रेलिया मे लगी वनाग्नियों के बारे में वैज्ञानिकों ने वर्ष 1980 मे ही चेता दिया था कि कैसे क्लाइमेट चेंज के कारण बुश फायर की तीव्रता और अधिक बढ़ेगी. इसके बावजूद हमने कोई तैयारियां नहीं की, जिसके  परिणाम आज हमारे सामने हैं.

अन्य आपदाओं की तुलना में जंगलों की आग सबसे अधिक हानिकारक होती है, वह इसलिए क्योंकि इसके कारण सूक्ष्मजीवों से लेकर स्तनपाई जीव और हर प्रकार के पादप की हानि होती है. वातावरण में जो जहरीली गैस खुलती है, वह नुकसान अलग. अन्य आपदाओं जैसे बाढ़, भूकम्प आदि स्थितियों में फिर भी जीवो के पास अपने जीवन को बचा पाने का मौका रहता है और इन घटनाओं के बाद प्रकृति एक समृद्ध  रूप में सामने आती है. जबकि वनाग्नियों के बाद स्थितियों को सामान्य होने में वर्षों का वक्त लगता है और कई बार ये नुकसान अपरिवर्तनीय होते हैं.

ग्लोबल क्लाइमेट चेंज ने पूरी दुनिया में गर्मी को बढ़ाया है. जिससे हमारे वन शुष्क होते जा रहे हैं. इस कारण से  वनाग्नियों की घटनाएं और इसके स्वरूप में इजाफा हुआ है. आज बढ़ती आबादी और विकास के कदमों ने जंगलों को कुछ सीमित क्षेत्रों तक धकेल दिया है. इस परिस्थिति में  वनाग्नियों की घटनाओं पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो चुका है.

हम अपने सीमित संसाधनों,  वन्यप्राणियों एवं स्वयं खुद के जीवन के प्रति लापरवाही नहीं कर सकते. यह बहुत जरूरी है कि वनाग्नियों के संबंध में जरूरी कदम घटनाओं के होने से पहले उठा लिया जाएं. क्योंकि आग लगने के बाद इसे रोक पाना असंभव होता है, जिसका ताजा उदाहरण ऑस्ट्रेलिया है. हालिया किसी भी प्रकार की टेक्नोलॉजी आग को रोक पाने  में असमर्थ है.  इसीलिए आग लगने के कारणों को पहचान कर उनकी रोकथाम करना अति आवश्यक है. Forest Fire in Uttarakhand

भारतीय परिस्थितियों में निम्नलिखित बिंदुओं पर समय रहते सरकारों और हम सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है :

1. विगत 30 से 40 वर्षों में आम जनमानस, ग्रामीणों और आदिवासियों से उनके वन संसाधनों से संबंधित जो हक छीने गए हैं, वह उन्हें वापस देना जरूरी होगा जिससे कि वह इन वन संसाधनों को अपना सके और वनाग्नियों की घटनाओं को रोकने के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकें.

2. समय रहते फायर लाइन का निर्माण एवं रखरखाव 

3. फारेस्ट गॉर्ड  से लेकर उच्च अधिकारियों एवं एन.डी.आर.एफ. (N.D.R.F.) के लोगों की फारेस्ट फायर फाइटिंग एवं फारेस्ट फायर मैनेजमेन्ट ट्रेनिंग एवं कार्य करने के लिए उन्नत उपकरण.

4. आम जनमानस से जुड़े लोगों के लिए जागरूकता कार्यक्रम.

5. आग लगाने वालों के प्रति कड़े नियमों का प्रावधान एवं का संपूर्ण पालन.

हिमालय में वनाग्नियों को वन प्रबंधन के रूप में देखा जाता रहा है. परंतु विगत वर्षों में इनसे होने वाले नुकसान एवं इन घटनाओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. वर्ष  2016 में उत्तराखंड में लगी वनाग्नियों की घटनाओं में 4538.2 हेक्टेयर जंगल जल कर खत्म हो गया. जिसके निशान अभी भी जंगलों में दिखाई देते हैं.

