कला साहित्य

लोक कथा : श्राद्ध की बिल्ली

किसी जमाने की बात है. एक गांव में सास-बहू रहा करते थे. जैसा की पहाड़ों के हर घर में होता है कि लोग पालतू जानवर रखा करते हैं. सास-बहू ने भी एक बिल्ली पाल रखी थी. वह बिल्ली हमेशा कभी सास तो कभी बहू के पीछे लगी रहती. जब कोई खाना पकाता तो बिल्ली चूल्हे के किनारे ही बैठी रहती. अब कुत्ते-बिल्ली को बहुत ज्यादा समझ तो होती नहीं है, सो बिल्ली अक्सर खाने के बर्तनों में मुंह मार दिया करती थी. (Folktale Shraddh ki Billi)

श्राद्ध के दिनों में कुछ यूँ होता कि बिल्ली खाने को झूठा न कर दे इसलिए सास एक रिंगाल की बड़ी टोकरी से चूल्हे किनारे बैठी बिल्ली को ढँक दिया करती. बिल्ली को टोकरी के नीचे छिपाने के बाद सास चूल्हे-चौके के कामों को निपटाया करती. बहू जब से इस घर में आई थी सास को उसने ऐसा करते हुए ही देखा.

कई बरस बीत गए. सास अब बहुत बूढ़ी और असक्त हो चली थी और बहु सयानी. फिर सास का आख़िरी बखत भी आया. कुछेक दिन तबियत खराब होने के बाद सास ने बिस्तर पकड़ लिया. दो-चार दिन चारपाई पर लेते रहने के बाद उसने प्राण त्याग दिए.

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सास को मरे हुए साल भर हुआ और उसके श्राद्ध का बखत आ गया. अब घर में कोई पालतू बिल्ली नहीं थी. सो, बहू गाँव में ही पड़ोस के एक घर में गयी जहां पालतू बिल्ली थी. वहां जाकर उसने कहा— हमारे घर में आज मेरी सास का श्राद्ध है तो क्या आप मुझे थोड़ी देर के लिए अपनी बिल्ली दे सकते हैं? श्राद्ध कर्म मिपट जाने के बाद मैं उसे सकुशल आपके पास लौटा जाऊँगी. हर साल ससुर जी के श्राद्ध के दिन सास सुबह ही बिल्ली को टोकरी से ढँक दिया करती थी और उसके बाद श्राद्ध के पकवान बनाया करती थी. अब मेरे पास टोकरी तो है लेकिन बिल्ली अब रही नहीं. आप बिल्ली दे देंगे तो मैं उसे टोकरी से ढंककर तब और काम निपटा लेती. (Folktale Shraddh ki Billi)

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Sudhir Kumar

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