संस्कृति

लोक कथा : जूँ हो!

नरेन और मधुली दोनों जुड़वां का आपसी स्नेह गाँव भर में चर्चा का विषय रहता. दोनों भाई-बहनों को कोई भी देखता तो एक साथ ही. दोनों साथ खेलते, खाते-पीते और नदी किनारे मौज मस्ती करते. (Folklore of Uttarakhand Juun ho)

उन दिनों कम उमर में ही शादी का रिवाज था तो मधुली भी गुड्डे-गुड़ियों की उमर में ही ब्याह दी गयी. नरेन को ब्या का काम-काज तो खेल जैसा लगा लेकिन जब उसे पता लगा अब मधुली उसे छोड़कर चली जाएगी तो उस पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह गाँव के दूर धार तक मधुली को छोड़ने गया भी फिर थक कर लौट आया. उसकी आँखें जैसे बणधार हो गयी थीं. सारा गाँव भाई-बहन के इस बिछोह से दहल गया. गाँव की हर लड़की की विदाई में दुःख होता है लेकिन इस समय तो दुःख दोहरा हो गया था. गाँव-घर के लोगों ने नरेन को किसी तरह समझाया कि — च्यला ज्यादा दुखी मत हो, भिटौली लेकर अपनी बहन को भेंटने तो तू जाएगा ही. नरेन भी न समझता तो क्या करता. उसके दुःख का कोई ठिकाना नहीं था लेकिन वह सबसे इसे छिपाकर बस उस दिन का इंतजार करता जब वह भिटौली लेकर अपनी बहन के ससुराल जाएगा और दोनों मिलेंगे.

उधर मधुली भी मायके और अपने भाई की याद में अक्सर रोती रहती. फिर भी वह घर-बन का सारा काम खूब मेहनत से किया करती. आखिर साल भर बाद भिटौली का महीना भी आया और नरेन चल पड़ा अपनी बहन को भेंटने.

भाई घर पहुँचा तो दोनों का मिलन देख कर हर कोई भावुक हो गया. मधुला का मन हुआ कि अपने भाई के साथ मायके जा कर घर और गाँव वालों से भी मिल आऊँ तो कितना जो अच्छा हो. उसने अपनी सास से क्या — अगर आपकी आगया हो तो दो-चार दिन के लिए मैं भी भाई के साथ मायके हो आऊं. सास पहले तो टालती रही लेकिन मधुलि के बार-बार “जूँ हो” (क्या मैं जाऊं) की रट लगाने पर सास बोली — जितने दिन के लिए तुझे मायके जाना है उतने दिन का आटा-चावल, घास-पात और पीने के पानी की व्यवस्था कर जा तो चली जा. मधुलि आयके जाने की खुशी में फटाफट काम निपटाने लगी.चावल कूटने लगी तो सास ने मूसल ही छिपा रखा था. किसी तरह चिड़ियों की मदद से चावल निकले तो सास ने पानी लाने के बर्तन छिपाकर उसे छलनी पकड़ा दी. फिर सास ने दरांती-रस्सी कहीं छिपा दी. फिर भी परेशां होकर मधुलि किसी तरह काम निपटा रही थी बीच-बीच में वह जूँ हो, जूँ हो भी पूछती जाती.

सास बहुत ही निर्दयी थी जब सारे काम निपट गए तो मधुलि को मायके जाने से रोकने के लिए उसने नरेन की खीर में जहर मिला दिया. नरेन को सोया देख कर मधुलि ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की. जब उसे विश्वास हुआ कि उसका भाई नरेन अब मर चुका है तो दुःख में उसने भी रोते-रोते प्राण त्याग दिए, कहते भी हैं कि जुड़वाँ बच्चों के प्राण जनम से ही एक दूसरे के साथ बंधे होते हैं.

मरने के बाद पक्षी की योनि में आज भी मधुलि ‘जूँ हो!’ ‘जूँ हो!’ की रट लगाते हुए पहाड़ों के जंगलों में घूमती रहती है. उसके मार्मिक स्वर में मायके न जा पाने की पीड़ा आज भी ब्याहताओं का कलेजा चीर कर रख देती है.     

हैं जिन्होंने अपनी बेटियों के साथ अन्याय, अत्याचार किये हैं. यह देखकर वह इतना विचलित हुआ कि वहीँ पर प्राण त्याग दिए.  

लोक कथा : माँ की ममता

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

दुनिया की सबसे प्रभावशाली चीज : कुमाऊनी लोककथा

   

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

8 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

10 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

11 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

1 day ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago