1956 के मेलबर्न ओलम्पिक में भारत चौथे स्थान पर रहा था. सभी को उम्मीद थी कि 1960 के रोम ओलम्पिक में भारत जरुर पदक लायेगा. लेकिन भारत को इस ओलम्पिक में तत्कालीन विश्व की सबसे मजबूत टीमों के पूल में शामिल किया गया. भारत ने अपना पहला मैच उस समय की यूरोपियन चैम्पियन टीम हंगरी से खेला. भारतीय टीम का मजाक उड़ाते हुए तत्कालीन भारतीय हाकी टीम के खिलाड़ियों ने भारतीय फुटबाल टीम को सलाह दी कि हंगरी को दस से अधिक गोल ना करने दे. भारत बनाम हंगरी के इस पहले पूल मैच में 1-2 से भारत हार गया.
अपना दूसरा मैच भारत ने यूरोप की दूसरी सबसे मजबूत टीम फ्रांस के साथ खेला जिसमें भारत 1-1 की बराबरी करने में सफल रहा. पेरू के साथ हुए अपने तीसरे मैच में भारत 1-3 से हार गया. लेकिन रोम ओलम्पिक में एक भारतीय मिड-फिल्डर राम बहादुर क्षेत्री ने दुनिया में अपनी पहचान बनायी.
राम बहादुर क्षेत्री का जन्म देहरादून में हुआ. उनके पिता इंडियन फारेस्ट रिसर्च इंस्टिटूयट देहरादून में चपरासी के पद पर कार्यरत थे. पश्चिमी नेपाल की सुंदर पहाड़ियों से संबंध रखने वाला यह परिवार अब देहरादून की घाटी में रहता था. अभाव में बचपन बीतने के बावजूद राम बहादुर अपने जीवन में इसे कहीं भी बाधा नहीं बनने देते. उन्हें जब जहां मौका मिलता वह इसे भुना लेते.
राम बहादुर क्षेत्री ने 1954 में ‘अमर ज्योति’ नामक एक स्थानीय फुटबाल कल्ब से खेलना शुरु किया. 1956 के दिल्ली क्लोथ मिल्स ट्राफी (DMC Trophy) से उनको राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और 1957 से राम बहादुर क्षेत्री उस समय के सबसे बेहतरीन भारतीय फुटबाल कल्ब ईस्ट बंगाल से जुड़ गये.
ईस्ट बंगाल के साथ राम बहादुर क्षेत्री का पहला सीज़न कुछ खास नहीं रहा लेकिन मोहम्मडन स्पोर्टिंग के खिलाफ खेले मैच में राम बहादुर क्षेत्री ने हर किसी के मन में गहरी छाप छोड़ दी. मैच के दौरान मोहम्मडन स्पोर्टिंग के एक खिलाड़ी सलीम के धक्के से गिरने के कारण राम बहादुर क्षेत्री सिर पर चोट आयी. राम बहादुर क्षेत्री ने सिर खुलने के बावजूद भारी बैंडेड के साथ खेलना जारी रखा. सिर पर चोट के बावजूद राम बहादुर क्षेत्री ने एक के बाद एक कई गोल का बचाव भी किया. मैच के अंत का स्कोर ईस्ट बंगाल 3 और मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब 0 था. मैच खत्म होने तक राम बहादुर क्षेत्री के सिर से खून फिर बहने लगा था लेकिन राम बहादुर क्षेत्री मैच की आखिरी विसेल तक खेलता रहे.
विश्व फुटबाल में चाईना वाल नाम से लोकप्रिय राम बहादुर क्षेत्री शरीर से आला दर्जे के दुबले-पतले खिलाड़ी थे. राम बहादुर क्षेत्री ने खिलाड़ी नहीँ मैदान की घास तक को छका कर फुटबाल अपने कब्जे में ली है. मिडफिल्डर के रुप में खेलने में उनकी जैसी साफ स्किल शायद ही विश्व के किसी अन्य खिलाड़ी के पास हो. राम बहादुर क्षेत्री को इस सदी का सबसे बेहतरीन भारतीय मिड-फिल्डर माना जाता है. कवरिंग हो या ब्लाकिंग उनका खेल हमेशा साफ रहा. मोहन बागान के साथ एक मैच में उस दौर के सबसे खतरनाक भारतीय फुटबाल खिलाड़ी चुन्नी गोस्वामी को ऐसा ब्लाक किया कि मैच के दौरान वे एक भी गोल नहीं कर पाये. हाल्फ-बैक पर राम बहादुर क्षेत्री जैसा साफ सुधरा खेल शायद ही विश्व फुटबाल में किसी ने खेला हो. यह उनके साफ–सुधरे खेल का ही नतीजा है कि भारतीय फुटबाल के स्वर्णिम भौकाल युगीन टीम का हिस्सा होने के बावजूद यह विकट खिलाड़ी हमेशा न केवल अपनी बल्कि प्रतिद्वंदी टीम का भी पसंदीदा खिलाड़ी रहा.
1962 का जकार्ता एशियन गेम्स में फुटबाल का स्वर्ण पदक भारतीय टीम के नाम रहा. भारत को फाइनल तक पहुचाने में राम बहादुर क्षेत्री का महत्तवपूर्ण योगदान था. राम बहादुर क्षेत्री भारतीय टीम के निर्विवादित स्टाटर रहे. करीब 15 टूर्नामेंट में वे भारतीय टीम के कप्तान भी रहे. ग्यारह वर्ष के अपने प्रोफेशन करियर के बाद 1967 में भारतीय लेफ्ट मिड-फिल्ड की यह दीवार हट गयी.
राम बहादुर ने ईस्ट बंगाल कल्ब से आजीवन खेलने का वादा किया था जिसे उन्होंने निभाया भी. राम बहादुर क्षेत्री की पहचान आज एक ओलम्पियन फुटबालर के रुप में है पर कम ही लोग जानते हैं कि वे ईस्ट बंगाल की हाकी और क्रिकेट दोनों टीमों के सदस्य भी रह चुके थे. इतिहासकार रामचंद्र गुहा की यादों में तो आज भी वे एक महान आलराउंडर क्रिकेट खिलाड़ी के रुप में ही दर्ज हैं.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार केवल राम बहादुर क्षेत्री को करीब से जानने वाले लोग ही जानते हैं कि भारत के सबसे बेहतरीन फुटबाल खिलाड़ी का पसंदीदा खेल क्रिकेट था. फुटबाल के ऑफ सीजन में फुटबाल का ये सितारा देहरादून में क्रिकेट खेलता बड़ी आसानी से देखा जा सकता था. सन 2000 में भारत का यह ओलम्पियन फुटबालर दुनिया को देहरादून में ही अलविदा कहता है.
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