जंगलों में लगने वाली आग के पीछे का एक प्रमुख कारण ग्रामीणों द्वारा घास की अधिक माँग होना माना जाता रहा है लेकिन यह कारण अपने आप में  सिर्फ एक भ्रांति है. आग लगने के बाद फास्फोरस और पोटाश मिट्टी में वापस तो आते हैं लेकिन मानसूनी बारिश और पहाड़ी ढाल होने के कारण यह नदी-नालों में बह जाते हैं. इस कारण से  जमीन और अधिक बंजर और रूखी हो जाती है. साथ ही साथ आग लगने के कारण घास का महीन बीज भी जलकर खत्म हो जाता है. इस कारण घास का उत्पादन बढ़ने के बजाए हर वर्ष कम होता जाता है.

इसी तरह चीड़ वनों से जुड़ी भ्रांतियां और उनके कुप्रबंधन के चलते भी वर्षों से हिमालयी वन जलते रहे हैं. यह अति आवश्यक है, कि वैज्ञानिक ढंग से इन प्रभावों को समझा जाए और आज की परिस्थितियों के हिसाब से वनाग्नियों से जुड़ी घटनाओं को समय से पहले रोका जाए. 

उत्तराखंड प्रदेश के पिथौरागढ़ जिले में स्थित हरेला सोसायटी और इससे जुड़े युवा दोस्त अपनी इन्हीं चिंताओं को लेकर कुमाऊं क्षेत्र के वन अधिकारियों से मिल वनाग्नियों से पहले की जा रही तैयारियों के बारे में जानकारियां जुटा रहे हैं. ये युवा साथ आम जनमानस को उनके जंगलों के प्रति जागरूक एवं अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का भी आह्वान कर रहे हैं. Forest Fire in Uttarakhand

अपनी इस पहल के अंतर्गत युवा न सिर्फ प्रशासन स्तर पर अपने प्रश्न पूछ रहे हैं परंतु साथ ही साथ इन्होंने अपने सीमित संसाधनों के द्वारा कुछ वन पंचायतों को गांव वालों के साथ मिल गोद भी लिया है, जहां ये युवा इन वनों का उचित प्रबंधन कर इन्हें फायर प्रूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

इस प्रकार वनाग्नियों और इससे जुड़े मुद्दों पर ये युवा सोशल मीडिया की दुनिया से निकल, जमीनी तौर पर काम भी कर रहे हैं. इन युवाओं ने 2016 के दौरान भी उत्तराखंड के जंगलों में आग बुझाने में अपनी भूमिका निभाई थी. संदेश साफ है, अगर समय रहते हमने हमारे जंगलों और संसाधनों का उचित प्रबंधन नही किया तो हम सब कुछ खो बैठेंगे.

जिस प्रकार से दिल्ली विश्व भर के शहरों के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में प्रथम रहता है, अगर इन वनाग्नियों की घटनाओं को होने से पहले नहीं रोका गया तो दूषित हवा और प्रदूषण की ठीक वैसे ही परिस्थितियाँ पूरे देश के लये पैदा हो सकती हैं. वर्षों से वनाग्नियों से होने वाले फायदों के बारे में चर्चा की जाती रही है परंतु अब हालात आ चुके हैं, जब वनाग्नियों के वैश्विक दुष्प्रभाव को समझा जाए एवं इन घटनाओं को होने से पहले रोक लिया जाए. Forest Fire in Uttarakhand

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

पिथौरागढ़ के रहने वाले मनु डफाली पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हरेला सोसायटी के संस्थापक सदस्य हैं. वर्तमान में मनु फ्रीलान्स कंसलटेंट – कन्सेर्वेसन एंड लाइवलीहुड प्रोग्राम्स, स्पीकर कम मेंटर के रूप में विश्व की के विभिन्न पर्यावरण संस्थाओं से जुड़े हैं.


काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

6 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

6 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago