कुमाऊं के जागरों में ‘छिपुलाकोट का हाड़’ के नाम से सैम की एक जागर गाथा गायी जाती है जिसमें बताया जाता है कि सैम छिपुलाकोट की रानी पर मोहित हो गया था तथा इसके फलस्वरूप वहां के राजा ने उसे बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल दिया. उसे कैद में रहते-रहते बारह वर्ष हो गये. तब एक दिन उसके भाई हरू ने, जो कि हंसुलाकोट में अपनी मौसी के पास रह रहा था, धूमाकोट के शासक अपने भांजें गोरिया को साथ लेकर छिपुलागढ़ जाकर वहां के प्रमुख प्रहरियों स्यूरा-प्यूरा को अपने पक्ष में करके गुप्त रूप से किले में प्रवेश करके थोड़े से युद्ध के बाद सैम को बंदीगृह से मुक्त करा लिया. एक अन्य जागर गाथा के अनुसार भाभियों के ताने से आहत हरू छिपुलाकोट की रानी को प्राप्त करने के लिए गया और वहां पर छिपुला बन्धुओं ने उसे बंदी बना लिया तथा बाद में उसके छोटे भाई सैम तथा भांजे गोरिया द्वारा उसे रानी सहित मुक्त कराया गया. (Folklore Haru and Saim Devta)
परम्परा प्राप्त वर्णनों का योग करके गाथाओं को बड़ा लम्बा कर दिया है. जब बाला हरू हंसुलीगढ़ में अपनी मौसी के पास रह रहा था तो एक दिन अपनी मौसी के पशुओं को लेकर उन्हें चराने के लिए पीपल चैरंडी के चरागाहों की ओर ले जाता है. वहां एक स्थान पर अपना कम्बल बिछाकर अपनी प्रिय मुरली, नरबाड़ी को बजाने लगता है. उसकी मधुर ध्वनि पाताल में, नागलोक में, भूलोक में, नौ खण्डों, स्वर्गलोक में गूंजने लगती है.
उस ध्वनि से मोहित होकर इन्द्राणी अपने पति इन्द्र से पूछती है यह इतनी मधुर ध्वनि किस जीव की है. इसे मरवाकर तुम इसका कलेजा मंगवाओ. तब इन्द्र अपनी विशेष परियों को बुलाकर कहता है. तुम भूलोक में जाकर इस ध्वनि स्रोत का पता करो. इन्द्र की सेवा में रत हरू की मां कालिनारा को ध्यान आया कि कहीं यह उसके हरू की मुरली की धुन ना हो. क्योंकि वह भी ऐसी मधुर ध्वनि से मुरली बजाता है. अतः उसने उन्हें जाने से रोक दिया और स्वप्न में हरू के समक्ष उपस्थित होकर उससे कहने लगी – “पुत्र तुम्हें क्या कष्ट है तूने इतने उदासी भरे स्वर में बंशी क्यों बजाई?” वह बोला “मुझे भाई बंधु, इष्ट मित्र किसी ने कुछ नहीं कहा. मेरा भाई सैम बारह वर्ष से छिपुलाकोट के महल में बंदी पड़ा है. मुझे इसी का दुःख है और जैसे भी हो मुझे उसको मुक्त कराना हैं. अब मैं उसे मुक्त कराने के बाद ही हंसुलीगढ़ में अपनी मौसी तथा भाभियों को मुंह दिखाऊंगा.”
उसका यह दृढ़ निश्चय सुनकर वह रोने लगी और उसे भांति-भांति से उस शत्रु देश के सम्भाव्य संकटों से सावधान करने लगी. जब वह अपनी हट पर रहा तो कालिनारा ने उससे कहा तुझे जाना ही है तो अकेले मत जाना, धौली-धुमाकोट से अपने भांजे गोरिल को भी साथ अवश्य ले जाना. वहां पर हमारी हंसुली घोड़ी है, उसका सारा साज समान है. एक स्थान पर भण्डार की चाभी है. वहां से यथावश्यक सोना चांदी निकाल लेना वहां काम आयेगा. इतना कह कर वह अंतर्ध्यान हो गयी.
हरू की नींद भी खुल गयी. मां के बताये अनुसार हरू ने भांजे गोरिया को पुकारा और सारी स्थिति से अवगत कराया. दोनों जोगिया वस्त्र डालकर चल पड़े. हरू ने गोरिया को कहां तुम गांव में जाकर भिक्षा मांग कर ले आओ, वह तल्ला जोशीमठ गया जहां स्त्रियों ने कोई ना कोई बहाना बना कर टाल दिया. वह बिना भिक्षा पाये वापस आ गया और हरू को सारी गाथा सुनाई. वह यह सब सुनकर क्रोधित हो गया उसने बभूत का गोला मारकर सारे गांव वालों में हाहाकार मचा दिया. वे लोग जब तक उन जोगियों की खोज में निकलते तब तक वे मल्ला जोशीमठ चले गये थे.
वहां की स्त्रियों ने उनका स्वागत किया तथा भोजन कराया. जब वे जाने लगे तो गांव के बाहर एक बुढ़िया की कुटिया थी. उसने उन्हें सावधान किया कि छिपुलाकोट जाते हुए रास्ते में सासु-ब्वारी खेत मिलेगा जहां पर दो रास्ते होंगे और वहां पर एक ताल में रहने वाले नौमना मसान की रूपवती बहिन हंसुला बैठी रहती है जो कि राहगीरों को पथभ्रष्ट करके उस राह से भेज देती है जिधर कि उसका भाई रहता है जो घोड़ा मानव आदि सभी जीवों को साबुत निगल जाता है.
जब वे लोग उक्त स्थान पर पहुंचे तो हरू ने गोरिया को उसी मार्ग पर चलने को कहा जो कि मसान की बहिन ने बताया था. उस सरोवर के पास पहुंचकर वे विश्राम करने के लिए शिलंग के वृक्ष के नीचे बैठे. हरू ने गोरिया को कहा तुम घोड़ी को सरोवर में ले जाकर पानी पिलाकर ले आओ. जब वह घोड़े को लेकर वहां गया तो मसान ने तालाब से निकलकर घोड़े को साबुत निगल लिया.
गोरिया ने आकर जब मामा हरू को बताया तो उसने 22 मन का लोहे का गज धारण करने वाले अपने सहायक लटुवा को, 22 बहिने देवियों को, 16 भाई ऐडियो को, 52 वीरों और 64 जोगियों को याद किया और वे सभी तत्काल वहां उपस्थित हो गये. फिर वे अपने दलबल के साथ घोड़ी पर सवार होकर छिपुलाकोट के लिए चल पड़े वहां नगर के बाहर डेरा डालकर एक दाना चावल व आधा दाना दाल डालकर खिचड़ी पकाने लगे. इधर छिपुलाकोट की कुछ पनिहारने पानी लेने आयी. उन तेजस्वी जोगियों को देखकर वे चमत्कृत सी हो गयी.
उन्होंने यह सूचना नगर प्रहरियों को दी. उन्होंने आकर इन जोगियों को ललकारा. उन्होंने कहा पहले तुम खिचड़ी खा लो फिर चले जायेंगे वे बोले डेढ़ चावल की खिचड़ी से हमारा क्या होगा उनके बहुत आग्रह करने पर खिचड़ी खाने बैठे तो खिचड़ी कम ना हुई. उनके चमत्कार से प्रभावित होकर वे कहने लगे हमें अपना सेवक बना लो कम से कम अकाल-सकाल में भरपेट खाना तो मिलेगा. उनके चेले बन जाने पर उन्होंने सैम के बंदीगृह पहुंच जाने का गुप्त मार्ग बता दिया. गोरिया बिल्ली का रूप बनाकर वहां पहुंचा और अपने मामा को सारी स्थिति समझा दी. इधर छिपुलाकोट के सात भाई छिपुलाओं को इसका पता चल गया. दोनों दलों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ. हरू, स्यूरा, प्यूरा तथा अन्य वीरों की सहयता से उन सब को परास्त कर सैम को मुक्त कराकर ले आये.
यह भी देखें: समृद्धि और सीमा के रक्षक देवता हरू-सैम के जन्म की कथा
(प्रो. डी. डी. शर्मा की पुस्तक ‘उत्तराखंड के लोकदेवता’ के आधार पर)
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गोलू देवता की जीवन गाथा पर आधारित उपन्यास 'संन्यासी योद्धा' मेरे द्वारा लिखी गई ४४० पेज का वृहद उपन्यास है। इस उपन्यास को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा अमृतलाल नागर साहित्य सम्मान 2016 से सम्मानित किया गया है। साथ ही उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद द्वारा अमृतलाल नागर साहित्य सम्मान 2017 दिया गया है। इसमें सैम देव की रिहाई की कथा भी सम्मलितत है। में चाहता हूं कि आपकी साइट पर इस पुस्तक पर चर्चा हो। प्रति अमेज़ान पर उपलब्ध है। यदि आप पता दें प्रति भेज सकता हूं।
कौस्तुभ आनंद चंदोला लखनऊ
9415542112
kanandchandola@gmail.com